Combine Trick : विपक्ष का लक्ष्य तय, पर BJP को भी अज्ञात भय सता रहा!

विपक्ष की गठबंधन बैठक के दूसरे दिन बीजेपी ने भी कुनबा की गिनती की!

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Combine Trick : विपक्ष का लक्ष्य तय, पर BJP को भी अज्ञात भय सता रहा!

New Delhi : मंगलवार को जिस दिन बेंगलुरु में विपक्ष की दो दिन की महाबैठक खत्म हुई, उसी दिन दिल्ली में एनडीए के 39 दल जुटे। लोकसभा चुनाव से पहले अपना-अपना कुनबा बढ़ाने की कवायदों, बीजेपी की अगुआई वाले एनडीए और एकजुट विपक्ष की बैठकों से एक बात तो साफ है कि कोई भी पक्ष जीत को लेकर आश्वस्त नहीं है। इसलिए गठबंधन करके साझेदारों की संख्या बढ़ाने में जुटे हैं।

दोनों गठबंधनों में जो सबसे अहम फर्क है वो ये है कि विपक्ष का मकसद सिर्फ एक लक्ष्य तक सीमित है कि मोदी और बीजेपी को केंद्र की सत्ता से हटाना। अब तो विपक्ष ने अपने नए गठबंधन को INDIA (इंडियन नैशनल डिवेलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस) नाम देकर राष्ट्रवाद का तड़का भी लगा दिया। करीब एक दशक से केंद्र की सत्ता से बाहर रहे ज्यादातर दल अल्पकालिक सियासी लाभ के लिए साथ आ रही हैं। यही विपक्ष की मजबूती भी है और कमजोरी भी।

ताकत इसलिए कि इसी की बदौलत एक दूसरे की धुरविरोधी पार्टियां भी सीमित उद्देश्य के लिए साथ आ रही हैं। कमजोरी इसलिए कि इनमें से किसी के पास भी मोदी का लोकप्रिय चेहरा नहीं है। विपक्ष यही उम्मीद कर रहा है कि 2004 की तरह वोटर विचारधारा या चेहरे के बजाय बदलाव के लिए वोट दें। बीजेपी के लिए गठबंधन का कुनबा बढ़ाना सिर्फ सत्ता बचाने तक सीमित नहीं है।

नरेंद्र मोदी निश्चित तौर पर पार्टी और गठबंधन दोनों का चेहरा हैं, उनके नेतृत्व में पार्टी और गठबंधन दोनों साथ मिलकर काम कर सकते हैं। क्योंकि, दोनों को पता है कि मोदी ही उनकी ताकत हैं। उनके बिना उनका भविष्य अनिश्चित होगा। बीजेपी के लिए 2024 में सत्ता बरकरार रखना काफी अहम है। ये सिर्फ इसलिए अहम नहीं है कि पिछले एक दशक में आर्थिक और राजनीतिक बढ़त मिली है, उसे और मजबूती मिलेगी। बल्कि, उससे भी ज्यादा इसलिए अहम है कि 2004 की तरह अप्रत्याशित ढंग से सत्ता से बाहर होने पर बीजेपी का हिंदुत्व अजेंडा भी बेपटरी हो जाएगा।

बीजेपी का कोर बेस इस अजेंडे पर तेजी से आगे बढ़ने के लिए बैचेन है। लेकिन, सत्ता को बरकरार रखने की चुनौती की वजह से पार्टी ऐसी आवाजों को अभी नियंत्रित कर रही है। संक्षेप में कहें तो सत्ता को बरकरार रखना न सिर्फ बीजेपी की राजनीतिक जरूरत है। बल्कि भविष्य में खुद को टूट से बचाने का हथियार भी है। बीजेपी को ये भी चिंता सता रही होगी कि ऐसे वक्त में जब आर्थिक मोर्चे पर देश तेजी से मजबूत हो रहा है, 2024 में हार से उसे विपक्ष मजबूत अर्थव्यवस्था के क्रेडिट से महरूम कर देगा। कड़ी मेहनत से उसकी उगाई फसल को कोई और काट लेगा। ठीक वैसे ही जैसे 2004 से 14 के बीच आर्थिक मोर्चे पर मजबूती के लिए बीजेपी को अभी तक कोई श्रेय नहीं मिला।