आतंक से मुक्ति पाते छत्तीसगढ़ में लोकतंत्र का शंखनाद

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आतंक से मुक्ति पाते छत्तीसगढ़ में लोकतंत्र का शंखनाद

आलोक मेहता

आप अमेरिका के नियाग्रा फाल्स ( वाटर फाल्स  ) गए हैं या जाने का इरादा रखते हैं ? दोनों ही स्थितियों में मेरा अनुरोध होगा कि कृपया एक बार बस्तर में जगदलपुर – दंतेवाड़ा क्षेत्र के चित्रकोट वाटर फाल्स को देखने आनंद लेने जरुर जाएं |इसे छोटा नियाग्रा फाल्स कहने में ख़ुशी होगी | लेकिन सवाल होगा – यह तो बस्तर का सबसे खतरनाक कहा जाने वाला माओवादी नक्सल हिंसा प्रभावित इलाका है | जी रहा था , लेकिन इस क्षेत्र में अब हिंसा केवल कुछ आतंकी गुटों और सुरक्षा बलों के बीच गोलीबारी के दौरान होती है | यदि आप कोई चार्ट बनाएगें तो अमेरिका के विभिन्न शहरों में सिरफिरे बंदूकधारियों द्वारा की गई गोलीबारी से मरने वाले लोगों की संख्या बस्तर से अधिक होगी | अब बस्तर और सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ तेजी से जागरुक होकर प्रगति के रास्ते पर है | इस महीने फिर विधान सभा चुनाव के साथ दिसम्बर में नई सरकार बनाने के लिए शहरी लोगों से कई गुना अधिक उत्साह आदिवासियों के बीच है | पांच साल पहले के चुनाव में भी यहाँ 86 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ था |

कांकेर में इस बार प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की भारी जनसभा देखकर सचमुच आदिवासियों के आत्म विश्वास और भविष्य के लिए नई अपेक्षाओं की झलक मिलती है | यह मुद्दा भारतीय जनता पार्टी या कांग्रेस की चुनावी विजय पराजय का नहीं है  | यह विश्व में सफलता से आगे बढ़ते लोकतंत्र का है | पिछले चालीस वर्षों के दौरान एक पत्रकार के नाते मुझे बस , जीप , कार , विमान और हेलीकाप्टर से छत्तीसगढ़ जाने के अवसर मिले हैं | सबसे पहले जगदलपुर के आगे एक गांव के हाट बाजार में एक स्थानीय अधिकारी के साथ उनकी भाषा में बात करने का अवसर मिला तो पता चला था कि ” करीब आठ दस मील चलकर आया आदिवासी थोड़ा सा नमक खरीदने आया था , ताकि काले    लाल चींटों की चटनी में नमक मिलाकर खा सके | महुआ तो पत्ते में रखकर पी सकता है | ” और पिछले चुनाव से पहले रमन सिंह के भाजपा राज के दौरान जाने पर दंतेवाड़ा के  हाट बाजार में ऐसा लगा , जैसे दिल्ली के मयूर विहार में सोमवार को लगने वाले साप्ताहिक हाट बाजार में आए हैं | आदिवासी अपनी वेशभूषा में मस्ती में , सब्जी बेचने के साथ ई रिक्शा चलाती महिलाएं , नक्सल हिंसा प्रभावित बच्चों के लिए आधुनिकतम स्कूल , अनाज बेचने और व्यापार धंधे के सलाह केंद्र देखकर बदला छत्तीसगढ़ सुखद लगता है | कभी रायपुर से जगदलपुर बस से जाने पर मुझे  दस बारह घंटे लगे थे , अब टोयटा  इनोवा गाडी से दंतेवाड़ा से रायपुर देर शाम चलकर 6 घंटे में पहुँच गए | यही नहीं जगदलपुर से रायपुर और दिल्ली हैदराबाद के लिए विमान यात्रा भी आसान हो गई है |

छत्तीसगढ़ पहले मध्य प्रदेश का हिस्सा था | सन 2000 में  छत्तीसगढ़ के गठन के बाद प्रगति के रास्ते अधिक खुल गए | माओवादी नक्सल समस्या बहुत हद तक नियंत्रित हुई है , लेकिन राजनीति और क़ानूनी सीमाओं के कारण कुछ इलाके प्रभावित हैं | पडोसी राज्यों से भी समस्या के निदान में केंद्र सरकार और सुरक्षा बलों पर निर्भरता है |इस  बार चुनाव के लिए चुनाव आयोग ने बस्तर क्षेत्र में 126 नए मतदान केंद्र बनाए हैं,वहीं संभाग में कुल 2483 बूथों में मतदान प्रक्रिया संचालित की जाएगी। बस्तर क्षेत्र के कांकेर, अंतागढ़, भानुप्रतापुर, सुकमा, कोंटा, चित्रकोट, जगदलपुर, बस्तर, कोंडागांव आदि विधानसभा क्षेत्रों में नए बूथों में मतदाताओं को अपने गांवों में पहली बार वोट डालने का अनुभव मिलेगा। पहले  चरण की जिन 20 सीटों पर मतदान होना है, वहां की 12 सीटें अति संवेदनशील हैं। नक्सली हिंसा के बाद भी यहां रिकार्ड मतदान हुआ है। निर्वाचन कार्यालय ने अतिसंवेदनशील क्षेत्रों को अलग से चिन्हांकित किया है।पिछले पांच वर्षों में इन अति नक्सल प्रभावित इलाकों में 60 से अधिक सुरक्षा बल कैंप स्थापित किये गये हैं |

विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच मुख्य मुकाबला होगा। हालांकि, छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस जोगी के साथ आम आदमी पार्टी भी इस चुनाव ताल ठोकेगी। एक ओर भाजपा सत्‍ता में वापसी के लिए जी तोड़ मेहनत कर रही है, तो दूसरी तरफ कांग्रेस के सामने सत्ता बचाने की चुनौती है।कांग्रेस ने 2018 के विधानसभा चुनाव में राज्य में 90 में से 68 सीटें जीतकर 15 साल बाद राज्य की सत्ता हासिल की । वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के नेतृत्व में उतरी भाजपा को केवल 15 सीटें हासिल हुई थीं। इस बार उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में पेश नहीं किया गया , लेकिन मोदी के साथ प्रदेश के चुनाव अभियान का प्रमुख चेहरा वही हैं | इसलिए भाजपा अधिकाधिक सीटें और सरकार बनाने के लिए बड़े दावे के साथ मैदान में हैं |

जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के प्रदेश अध्यक्ष और अजीत जोगी के बेटे अमित जोगी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के खिलाफ पाटन सीट से चुनाव लड़ने जा रहे हैं। उनके नामांकन दाखिल करते ही यह सीट बेहद दिलचस्प हो गई है।  ऊपर से भले ही यह दो राजनीतिक दलों की चुनावी लड़ाई लगती हो लेकिन तहों में जाने पर यह बेहद निजी लड़ाई मालूम पड़ती है।छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी और अमित जोगी प्रारम्भ  से ही खलनायक की तरह विवादासपद  रहे हैं | जोगी परिवार ने इस क्षेत्र के श्यामा चरण विद्या चरण शुक्ल नेता परिवार , मोतीलाल वोरा , रमन सिंह सबके विरोध में हर संभव हथकंडे अपनाए | अमित जोगी तो हत्या से जुड़े एक मामले में जेल तक रहा | सत्ता के दुरुयोग के गंभीर आरोप रहे | लेकिन कांग्रेस नेतृत्व और गाँधी परिवार के वरद हस्त के कारण बचते रहे |

अमित जोगी ने  पिता अजीत जोगी के साथ कांग्रेस से अलग होकर 2016 में नई पार्टी बनाई। 2018 के विधानसभा चुनावों में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ ने बसपा के साथ एलांयस किया। अजीत जोगी की पार्टी को पांच और बसपा को दो सीटें मिलीं। राज्य में भारी बहुमत के साथ कांग्रेस सरकार आ गई। 2020 में अजीत जोगी नहीं रहे। अजीत जोगी के निधन के बाद उनकी पत्नी रेणु जोगी ने इस पार्टी का विलय कांग्रेस में करने की कोशिशें शुरू कीं। यह कोशिशें करीब-करीब परवान भी चढ़ गईं थीं लेकिन एक शर्त की वजह से सब कुछ रुक गया। अजीत जोगी के ना रहने के बाद उनकी पत्नी और पूर्व कांग्रेस नेता रेणु जोगी इस पार्टी का विलय कांग्रेस में चाहती थीं। वह लंबे समय से कांग्रेस में विधायक रह चुकी थीं। उन्होंने स्टेट लीडरशिप के साथ-साथ कांग्रेस हाईकमान से भी बात शुरू की।उनकी सोनिया गांधी से इस विषय में बात हो रही थी। सोनिया और रेणु की दशकों पुरानी जान-पहचान थी। सोनिया इस विलय के खिलाफ नहीं थीं लेकिन उन्होंने अंतिम फैसला लेने के लिए राज्य की ईकाई को ही अधिकृत किया। रेणु के संबंध राज्य की ईकाई के नेताओें के साथ बहुत मधुर तो नहीं थे लेकिन खटासपूर्ण भी नहीं थे। पार्टी के नेताओं के साथ बात शुरू हुई। लेकिन कांग्रेस की राज्य ईकाई ने उनके सामने एक शर्त रख दी। यह विलय की ऐसी शर्त थी जिसे पूरा कर पाना संभव नहीं था।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इस विलय के खिलाफ थे। वह किसी भी हालत में जोगी परिवार की कांग्रेस में फिर से प्रवेश  नहीं चाहते थे। राज्य का कोई भी नेता इस पार्टी के विलय को लेकर सहज नहीं था। उसकी एकमात्र वजह अमित जोगी थे। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, टीएस सिंह देव सहित सभी नेता  इस विलय के खिलाफ थे । चूंकि सोनिया गांधी इस विलय के खिलाफ नहीं थीं इसलिए पार्टी के नेताओं ने रेणु को दो टूक तो मना नहीं किया लेकिन उनके सामने एक शर्त रख दी गई। रेणु जोगी से कहा गया कि कांग्रेस पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के सभी नेताओं को कांग्रेस में ले लेगी लेकिन वह अमित जोगी को नहीं लेगी। अमित के बिना यदि पार्टी विलय करना चाहती है तो विचार किया जा सकता है। जैसा कि स्वाभाविक ही थी इस शर्त के बाद विलय की बात टूट गई। इसी के साथ भूपेश बघेल और जोगी परिवार के बीच की राजनीतिक तल्खी एक निजी तल्खी में बदल गई। पाटन की सीट से उनका नामांकन दाखिल करना राजनीतिक पंडितों को राजनीति से ज्यादा निजी लग रहा है।

