खुशकिस्मत हैं Vijay Rupani

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गुजरात के मुख्यमंत्री श्री Vijay Rupani ने अपने पद से बेआवाज इस्तीफा दे दिया, ठीक वैसे ही जैसे कि किसी हाथी की गर्दन से फूलों की कोई माला गिर जाती है और उसकी कोई आवाज नहीं होती. 61 साल के Vijay Rupani अपनी पूरी पारी खेलकर लौट रहे हैं, उनके इस्तीफे को किसी मान-अपमान से नहीं जोड़ा जा सकता. गुजरात में अगले साल दिसंबर में चुनाव हैं इसलिए वहां के लिए भाजपा को मुमकिन है उतने जरूरी न लगे हों जितना कि पार्टी चाहती हो.

Vijay Rupani पार्टी हाईकमान के नहीं प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की निजी पसंद है. कांग्रेस की तरह भाजपा में भी निर्वाचित विधायकों की पसंद नहीं चलती. भाजपा में भी मुख्यमंत्री हाईकमान की पसंद से बनाये और हटाए जाते हैं, इसलिए मुझे Vijay Rupani का जाना बिलकुल नहीं चौंकाता. भाजपा विरोधियों को Vijay Rupani के जाने से बहुत खुश नहीं होना चाहिए क्योंकि अब उनके उत्तराधिकारी के रूप में जो भी आएगा वो विजय रूपाणी से कहीं ज्यादा प्रतापी साबित हो सकता है. भाजपा शासित राज्यों में से मुख्यमंत्री हटाने की ये दूसरी घटना है. इससे पहले कर्नाटक में यही सब हो चुका है.

गुजरात में आज के प्रधानमंत्री कल के मुख्यमंत्री के रूप में सबसे अधिक प्रभावी साबित हुए थे.वे लगातार 15 साल गुजरात के मुख्यमंत्री रहे, लेकिन उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद गुजरात में सात साल में तीसरे मुख्यमंत्री को लाया जा रहा है. मोदी के उत्तराधिकारी के रूप में लायी गयी गुजरात की पहली महिला मुख्यमंत्री श्रीमती आनंदी बेन पटेल को 2 साल 77 दिन में ही हटा दिया गया, क्योंकि वे गुजरात के लिए आनंद का अपेक्षित इंतजाम नहीं कर सकीं. उनके बाद Vijay Rupani को लाया गया, उन्होंने अपनी पारी बहुत सम्हलकर खेली. वे पूरे पांच साल 35 दिन मुख्यमंत्री रहे, लेकिन उनके कार्यकाल में भाजपा को नई स्फूर्ति का अनुभव नहीं हुआ इसलिए उन्हें उनका दूसरा कार्यकाल पूरा होने से पहले ही हटा दिया गया.

गुजरात में मोदी के कार्यकाल को स्वर्णिम कार्यकाल माना जाता है और इसी के आधार पर गुजरात की अनेक नीतियों और कार्यक्रमों को गुजरात मॉडल के नाम पर देश में लागू करने की कोशिश की गयी, किन्तु अब गुजरात के तमाम मॉडल औंधे मुंह गिर रहे हैं, साथ ही गिर रहे हैं मुख्यमंत्री भी. 182 सदस्यों की गुजरात विधानसभा में इस समय भाजपा के 112 सदस्य हैं. कांग्रेस यहां मुख्य विपक्षी दल है.कांग्रेस के 64 विधायक हैं कांग्रेस ने गुजरात को अब तक 16 में से 12 मुख्यमंत्री दिए लेकिन 1995 के बाद सत्ताच्युत होने के बाद से कांग्रेस दोबारा सत्ता में वापस नहीं लौट पायी. इस बात को अब 26 साल हो गए हैं.

