Indore : जिला कोर्ट ने 22 साल पहले मनोरमागंज में एक बहुमंजिला इमारत को अतिक्रमण बताकर डायनामाइट से उड़ाने के मामले में प्रशासन को दोषी ठहराया है। कोर्ट ने अपने आदेश में जमीन मालिक को सवा करोड़ रुपए से ज्यादा का मुआवजा देने को कहा है। ब्याज सहित यह राशि करीब 3 करोड़ होती है। 23 जून 2000 को जिला प्रशासन ने इस बिल्डिंग को सरकारी जमीन पर बनी बताकर तोड़ दिया था! संभवत: यह पहला मामला है, जिसमें निजी जमीन पर बनी बिल्डिंग को तोड़ने के एवज में कोर्ट ने प्रशासन को इतनी बड़ी रकम चुकाने का आदेश दिया।
प्रशासन को बिल्डर विनोद लालवानी की बहुमंजिला इमारत के बारे में प्रशासन को शिकायत की गई थी कि यह सरकारी जमीन पर अतिक्रमण करके बनाई गई है। इस आधार पर प्रशासन का अमला 23 जून 2000 को मनोरमागंज पहुंचा और डायनामाइट से इस इमारत को ध्वस्त कर दिया। जबकि, वास्तव में यह बिल्डिंग सुरेश चंद्र भार्गव और उनके परिवार वालों की थी और उन्होंने सबूत भी दिए कि ये उनकी मालिकी हक़ की जमीन है! लेकिन, प्रशासन के अमले के साथ आए लोगों को कहना था कि वे सुरेश सहारा का भवन तोड़ने आएं हैं और भार्गव परिवार की बात अनसुनी कर दी। जबकि, भार्गव परिवार ने पहले ही कोर्ट से स्टे ले लिया था। लेकिन प्रशासन ने फिर भी बिल्डिंग तोड़ दी।
भार्गव परिवार ने अदालत से मुआवजे की राशि पर 12% की दर से ब्याज मांगा था। किंतु, कोर्ट ने केवल 6% ब्याज की दर से पैसा देने को कहा है! यानी इस राशि का ब्याज ही 1 करोड़ 26 लाख से ज्यादा होकर डेढ़ करोड़ के पार होता है। अब प्रशासन को करीब पौने 3 करोड़ से ज्यादा का चुकाने पड़ेंगे।
22 साल कोर्ट में केस लड़ा
इस मामले में सुरेश चंद्र भार्गव, उनके पुत्र चेतन भार्गव और पुत्री रचना भार्गव ने करीब 22 साल पहले जिला कोर्ट में दीवानी दावा लगाकर प्रशासन से एक करोड़ 26 लाख 91 हजार 441 रुपए का मुआवजा दिलाने की मांग की थी। उनका कहना था कि उनकी इमारत बनाने की नगर निगम से मंजूर थी! जिस पर उन्होंने जैमिनी कंस्ट्रक्शन से करीब सवा करोड़ रुपए में निर्माण कार्य कराया। इस इमारत से समय-समय पर समस्त प्रकार के करों की अदायगी भी होती रही! लेकिन, प्रशासन ने बलपूर्वक निजी जमीन पर बनी इमारत को चरनोई की सरकारी जमीन पर हुआ अतिक्रमण बताकर तोड़ दिया।
इस पर जज विजय डांगी ने कलेक्टर व तहसीलदार नजूल के खिलाफ आदेश पारित करते हुए आदेश दिए कि भार्गव परिवार को चाहे गए एक करोड़ 26 लाख 91 हजार 441 रुपए की नुकसानी की भरपाई करें और इस राशि पर इमारत तोड़ने की तारीख से 6 प्रतिशत की दर से ब्याज यानी करीब पौने 2 करोड़ रुपए भी अदा करें।
अतिक्रमण बताकर बिल्डिंग गिराई
मनोरमागंज में 2.46 एकड़ एरिया में फैली सर्वे नंबर 313 की यह जमीन सिटी इंप्रूमेंट ट्रस्ट बोर्ड की थी, जिसे उसने पहले अब्दुल अजीज खान को कब्जे में दी थी। लेकिन, खान उस पर निर्माण नहीं कर सका तो वर्ष 1932 में यह जमीन टीएन भार्गव के नाम ट्रांसफर कर दी गई थी, तब से उनके परिवार का इस जमीन पर कब्ज़ा था। जबकि, प्रशासन ने विनोद लालवानी के अतिक्रमण होने की शिकायत के चलते इस मल्टीस्टोरी बिल्डिंग को ढहाया था।
दलील दी थी कि जहां का साइट प्लान पास हो, वो जमीन सरकारी नहीं होती। परिजनों ने कोर्ट के समक्ष मुख्य रूप से तर्क दिया था कि प्रशासन ने उनकी इमारत की जगह का बकायदा साइट प्लान पास किया था। जहां साइट प्लान पास होता है, वो निजी जमीन होती है न कि सरकारी। प्रशासन इस दलील का संतोषजनक जवाब नहीं दे पाया और यह भी नहीं बता सका कि उसने किस वैध आधार पर इमारत को ध्वस्त कर दिया था।