CONGRESS’ SUICIDAL GOAL: कांग्रेस नेता क्यों चाहते हैं सृजन के बजाय पार्टी का विसर्जन?

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CONGRESS’ SUICIDAL GOAL: कांग्रेस नेता क्यों चाहते हैं सृजन के बजाय पार्टी का विसर्जन?

रंजन श्रीवास्तव की खास राजनीतिक रिपोर्ट

“मध्य प्रदेश में हर चुनाव के बाद कांग्रेस अपने हार की समीक्षा करती है और फिर पार्टी के नेता आगे की हार के लिए स्वयं उसका रास्ता तैयार करते हैं. यहाँ सृजन की बात बेमानी है क्योंकि यहाँ नेता पार्टी का विसर्जन करने पर ही आमादा हैं और पार्टी को उस स्थिति में लाकर खड़ा करना चाहते हैं जबकि उत्तर प्रदेश, बिहार, गुजरात तथा कुछ अन्य राज्यों की भांति उसका अस्तित्व मध्य प्रदेश में भी लगभग नहीं के बराबर हो जाए. वैसे भी पार्टी का अस्तित्व समाप्त जैसा ही है क्योंकि 2003 का बाद 15 महीनों को छोड़कर पार्टी लगातार सत्ता से बाहर है.”

यह कहना है पार्टी के एक युवा नेता का जो पार्टी के नेताओं के बयानबाजी से बहुत ही दुखी और निराश है. युवा नेता का कहना है कि अगर पार्टी को बड़े नेताओं के हिसाब से पहले की ही तरह चलाना है तो फिर संगठन सृजन जैसे भारी भरकम शब्द लेकर पार्टी के कार्यकर्ताओं को क्यों छला जा रहा है?

ताजा विवाद स्वयं पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी के बयान से उभरा है. प्रदेश में नशे के बढ़ते प्रभाव पर भाजपा सरकार को घेरने की कोशिश में उन्होंने आत्मघाती गोल कर डाला यह कहकर कि सरकार के आंकड़ों के अनुसार पूरे देश में सबसे ज्यादा शराब मध्य प्रदेश की महिलायें पीती हैं.

अगर उनके आंकड़ों पर ही बात की जाय तो वे गलत हैं. मध्य प्रदेश में सिर्फ 1.6% महिलाएं शराब का सेवन करती हैं, जो राष्ट्रीय औसत से कम है. सबसे ज्यादा शराब पीने वाली महिलाएं अरुणाचल प्रदेश (24%) और सिक्किम (16%) में हैं.

दूसरा, जबकि भाजपा महिलाओं के वोट पर लगातार फोकस कर रही है और लाड़ली लक्ष्मी से लेकर लाड़ली बहना जैसी महत्वाकांक्षी योजनाएं धरातल पर लागू करके महिलाओं के वोट के प्रति आश्वस्त है तो ऐसे में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष शराब सेवन के सन्दर्भ में महिलाओं का जिक्र करना ही गलत था.

एक तो कांग्रेस विपक्ष में रहकर महिलाओं के लिए कुछ करने की स्थिति में नहीं है. जब कांग्रेस 2018 में सरकार में आयी तो कोई ऐसी महत्वकांक्षी योजना जो महिलाओं को भाजपा से दूर ले जाती, लागू नहीं किया और ऐसे में कुछ प्रतिशत महिलाओं द्वारा शराब सेवन के आधार पर “मध्य प्रदेश की महिलाओं” को कटघरे में खड़ा करना कहाँ तक उचित माना जायेगा?

भाजपा का हमलावर होना स्वाभाविक है. अगर भाजपा का कोई नेता ऐसा बयान देता तो कांग्रेस भी भाजपा को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश करती.

जीतू पटवारी का बयान बाद में आया जबकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह और कमल नाथ 2020 में कांग्रेस सरकार के गिरने के सन्दर्भ में एक दूसरे को दोषी ठहरा चुके थे.

कांग्रेस नेतृत्व ने संगठन सृजन अभियान चलाकर पार्टी में जिला अध्यक्ष पद पर ऐसे नेताओं को लाने की भूमिका बनाई जो पार्टी को हर जिले में मजबूत कर सकें. बाहर के प्रदेशों से आब्जर्वर लाकर कांग्रेस नेतृत्व ने इस प्रक्रिया को स्थानीय गुटबाजी के प्रभाव से बचाने की कोशिश की पर नियुक्तियां होते ही भोपाल सहित कई जिलों में कार्यकर्ताओं ने या तो संगठन के निर्णय के खिलाफ प्रदर्शन किया या अपनी नाराजगी जताई.

भोपाल में पूर्व शहर अध्यक्ष मोनू सक्सेना के कैंप ने यहाँ तक आरोप लगाया कि वर्तमान अध्यक्ष जो कि व्यापम स्कैम में अभियुक्त के भाई हैं और दोनों ही भाजपा सरकार के एक मंत्री के बेहद करीबी हैं, को अपने पद पर पुनर्नियुक्ति डिफेंडर गाड़ी देने के बाद मिली.

दिग्विजय सिंह के पुत्र जयवर्धन सिंह को गुना जिला अध्यक्ष बनाने पर आरोप लगा कि जीतू पटवारी ने उनको निपटाने के लिए एक जिले तक सीमित कर दिया. खैर इन आरोपों का खंडन जीतू पटवारी और अन्य नेताओं ने कर दिया.

जबकि कांग्रेस और इसके नेतृत्व में इंडिया गठबंधन सत्तारूढ़ भाजपा पर वोट चोरी के मुद्दे पर काफी आक्रामक है और भाजपा द्वारा केंद्र में 2014 में सरकार बनाने के बाद यह पहला मौका है जबकि इंडिया गठबंधन ने संगठित रूप से भाजपा को पार्लियामेंट के अंदर तथा बाहर वोट चोरी के मुद्दे पर इतना ज्यादा परेशान किया है तो कांग्रेस का कोई नया कार्यकर्ता भी बता सकता है कि मध्य प्रदेश के नेताओं को अपने जबान पर लगाम लगाने की जरूरत है.

क्रिकेट और पॉलिटिक्स दोनों में शॉट मारते हुए टाइमिंग का बहुत ही महत्व है. सवाल उठना लाजिमी है कि दिग्विजय सिंह, कमल नाथ और जीतू पटवारी ने इस समय दिए गए अपने बयानों से क्या हासिल किया? क्या जीतू पटवारी का बयान मध्य प्रदेश, बिहार और देश के अन्य भागों में कांग्रेस को मजबूत करेगा या कमजोर? क्या दिग्विजय सिंह और कमल नाथ का एक दूसरे के खिलाफ सार्वजनिक बयान पार्टी को मध्य प्रदेश, बिहार और देश के अन्य भागों में मजबूत करेगा या कमजोर?

पिछले वर्ष मई में जीतू पटवारी ने पूर्व मंत्री इमरती देवी को लेकर एक विवादित बयान दिया था जिसको कि महिला विरोधी माना गया तथा भाजपा तथा इमरती देवी द्वारा हमलवार होने के बाद पटवारी को खेद व्यक्त करना पड़ा था. वर्ष 2018 के विधान सभा चुनावों में उनका ‘पार्टी गई तेल लेने’ जैसा बयान तो पार्टी के विरुद्ध ही माना गया था. पर अब तो उनके कन्धों पर प्रदेश अध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पद की जिम्मेदारी है.