Close Fight in Jhabua-Ratlam Loksabha Constituency: भाजपा को रतलाम शहर में बढ़त, कांग्रेस को झाबुआ से भरपाई की उम्मीद

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Close Fight in Jhabua-Ratlam Loksabha Constituency: भाजपा को रतलाम शहर में बढ़त, कांग्रेस को झाबुआ से भरपाई की उम्मीद

कांतिलाल-अनीता के बीच बराबरी का मुकाबला, मतदाताओं में 2019 चुनाव जैसी उग्रता, उत्साह नहीं, सांसद डामोर टिकट काटे जाने से नाराज

वरिष्ठ पत्रकार दिनेश निगम ‘त्यागी’ की ग्राउंड रिपोर्ट

भाजपा-कांग्रेस के बीच जैसा कांटे का मुकाबला पहले चरण की मंडला, छिंदवाड़ा, दूसरे चरण की सतना और तीसरे चरण की मुरैना, राजगढ़ सीट में देखने काे मिला, लगभग वैसी ही स्थिति चौथे चरण वाले रतलाम-झाबुआ लोकसभा क्षेत्र की है। यहां भाजपा की अनीता नागर सिंह चौहान का मुकाबला कांग्रेस के वरिष्ठ आदिवासी नेता कांतिलाल भूिरया से है। संभवत: यह एकमात्र ऐसी सीट है जहां भाजपा को टिकट वितरण का अपना फार्मूला तोड़ना पड़ा। पार्टी नेतृत्व ने परिवारवाद के मुद्दे को ताक पर रखकर रतलाम-झाबुआ से प्रदेश सरकार के मंत्री नागर सिंह चौहान की पत्नी अनीता सिंह को मैदान में उतार रखा है। इससे इस सीट को लेकर भाजपा की चिंता का पता चलता है। आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित इस सीट में 8 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इनमें से कहीं भाजपा मजबूत है तो कहीं कांग्रेस। भाजपा काे रतलाम शहर से सबसे बड़ी लीड की उम्मीद है तो कांग्रेस को भरोसा है कि अकेले झाबुआ विधानसभा सीट से वह इस अंतर की भरपाई कर लेगी। कांतिलाल यहां से कई चुनाव जीत चुके हैं जबकि भाजपा की अनीता पहला लोकसभा चुनाव लड़ रही हैं। भाजपा ने यहां से अपने सांसद जीएस डामोर का टिकट काट दिया है। डामोर ने पिछली बार कांतिलाल भूरिया को ही 90 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से हराया था। डामोर टिकट काटे जाने से नाराज भी हैं।

भील-भलाला समाज में बंट गया आदिवासी समाज

आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट में भील और भलाला समाज ज्यादा है। भाजपा की अनीता सिंह भिलाला समाज से हैं जबकि कांग्रेस के कांतिलाल भील समाज से आते हैं। लोकसभा क्षेत्र में भील समाज 60 से 70 फीसदी जबकि भिलाला 30 से 40 फीसदी है। कांतिलाल यह हवा देने में कामयाब दिखते हैं कि वे भील हैं और अनीता भिलाला। इसकी वजह से भील समाज कांतिलाल के पक्ष में लामबंद होता दिख रहा है। इसका बड़ा फायदा कांग्रेस को हो सकता है। क्षेत्र में मुस्लिम समाज भी बड़ी तादाद में है, वह भी कांग्रेस का प्रतिबद्ध वोटर है। क्षेत्र में दलित समाज की बड़ी तादाद है, यह भाजपा-कांग्रेस के बीच लगभग 50-50 फीसदी नजर आ रहा है। दूसरी तरफ भिलाला समाज भाजपा के पक्ष में लामबंद है। जैन समाज के अलावा अन्य सामान्य वर्ग की जातियां (क्षत्रिय छोड़कर) भाजपा के पक्ष में दिखाई पड़ती हैं। इसके अलावा दाेनों दलों का अपना-अपना प्रतिबद्ध वोटर है ही।

