संयोग या सुनियोजित…आपातकाल दिवस पर सांसदों की शपथ…

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संयोग या सुनियोजित…आपातकाल दिवस पर सांसदों की शपथ…

 

18वीं लोकसभा का पहला संसद सत्र 24 जून को शुरू हुआ। संसद सत्र के पहले दिन 266 सांसदों ने शपथ ली। सबसे पहले प्रधानमंत्री मोदी और सबसे आखिर में मध्य प्रदेश के ज्ञानेश्वर पाटिल ने शपथ ली। शेष सांसद 25 जून को लोकसभा सदस्य के तौर पर शपथ लेंगे। लोकसभा सांसद के रूप में जब पीएम मोदी का शपथ के लिए नाम पुकारा गया तो कांग्रेस नेता राहुल गांधी के हाथ में लाल रंग की संविधान की मिनी-कॉपी थी। राहुल और अन्य विपक्षी सदस्य तब तक संविधान लहराते रहे जब तक मोदी ने शपथ नहीं ले ली। विपक्षी गठबंधन इंडिया के सांसद विरोध दर्ज कराने के लिए संविधान की प्रतियां लेकर पहुंचे थे। इससे पहले विपक्षी सांसदों ने संसद के बाहर भी विरोध प्रदर्शन किया था। अपनी कुर्सी से उठे और स्पीकर की कुर्सी के बगल में बनी जगह की ओर बढ़े तो कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने पीएम मोदी को संविधान की प्रति दिखाई। तो नए संसद भवन में जब पहली बार 18वीं लोकसभा के सांसद शपथ ले रहे हैं, तो पहले दिन कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के सांसद संविधान की दुहाई दे रहे थे। और अब दूसरे दिन दृश्य बिल्कुल करवट बदले दिखेगा। आपातकाल दिवस 25 जून को संविधान की दुहाई देते भाजपा और एनडीए गठबंधन के सांसद दिखाई देंगे, जो घोषित तौर पर इस दिन को काला दिवस मनाकर कांग्रेस और इंडिया गठबंधन को आइना दिखाएंगे। फिर बड़ा सवाल यही है कि 18 वीं लोकसभा के सांसदों की शपथ की यह तारीख तय होने पर तारीखों का यह मेल संयोगवश है या फिर सुनियोजित है। कांग्रेस को संविधान का हवाला देना है, यह पहले से तय था। पर एक दिन बाद ही आपातकाल दिवस पड़े, यह कहीं तयबद्ध तो नहीं है? ताकि एक दिन बाद ही कांग्रेस को संविधान के साथ तानाशाही करने की याद दिलाई जा सके। कहने को तो भाजपा थिंक टैंक और मोदी है तो मुमकिन है…में सब कुछ संभव है, पर हो सकता है कि यह महज संयोग ही हो। भाजपा सांसद बी. वाई. राघवेंद्र ने जैसा कहा है, “इंदिरा गांधी के समय की कांग्रेस पार्टी ने आपातकाल के संबंध में संविधान को बदला था। वे संविधान बदल सकते हैं, भाजपा और पीएम मोदी नहीं। हम 25 जून को पूरे देश में काला दिवस मना रहे हैं।

तो अब हम थोड़ा आपातकाल पर भी नजर डाल ही लेते हैं। 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक का 21 महीने की अवधि में भारत में आपातकाल घोषित था। तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की अनुच्छेद 352 के अधीन आपातकाल की घोषणा की थी। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक काल था। आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए तथा नागरिक अधिकारों को समाप्त करके मनमानी की गई। इंदिरा गांधी के राजनीतिक विरोधियों को कैद कर लिया गया और प्रेस पर प्रतिबंधित लगा दिया गया। प्रधानमंत्री के बेटे संजय गांधी के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर पुरुष नसबंदी अभियान चलाया गया। जयप्रकाश नारायण ने इसे ‘भारतीय इतिहास की सर्वाधिक काली अवधि’ कहा था।दरअसल 1975 की तपती गर्मी के दौरान अचानक भारतीय राजनीति में भी बेचैनी दिखी। यह सब हुआ इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस फ़ैसले से जिसमें इंदिरा गांधी को चुनाव में धांधली करने का दोषी पाया गया और उन पर छह वर्षों तक कोई भी पद संभालने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। लेकिन इंदिरा गांधी ने इस फ़ैसले को मानने से इनकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने की घोषणा की और 26 जून को आपातकाल लागू करने की घोषणा कर दी गई। आकाशवाणी पर प्रसारित अपने संदेश में इंदिरा गांधी ने कहा, “जब से मैंने आम आदमी और देश की महिलाओं के फायदे के लिए कुछ प्रगतिशील क़दम उठाए हैं, तभी से मेरे ख़िलाफ़ गहरी साजिश रची जा रही थी।” आपातकाल लागू होते ही आंतरिक सुरक्षा क़ानून (मीसा) के तहत राजनीतिक विरोधियों की गिरफ़्तारी की गई, इनमें जयप्रकाश नारायण, जॉर्ज फ़र्नांडिस, घनश्याम तिवाड़ी और अटल बिहारी वाजपेयी भी शामिल थे। मामला 1971 में हुए लोकसभा चुनाव का था, जिसमें इंदिरा ने अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी राज नारायण को पराजित किया था। लेकिन चुनाव परिणाम आने के चार साल बाद राज नारायण ने हाईकोर्ट में चुनाव परिणाम को चुनौती दी। उनकी दलील थी कि इंदिरा गांधी ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग किया, तय सीमा से अधिक पैसे खर्च किए और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए ग़लत तरीकों का इस्तेमाल किया। अदालत ने इन आरोपों को सही ठहराया। इसके बावजूद इंदिरा गांधी टस से मस नहीं हुईं। यहाँ तक कि कांग्रेस पार्टी ने भी बयान जारी कर कहा कि इंदिरा का नेतृत्व पार्टी के लिए अपरिहार्य है।

खैर 24 जून 2024 को कांग्रेस और इंडिया गठबंधन ने संसद भवन में संविधान में बदलाव को लेकर चिंता जताई है, तो 25 जून 2024 को भाजपा पूरे देश में कांग्रेस सरकार द्वारा 1975 में संविधान को ताक पर रखकर आपातकाल लगाने के विरोध में काला दिवस मनाकर यह साबित करेगी कि संविधान का असली रक्षक कौन है और भक्षक कौन है…? 18 वीं लोकसभा में सांसदों की शपथ के पहले दिन संविधान की प्रति कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के हाथ में थी, तो दूसरे दिन संविधान की प्रति भाजपा और एनडीए गठबंधन के हाथों में नजर आने वाली है। शपथ की इन तारीखों का चयन चाहे संयोग हो या सुनियोजित…।