“सनातन” और “हिंदू-राष्ट्र” पर कांग्रेस को नाथ से नसीहत लेने की जरूरत…
जिस देश में 82 फीसदी हिंदू हैं, वहां पर सनातन धर्म के विरोध में बयान देकर उदयनिधि स्टालिन इन दिनों सुर्खियां बटोर रहे हैं। चुनावी बहस के विषय को जिंदा कर उदय दक्षिण की राजनीति में अपनी सनातन विरोधी योग्यता की ताल ठोक रहे हैं। और अपने बयान पर कायम रहकर यह बताना चाह रहे हैं कि हममें सनातन विरोधी बने रहने का दम है। जिस लोकतंत्र की हम वकालत कर रहे हैं, उतने ही ज्यादा अलोकतांत्रिक बनकर हम सनातन धर्म को गालियां खुलकर देने का पागलपन रखते हैं। समस्या इस बात की है कि ‘अनेकता में एकता’ और ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ के नाम पर क्या इस तरह के बकवास समाज में विषबेल की तरह हमेशा ही लहलहाते रहेंगे। और समाज को जहरीला बनाते रहेंगे। और यही बातें फिर आगे बढ़कर एक-दूसरे को उसकी औकात दिखाने के विद्वेषपूर्ण माहौल में बदल जाती हैं, तब फिर कौन सही और कौन गलत पर बहस शुरू हो जाती है। दूसरी तरफ तमिलनाडु और कर्नाटक कांग्रेस उदयनिधि के बयान का खुलकर समर्थन कर पूरी कांग्रेस को ही कटघरे में खड़ा कर यह जताते हैं कि कांग्रेस सनातन विरोधी है। ऐसी बयानबाजी का समर्थन ही हिंदू विरोधी साबित कर कांग्रेस की लुटिया डुबोने का काम करती है। ऐसे में मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के बयान सनातन के विरोध का समर्थन करने वाले कांग्रेस नेताओं को आइना दिखाते हैं। यह बात अलग है कि सनातन विरोधी बयान का समर्थन करने वाले नेता इस पर गौर करना जरूरी नहीं समझते।
दरअसल पूरा मामला यह है कि एक सितंबर को मार्क्सवादी पार्टी से जुड़ा संगठन तमिलनाडु प्रगतिशील लेखक और कलाकार संघ की ओर से चेन्नई के कामराजार एरिना में सनातन उन्मूलन सम्मेलन का आयोजन किया गया था।इसमें भाग लेते हुए उदयनिधि स्टालिन ने ‘भारतीय मुक्ति संग्राम में आरएसएस का योगदान’ शीर्षक से व्यंग्यचित्रों वाली एक पुस्तक का विमोचन किया। उन्होंने सनातन धर्म और बीजेपी को लेकर भी भाषण दिया। उदयनिधि स्टालिन ने अपने संबोधन में कहा था, “इस सम्मेलन का शीर्षक बहुत अच्छा है। आपने ‘सनातन विरोधी सम्मेलन’ के बजाय ‘सनातन उन्मूलन सम्मेलन’ का आयोजन किया है। इसके लिए मेरी बधाई। हमें कुछ चीज़ों को ख़त्म करना होगा।” उन्होंने कहा कि ”हम उसका विरोध नहीं कर सकते। हमें मच्छर, डेंगू बुखार, मलेरिया, कोरोना वायरस इत्यादि का विरोध नहीं करना चाहिए। हमें इसका उन्मूलन करना चाहिए। सनातन धर्म भी ऐसा ही है। तो पहली चीज़ यही है कि हमें इसका विरोध नहीं करना है बल्कि इसका उन्मूलन करना है। सनातन समानता और सामाजिक न्याय के ख़िलाफ़ है। इसलिए आप लोगों ने सम्मलेन का शीर्षक अच्छा रखा है। मैं इसकी सराहना करता हूँ।”
राजस्थान के डूंगरपुर में एक जनसभा में अमित शाह ने कहा, “भारतीय गठबंधन की दो सबसे बड़ी पार्टियों डीएमके और कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के बेटे सनातन धर्म को ख़त्म करने की बात कर रहे हैं। क्या आप सनातन धर्म को ख़त्म करने के लिए तैयार हैं?” तमिलनाडु में बीजेपी के मौजूदा राज्य सचिव ए. अश्वत्थामन ने राज्यपाल आरएन रवि से उदयनिधि के ख़िलाफ़ मुक़दमा चलाने की अनुमति मांगी। वहीं दिल्ली में विनीत जिंदल ने उदयनिधि के ख़िलाफ़ दिल्ली पुलिस में चार धाराओं के तहत शिकायत दर्ज कराई है।
