छतरपुर में बागियों के कारण संकट में कांग्रेस,राजनगर, बिजावर में बागियों को मिलेंगे सपा के टिकट

छतरपुर, महाराजपुर में भी बागियों से कांग्रेस को खतरा

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छतरपुर में बागियों के कारण संकट में कांग्रेस,राजनगर, बिजावर में बागियों को मिलेंगे सपा के टिकट

 

दिनेश निगम ‘त्यागी’ की विशेष रिपोर्ट

 

 

बुंदेलखंड अंचल के छतरपुर जिले में कांग्रेेस को बागियों के कारण बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है। 2018 में कांग्रेस ने जिले की 6 में से 4 सीटें जीती थीं। एक-एक सीट भाजपा और सपा को मिली थी। बाद में मलेहरा से जीते कांग्रेस के एक विधायक प्रद्युम्न सिंह लोधी पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे और बिजावर से सपा के टिकट पर जीते राजेश शुक्ला भी भाजपा के साथ हैं। कांग्रेस ने 2023 के चुनाव के लिए जिले की सभी सीटों के प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं। ताजा राजनीतिक हालात देखकर लगता है कि कांग्रेस को पिछली स्थिति को दोहराना मुश्किल होगा। इसकी दो वजह हैं। एक, कुछ टिकट पार्टी ने कमजोर दिए हैं तो कुछ पर ताकतवर बागी कांग्रेस का खेल बिगाड़ने की स्थिति में हैं।

विधायकों के टिकट न काटने का नुकसान

विधायकों के टिकट न काटने का नुकसान कांग्रेस को राजनगर में उठाना पड़ सकता है। पार्टी ने यहां से विक्रम सिंह ‘नातीराजा’ को फिर टिकट दिया है, जबकि सर्वे पूर्व विधायक शंकर प्रताप सिंह ‘मुन्ना राजा’ और उनके बेटे सिद्धार्थ शंकर बुुंदेला के पक्ष में आ रहे थे। सिद्धार्थ शंकर बुंदेला ने कांग्रेस के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है। वे सपा के टिकट पर चुनाव लड़ सकते हैं। उनके लिए सपा यहां से अपना टिकट बदल सकती है। इस सीट में भाजपा में भी बगावत हुई है लेकिन इसकी वजह से कांग्रेस को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है।

छतरपुर में बब्बूराजा, महाराजपुर मे दौलत बागी

छतरपुर और महाराजपुर में भी कांग्रेस ने विधायकों को फिर मौका दिया है। दोनों प्रत्याशी कमजोर भी नहीं हैं लेकिन छतरपुर में पूर्व मंडी अध्यक्ष डीलमणि सिंह ‘बब्बूराजा’ और महाराजपुर में दौलत तिवारी की बगावत से विधायकों आलोक चतुर्वेदी और नीरज दीक्षित को नुकसान उठाना पड़ सकता है। छतरपुर में जब भी बब्बूराजा चुनाव लड़ते हैं, कांग्रेस नहीं जीतती। उन्हें 18 से 23 हजार तक वोट मिलते हैं। पिछले चुनाव में बब्बू राजा ने आलोक का साथ दिया था तब वे लगभग साढ़े 3 हजार वोटों के अंतर से चुनाव जीत सके थे। बब्बूराजा इस बार कांग्रेस से बगावत कर बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। महाराजपुर में दौलत तिवारी कांग्रेस के नीरज का कितना नुकसान करते हैं, देखने लायक होगा। चंदला सीट के प्रत्याशी हरिप्रसाद अनुरागी ही ऐसे दिखते हैं जो इस बार चुनाव जीत सकते हैं। 2018 का चुनाव वे लगभग एक हजार वोटों के अंतर से ही हारे थे। हालांकि यहां भी कुछ दावेदारों द्वारा बगावत करने की खबर है।

बिजावर उप्र के बाहुबली को टिकट

कांग्रेस ने बिजावर में उप्र के बाहुबली चरण सिंह यादव को टिकट क्यों दिया, यह किसी की समझ में नहीं आया। वे टीकमगढ़ से सपा के टिकट और पन्ना में उनकी पत्नी बसपा के टिकट पर चुनाव लड़कर हार चुके हैं। चरण उप्र के सपा नेता दीपनारायण यादव के रिश्तेदार हैं। दीप नारायण की पत्नी मीरा यादव सपा के टिकट पर निवाड़ी से चुनाव लड़ रही हैं। चरण बड़े माफिया और पैसे वाले हैं लेकिन इन्हें बिजावर से कांग्रेस ने क्यों टिकट दिया, यह कोई नहीं समझ पा रहा। लिहाजा नाराज होकर एक दावेदार सेवादल के मुख्य जिला संगठक राजेश शर्मा इस्तीफा दे चुके हैं। दूसरे ताकतवर दावेदार भुवन विक्रम सिंह ‘केशु राजा’ सपा के टिकट पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है। यहां कांग्रेस को नुकसान तय है।

मलेहरा में राम सिया भी मजबूत नहीं

कांग्रेस ने मलेहरा से उप चुनाव में साढ़े 17 हजार से भी ज्यादा वोटों से हारीं रामसिया भारती को फिर प्रत्याशी बनाया है। इस सीट में लोधी और यादव मतदाताओं की तादाद सबसे ज्यादा और लगभग बराबर है। राम सिया पिछले उप चुनाव में भी कमजोर पड़ी थीं, इस बार भी लगभग वैसे ही हालात हैं। कांग्रेस यदि यहां से किसी मजबूत यादव प्रत्याशी को मैदान में उतारती तो पांसा पलट सकता था। पुलिस के एक रिटायर्ड अफसर रक्षपाल सिंह यादव की यहां से तैयारी भी अच्छी थी। राम सिया भी लोधी है। मलेहरा में जब भी दोनों दलों से लोधी मैदान में होते हैं तो भाजपा का लोधी भारी पड़ता है। क्योंकि तब समाज की बड़ी नेता उमा भारती भाजपा के लोधी के साथ खड़ी होती हैं।