कांग्रेस @ 2028 …

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कांग्रेस @ 2028 …

दशकों बाद एक बार फिर कांग्रेस की नई पीढ़ी नेतृत्व के लिए बड़े पदों पर काबिज हो गई है। 2023 में सब कुछ गंवाने के बाद आखिरकार कांग्रेस ने यह कदम उठा ही लिया है। इसे यह भी माना जा सकता है कि जीवनभर केंद्रीय राजनीति में सक्रिय रहे कमलनाथ ने 2018 में मध्यप्रदेश आकर मुख्यमंत्री, नेता‌ प्रतिपक्ष और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सभी पदों पर रहकर राज्य की राजनीति में संतुष्टि पा ली है। और अब सभी बड़े पद नई पीढ़ी को सौंपकर अपने पार्टी के प्रति उत्तरदायित्व की इति श्री कर ली है। यह कदम निश्चित तौर पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा का संचार करने वाला है। और यह माना जा सकता है कि कांग्रेस 2028 के लिए तैयार हो गई है। उमंग सिंघार आदिवासी समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं, तो हेमंत कटारे सवर्णों का प्रतिनिधित्व करते हैं और जीतू पटवारी ओबीसी वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। ऐसे में करीब अस्सी फीसदी मतदाताओं को साधने की सफल कोशिश कांग्रेस ने की है।‌ सबसे बड़ी बात यह है कि तीनों नेता युवा है, ऊर्जावान हैं और पार्टी हित में अपना बेस्ट परफॉर्मेंस देने को तैयार हैं।
2003 से मध्यप्रदेश में पंद्रह माह छोड़कर अभी तक भाजपा की सरकार है। और 2003 से 2023 तक कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, सुरेश पचौरी, अरुण यादव, ज्योतिरादित्य सिंधिया (15 माह की कांग्रेस सरकार के बाद अब भाजपा में), अजय सिंह, राकेश सिंह चतुर्वेदी, डॉ. गोविंद सिंह जैसे कांग्रेस के कद्दावर नेता पार्टी के मुख्य मंच पर नजर आते रहे हैं। अब पार्टी का शीर्ष नेतृत्व यह पूरी तरह से समझ चुका है कि बिना नए‌ चेहरों को नेतृत्व सौंपे मध्यप्रदेश में पार पाना संभव नहीं है।‌ पार्टी की परंपरागत गुटबाजी को खत्म करने में भी सवर्ण, ओबीसी और आदिवासी वर्ग की यह तीन मूर्तियां महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। और यदि ऐसा हो गया तो पार्टी आधी लड़ाई खुद ही जीत लेगी। और बाकी आधी लड़ाई मैदान में सक्रिय होकर भाजपा से दो-दो हाथ कर आत्मविश्वास हासिल कर जीतने का दम भर लेगी। बाकी फिर 2028 में मुकाबला भाजपा जैसी कैडर बेस पार्टी और 15 माह कम कर 25 साल तक सत्ता में रहे दल से होगा, सो संघर्ष कठिन रहेगा यह भी तय है। हम इन चेहरों के साथ 2028 की बात भी इसीलिए कर रहे हैं, क्योंकि 2024 में प्रदेश कांग्रेस के इन चेहरों से किसी करिश्मे की उम्मीद बेमानी है। वह तो यदि तब तक अस्तित्व में रहा तो इंडी गठबंधन और मोदी ब्रिगेड के बीच की ही बात है।‌ पिछली बार जब 2018 में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी, तब भी कांग्रेस 29 में से बमुश्किल छिंदवाड़ा संसदीय सीट ही बचा पाई थी। और इस बार भाजपा छिंदवाड़ा गढ़ को भी भेदने का लक्ष्य बना चुकी है। और ऐसा हो भी गया, तब भी कोई दांतों तले उंगली नहीं दबाएगा। कमलनाथ की इस परंपरागत सीट पर पिछले लोकसभा चुनाव में उनके पुत्र नकुलनाथ बहुत कम अंतर से ही जीत दर्ज कर पाए थे। हालांकि यहां की सभी विधानसभा सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है। ऐसे में दोबारा नकुलनाथ जीतते भी हैं, तब भी कोई शक नहीं करेगा।
जीतू पटवारी 2023 का विधानसभा चुनाव हार गए हैं, पर कांग्रेस में विशेष वजूद रखने वाले कद्दावर नेता हैं। हालांकि वह अभी राऊ से दो बार 2013 और 2018 में ही विधायक रहे हैं और 2023 में हारने के बाद पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष बनाकर उन पर भरोसा जताया है। 2018 में 15 माह की कांग्रेस सरकार में वह उच्च शिक्षा, खेल एवं युवा कल्याण विभाग के कैबिनेट मंत्री रहे हैं। सकारात्मक पक्ष‌ यह है कि 19 नवंबर 1973 में जन्मे जीतू पटवारी की उम्र अभी 50 वर्ष ही है। तो 23 जनवरी 1974 को जन्मे उमंग सिंघार 49 वर्ष के हैं। स्वर्गीय जमुना देवी के भतीजे उमंग गंधवानी विधानसभा क्षेत्र से चौथी बार के विधायक हैं। 15 माह की कांग्रेस सरकार में वह वन विभाग के कैबिनेट मंत्री रहे हैं। उस दौर में सीधे दिग्विजय सिंह पर आरोपों की झड़ी लगाने वाले उमंग ने हाल ही में दिग्विजय से मिलकर गिले-शिकवे पर पर्दा डाला था। विवादों से सिंघार का गहरा नाता रहा है। तो 3 दिसंबर 1985 को जन्मे हेमंत सत्यदेव कटारे पिता सत्यदेव कटारे के निधन के बाद पहली बार उपचुनाव में 2017 में अटेर से विधायक बने तो 2023 में यहीं से दूसरी बार विधायक चुने गए। अभी 38 वर्ष की उम्र है और आगे चंबल क्षेत्र में कांग्रेस का प्रभावी चेहरा बनने की संभावनाओं को समेटे हैं।
तो पटवारी, सिंघार और कटारे की नियुक्ति के साथ कांग्रेस के उम्रदराज दिग्गजों की अनौपचारिक विदाई का संदेश केंद्रीय नेतृत्व ने दिया है। नाथ-दिग्विजय की पारी और पुत्रों पर राजनैतिक प्रेम का समय अब पूरा हो गया है। अब युवा पीढ़ी का दौर शुरू होता लग रहा है, जिसकी सफलता-असफलता का आकलन वक्त के साथ होता रहेगा। पर फिलहाल तो कांग्रेस की इस कवायद को ‘देर आयद दुरुस्त आयद’ और ‘जब जागो तभी सवेरा’ जैसे मुहावरों के जरिए तर्कसंगत ठहराया जा सकता है। कांग्रेस इसी उम्मीद के साथ खुश रहकर फीलगुड कर सकती है कि अब 2028 में युवा नेतृत्व नैया पार लगाने में सफल होगा…।