दरअसल यह स्थिति यहां तक इसलिए पहुंची है, क्योंकि आजादी के बाद से ऐसे विषयों पर विवादित बयान देने वालों को सबक नहीं सिखाया गया। पर अब ऐसी मानसिकता पर कड़ा प्रहार करने का समय आ गया है। तमिलनाडु की बात है तो वहाँ लंबे समय से सनातन विरोधी राजनीति चली आ रही है। उदयनिधि के इस भाषण को उसी के एक हिस्से के तौर पर देखा गया है। जो कि अब नहीं देखा जाना चाहिए। द्रविड़ कषगम के संस्थापक नेता पेरियार ने हिंदू धर्म के ख़िलाफ़ कड़े विचार व्यक्त किए थे। वे जीवन भर हिंदू धर्म के उन्मूलन, रामायण के विरोध और मंदिरों के उन्मूलन पर लेख लिखते रहे। क्योंकि उन्हें कभी आइना दिखाने की कोशिश ही नहीं हुई। इसीलिए उनके बाद द्रविड़ कषगम और पेरियार के अनुयायी समय-समय पर ऐसे विचार व्यक्त करते आए हैं। तमिलनाडु की दलित राजनीतिक पार्टी, विड़ूदलाई चिरुतैगल कच्ची (वीसीके) के मौजूदा अध्यक्ष तोल थिरुमावलवन लगातार सनातन विरोध की बात करते रहे हैं। उन्होंने सनातन के ख़िलाफ़ कई बड़े सम्मेलन आयोजित किए हैं। 2018 में पेरियार के स्मृति दिवस पर, थिरुमावलवन ने कहा था, “सामाजिक न्याय की जीत होगी और हम उस दिन सनातन को जड़ से उखाड़ फेंकेंगे”।
सांसद कार्तिक चिदंबरम ने कहा, “सनातन धर्म तमिलनाडु में एक जाति संरचना है। इसके अलावा, इसका कोई अन्य दार्शनिक अर्थ नहीं है। उदयनिधि ने जो कहा, उसमें कुछ भी ग़लत नहीं है। उन्होंने किसी जातीय समूह के विनाश का आह्वान नहीं किया।” कर्नाटक के राज्य मंत्री और कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के बेटे प्रियांक खड़गे ने जवाब दिया, “कोई भी धर्म जो समानता को बढ़ावा नहीं देता है, जो मानव गरिमा सुनिश्चित नहीं करता है, वह एक बीमारी की तरह ही है।”
कितनी बड़ी बिडंबना है कि कांग्रेस पार्टी ने इस पर अखिल भारतीय स्तर पर प्रतिक्रिया दी है। पार्टी के महासचिव (संगठन) केसी वेणुगोपाल ने कहा, ”सर्वधर्म समाज को लेकर कांग्रेस पार्टी में सर्वसम्मति है। हमारे गठबंधन में सभी दलों को अपने विचार व्यक्त करने का पूरा अधिकार है।”
वहीं उदयनिधि की राय के बारे में पूछे जाने पर मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ ने कहा, “यह उनकी राय है. लेकिन मैं इससे सहमत नहीं हूं।” ऐसे में ज़ाहिर है कि कमलनाथ और प्रियांक खड़गे के बयान के बीच का अंतर, स्पष्टता के साथ भारतीय राजनीति में उत्तर-दक्षिण विभाजन की ओर इशारा करता है। या फिर इसे यूं समझें कि मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में हिंदुत्व पर हमला करके वोट हासिल करना नामुमकिन है। इसीलिए कमलनाथ के भाषण में चेतावनी छिपी हुई है।
जब छिंदवाड़ा में बाबा बागेश्वर सरकार पंडित धीरेंद्र शास्त्री की राम कथा हो रही थी, तब मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने हिंदू राष्ट्र को लेकर कहा था कि देश की 82 फ़ीसदी जनता हिंदू है तो ये कोई कहने कि बात नहीं है, ये हिंदू राष्ट्र तो है ही। राम कथा पाठ में ना सिर्फ़ कमलनाथ बल्कि उनका पूरा परिवार ही धीरेंद्र शास्त्री की सेवा में हाज़िर रहा था। और अब छिंदवाड़ा में पंडित प्रदीप मिश्रा की शिव कथा हो रही है, तब भी कमलनाथ पूरे परिवार सहित हाजिर हैं। सनातन विरोधी बयान पर मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा, यह उदयनिधि की निजी राय होगी। मैं उनसे सहमत नहीं हूं। मध्य प्रदेश में कांग्रेस के चुनाव प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि मैं एक भारतीय के तौर पर कह सकता हूं कि सनातन परंपरा भारतीय संस्कृति का हिस्सा है और वह युग युगांतर तक रहेगी। तो कमलनाथ से उन कांग्रेस नेताओं को नसीहत लेने की सख्त जरूरत है, जो सनातन विरोधी भेंड़चाल में शामिल होकर कांग्रेस का ही अहित कर रहे हैं…।