Commissioning of Schools : प्राइवेट पब्लिशर्स की चंद किताबें पालकों की जेब खाली कर रही!
Indore : नए शिक्षा सत्र में एक महीने के लिए स्कूल खुले हैं। इसमें भी स्कूल वालों ने सात दिन में ही बच्चों को किताबें और यूनिफॉर्म की खरीदी करवा दी। सिलेबस में चार किताबें सरकारी हैं और आठ प्राइवेट पब्लिशर्स की। प्राइवेट पब्लिशर्स की यही किताबें पालकों की जेब खाली करवा रही है। ऐसे में प्रशासन की धारा 144 का कोई भी असर दिखाई नहीं दे रहा।
जानकारी के अनुसार एनसीईआरटी की एक किताब की कीमत 99 रुपए है, वहीं प्राइवेट पब्लिशर्स की एक बुक्स की कीमत 360 रुपए से शुरू होती है। इसमें भी कई किताबें तो 450 रुपए कीमत की है। नया शिक्षा सत्र शुरू होते ही प्राइवेट स्कूलों का कमीशनखोरी का धंधा चालू हो गया। पहली से पांचवी तक के कोर्स में 8 से 10 किताबें हैं। जिनमें चार एनसीईआरटी की हैं और बाकी प्राइवेट पब्लिशर्स की।
शिक्षा विभाग के अधिकारियों के अनुसार स्कूल वाले कोर्स में प्राइवेट पब्लिशर्स की दो से ज्यादा किताबें नहीं रख सकते हैं, इसके बाद भी छात्रों के कोर्स में आठ किताबें तक प्राइवेट पब्लिशर्स की रखी गई हैं। इन किताबों की कीमतें पालकों की जेबों पर भारी पड़ रही है। स्कूल संचालक दबाव डालकर बच्चों से पहले किताबें खरीदने का कह रहे हैं। उसके बाद ही पढ़ाई शुरू करने का बोलते हैं।
किताबों की सूची भी उन्होंने कुछ चुनिंदा दुकानों पर ही दी है। ऐसे में स्कूल संचालक सीधा दुकान का नाम न बताकर इनडायरेक्टली उनकी ही पसंद की दुकान से किताबें खरीदी करवा रहे हैं। जिला शिक्षा अधिकारी मंगलेश व्यास से चर्चा की गई तो उन्होंने बताया कि आप शिकायत करें हम कार्रवाई करेंगे। लेकिन, जब उनसे यह कहा कि जो भी शिकायत करेगा उनके बच्चों को स्कूल संचालक परेशान करेंगे तो उन्होंने कहा कि इस बारे में वे कुछ नहीं कर सकते।
सब्जेक्ट चयन का दबाव बना रहे
अभिभावकों ने बताया कि उनके बच्चों ने अभी 10वीं की परीक्षा दी है। रिजल्ट आने में अभी एक-दो महीने लग जाएंगे। इसके बाद भी स्कूलों में उनके बच्चों पर सब्जेक्ट चुनने के लिए दबाव बनाया जा रहा है। रिजल्ट आने के पूर्व सब्जेक्ट तय करवाने के पीछे भी कमिशनखोरी का बड़ा खेल स्कूल संचालकों द्वारा खेला जा रहा है।
बिल भी नहीं दे रहे दुकानदार
अभिभावकों द्वारा किताबें-यूनिफॉर्म आदि जिन दुकानों से खरीदी जा रही हैं, वे दुकानदार इनका बिल भी नहीं दे रहे हैं। जो अभिभावक बिल की मांग करते हैं तो वे कह रहे हैं कि इनका बिल नहीं दिया जाता। बिल नहीं देकर वे न सिर्फ बड़ा कमीशन स्कूल संचालकों को दे रहे हैं, बल्कि सरकार से टैक्स चोरी करने की आशंका भी बलवती होती है। अब देखते हैं मामले में प्रशासन क्या कार्रवाई करता है।