गुजरात का इतिहास बताता है कि यहाँ अपवादों और विवादों को छोड़कर दो दलीय लोकतंत्र ही ज्यादा कामयाब हुआ है. ऐसे में यदि यहां 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सत्ता में आने से रोकना है तो भाजपा के लिए ये बहुत जरूरी था कि वो Rupani के स्थान पर किसी नए और ऊर्जावान नेता को सामने लाये. पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा कुल 99 सीटें जीत पायी थी, कांग्रेस के 80 विधायक जीते थे लेकिन भाजपा ने बाद में कांग्रेस में तोड़फोड़ कर अपनी ताकत बढ़ाकर 112 कर ली थी. भाजपा हाईकमान नहीं चाहता कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में भाजपा की दशा 2017 जैसी पतली रहे.

आपको बता दें कि विजय रूपाणी मूल रूप से भारतीय नहीं है, वे रंगून में जन्मे थे लेकिन 1960 में उनका परिवार भारत आ गया और वे गुजरात में बस गए अब विजय रूपाणी के उत्तराधिकारी मनसुख मांडविया बनें या नितिन पटेल, नितिन पटेल न बनें तो सीआर पटेल या पुरुषोत्तम रुपाला इससे कोई बहुत फर्क पड़ने वाला नहीं है. हाँ इस एक साल में भाजपा नए मुख्यमंत्री के जरिये अपने संगठन में व्याप्त असंतोष को जरूर दूर कर सकती है. कांग्रेस को सत्ता से दूर रखने के लिए उसे चेहरा बदलने के साथ ही अपना चरित्र और चाल भी बदलना पड़ेगी, क्योंकि बीते दो साल में देश और गुजरात में बहुत कुछ बदल गया है.

किसी भी राज्य में नेतृत्व परिवर्तन के लिए कोई एक कारक नहीं होता. पार्टी है कमान की पसंद और नापसंद मायने रखती है लेकिन इससे हटकर भी बहुत से अदृश्य कारण होते हैं ये कारण संगठान्त्मक और जातीय भी होते हैं. विजय और राज्य भाजपा संगठन में अनबन तो चल ही रही थी साथ ही पार्टी के बहुसंख्यक पाटीदार मतदाता भी विजय रूपाणी से क्षुब्ध नजर आ रहे थे. नेतृत्व परिवर्तन के जो कारण कर्नाटक में थे वे गुजरात में नहीं थे इसीलिए यहां नेतृत्व परिवर्तन चुटकियों में हो गया. गुजरात में यदिरप्पा की तरह कोई अड़ियल नेता भी नहीं था. विजय एक कठपुतली मुख्यमंत्री थे सो बिना आहट के हट गए.

गुजरात में नेतृत्व परिवर्तन का ये मतलब भी नहीं है कि अन्य भाजपा शासित राज्यों में भी नेतृत्व परिवर्तन होगा. भाजपा अपने मुख्यमंत्री केवल उन राज्यों में बदलेगी जहाँ आने वाले एक साल के भीतर विधानसभा के चुनाव होंगे, जहां चुनाव नहीं हैं वहां नेतृत्व परिवर्तन शायद नहीं ही होगा. मध्यप्रदेश भाजपा के असंतुष्ट नेताओं को इससे बहुत ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि मध्यप्रदेश में अभी भी मौजूदा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक करिश्माई नेता हैं.

भाजपा के तरकश के तमाम तीर हाल के अनेक चुनावों में खाली जा चके हैं. भाजपा ने विधानसभा के जितने चुनाव प्रधानमंत्री जी का चेहरा सामने रखकर लाडे उनमें से अधिकाँश में उसे पराजय का सामना करना पड़ा. अब जैसे कांग्रेस के पास अहमद पटेल नहीं हैं वैसे ही भाजपा के पास गुजरात में कोई मोदी नहीं है. मोदी अब काशी की सम्पत्ति हैं. अब गुजरात में भाजपा और कांग्रेस के बीच सचमुच असली मुकाबला होगा. मैं नहीं जानता कि गुजरात के चुनाव भाजपा के लिए बंगाल के चुनावों की तरह असाध्य होंगे या नहीं, लेकिन ये जानता हूँ कि इस बार भाजपा के सामने 2017 से भी ज्यादा बड़ी चुनौती होगी. अब देखना ये है की क्या मुख्यमंत्री बदलने से भाजपा अगले एक साल में गुजरात में अपनी कमजोर इमारत की मरम्मत कर लेगी यी नहीं?