2018 के विधानसभा चुनाव में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ अपने उम्मीदवारों का एलान कर रही थी। उस समय तक भी रेणु जोगी कांग्रेस पार्टी में बनी रहीं। कांग्रेस के लिए असहजता बढ़ती गई। कांग्रेस ने जब रेणु जोगी की पारंपरिक सीट कोंटा  से किसी और प्रत्याशी की घोषणा कर दी तब उसके बाद रेणु जोगी ने जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ की सदस्यता ली और उस पार्टी ने नामांकन दाखिल किया। एक तरह से कांग्रेस पार्टी ने कभी भी रेणु जोगी को पार्टी ने निकाला नहीं। बताते हैं कि सीएम भूपेश को छोड़कर रेणु जोगी के संबंध पार्टी के बाकी नेताओं के साथ तल्खी वाले नहीं हैं। पाटन की सीट अब दिलचस्प हो गई है। पहले यहां पर भूपेश बघेल और बीजेपी के दुर्ग से सांसद विजय बघेल के बीच सीधी लड़ाई थी। विजय बघेल 2008 के चुनाव में भूपेश को हरा भी चुके हैं। अमित जोगी ने अंतिम दिन  इस लड़ाई में आए हैं  । उनके आने से यह मुकाबला दिलचस्प हो गया है। पाटन सीट पर सतनामी समाज के वोटरों की संख्या ठीक-ठाक है। सतनामी समाज के लोग जोगी के पारंपरिक वोटर रहे हैं। यदि बड़ी संख्या में वोटर अमित जोगी के पक्ष में आते हैं  तो निश्चित ही भूपेश बघेल  के सामने चुनौती खड़ी होगी।

Author profile
ALOK MEHTA
आलोक मेहता

आलोक मेहता एक भारतीय पत्रकार, टीवी प्रसारक और लेखक हैं। 2009 में, उन्हें भारत सरकार से पद्म श्री का नागरिक सम्मान मिला। मेहताजी के काम ने हमेशा सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।

7  सितम्बर 1952  को मध्यप्रदेश के उज्जैन में जन्में आलोक मेहता का पत्रकारिता में सक्रिय रहने का यह पांचवां दशक है। नई दूनिया, हिंदुस्तान समाचार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान में राजनितिक संवाददाता के रूप में कार्य करने के बाद  वौइस् ऑफ़ जर्मनी, कोलोन में रहे। भारत लौटकर  नवभारत टाइम्स, , दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान, आउटलुक साप्ताहिक व नै दुनिया में संपादक रहे ।

भारत सरकार के राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य, एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व महासचिव, रेडियो तथा टीवी चैनलों पर नियमित कार्यक्रमों का प्रसारण किया। लगभग 40 देशों की यात्रायें, अनेक प्रधानमंत्रियों, राष्ट्राध्यक्षों व नेताओं से भेंटवार्ताएं की ।

प्रमुख पुस्तकों में"Naman Narmada- Obeisance to Narmada [2], Social Reforms In India , कलम के सेनापति [3], "पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा" (2000), [4] Indian Journalism Keeping it clean [5], सफर सुहाना दुनिया का [6], चिड़िया फिर नहीं चहकी (कहानी संग्रह), Bird did not Sing Yet Again (छोटी कहानियों का संग्रह), भारत के राष्ट्रपति (राजेंद्र प्रसाद से प्रतिभा पाटिल तक), नामी चेहरे यादगार मुलाकातें ( Interviews of Prominent personalities), तब और अब, [7] स्मृतियाँ ही स्मृतियाँ (TRAVELOGUES OF INDIA AND EUROPE), [8]चरित्र और चेहरे, आस्था का आँगन, सिंहासन का न्याय, आधुनिक भारत : परम्परा और भविष्य इनकी बहुचर्चित पुस्तकें हैं | उनके पुरस्कारों में पदम श्री, विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, पत्रकारिता भूषण पुरस्कार, हल्दीघाटी सम्मान,  राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार आदि शामिल हैं ।