मतदाताओं में 2019 जैसा जोश, उत्साह नहीं

चुनाव में भाजपा और कांग्रेस ने पूरी ताकत झोंक रखी है। बावजूद इसके मतदाताओं में 2019 के लोकसभा चुनाव जैसी उग्रता और उत्साह देखने को नहीं मिल रहा। पिछले चुनाव से पहले एक आतंकवादी हमले में 40 जवानों के शहीद होने के बाद भारत ने एयर स्ट्राइक की थी। इस घटना के कारण मतदाताओं में राष्ट्रप्रेम की भावना जाग्रत थी। इसकी वजह से उनमें मतदान के प्रति बेजा उत्साह था। उम्मीद थी कि अयोध्या मेंं राम मंदिर निर्माण के बाद राम लहर के कारण इस बार भी मतदाताओं में पिछली बार जैसा ही उत्साह होगा लेकिन ऐसा देखने को नहीं मिल रहा। पहले दूसरे चरण में पिछली बार की तुलना में 8 से 10 फीसदी तक वोटिंग कम हुई। इसके बाद सभी के सामूहिक प्रयास से तीसरे चरण में मतदान प्रतिशत में कुछ सुधार हुआ। चाैथे चरण में भी मतदाताओं में ज्यादा उत्साह देखने को नहीं मिल रहा। हालांकि राजनीितक दल और निर्वाचन आयोग ज्यादा मतदान के लिए पूरे प्रयास कर रहा है। रतलाम- झाबुआ लोकसभा क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है। यहां का मतदाता भी चुनाव के प्रति उदासीन दिखाई पड़ता है।

क्षेत्र में कहीं भाजपा, कहीं कांग्रेस मजबूत

रतलाम-झाबुआ लोकसभा क्षेत्र के तहत आने वाली विधानसभा सीटों में कहीं भाजपा मजबूत दिखाई पड़ती है तो कहीं कांग्रेस। रतलाम शहर में भाजपा को विधानसभा में बड़ी लीड मिली थी, लोकसभा चुनाव में भी पार्टी के पक्ष में यह स्थिति बरकरार रह सकती है। कांग्रेस को भरोसा है कि इसकी भरपाई वह झाबुआ विधानसभा सीट से कर लेगी। यहां कांग्रेस प्रत्याशी कांतिलाल भूिरया के बेटे डॉ विक्रांत भूरिया विधायक हैं। विक्रांत युकां के प्रदेश अध्यक्ष थे लेकिन पिता के चुनाव के लिए उन्होंने यह पद छोड़ दिया था और पिता कांतिलाल के चुनाव की पूरी बागडोर अपने हाथ में थाम रखी है। इसी प्रकार भाजपा को अलीराजपुर और जोबट में लीड मिल सकती है तो दूसरी तरफ कांग्रेस को थांदला और पेटलावद में। लोग बताते हैं कि रतलाम ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र में भाजपा-कांग्रेस के बीच बराबरी का मुकाबला हो सकता है। यहां भाजपा कुछ बढ़त ले सकती है, जबकि सैलाना में (जहां से बाप पार्टी के विधायक हैं) कांग्रेस अच्छी बढ़त ले सकती है। इस तरह विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा-कांग्रेस के बीच बराबरी की टक्कर देखने को मिल रही है।

रतलाम में कभी कांग्रेस जीती, कभी भाजपा

रतलाम लोकसभा सीट का राजनीितक मिजाज मिला जुला रहा है। जब सीट का नाम झाबुआ था तब कांग्रेस जीत दर्ज करती रही और परिसीमीन के बाद जब सीट का नाम रतलाम हो गया तो कभी भाजपा जीती तो कभी कांग्रेस। झाबुआ में पहले कांग्रेस के दिलीप सिंह भूरिया जीतते थे लेकिन परिसीमन के बाद जब सीट का नाम रतलाम हो गया तब वे भाजपा में चले गए। इसके बाद 2009 के पहले चुनाव में कांतिलाल ने दिलीप सिंह को हरा दिया। 2014 में दिलीप ने कांतिलाल को हरा कर उसका बदला ले लिया। दिलीप सिंह के निधन के बाद 2015 के उप चुनाव में भाजपा ने उनकी बेटी निर्मला भूरिया को टिकट दिया लेकिन कांतिलाल ने उन्हें हरा दिया। सीट का भौगोलिक एरिया तीन जिलों तक फैला है। ये जिले झाबुआ, रतलाम और अलीराजपुर हैं। लोकसभा क्षेत्र में झाबुआ जिले की तीन विधानसभा सीटें झाबुआ, थांदला, जोबट और रतलाम जिले की भी तीन रतलाम ग्रामीण, रतलाम शहर और सैलाना आती हैं। अलीराजपुर की दो विधानसभा सीटें जोबट और अलीराजपुर भी इसी लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा हैं। झाबुआ जिले की 2 और अलीराजपुर की एक सीट कांग्रेस के पास हैं जबकि रतलाम जिले की 2 और झाबुआ-अलीराजपुर की एक-एक सीट पर भाजपा का कब्जा है।