पीके बजायेंगे कांग्रेस का डीजे!
क्या 24 अकबर रोड दिल्ली स्थित कांग्रेस मुख्यालय के अलग-अलग कमरों में लगे जाले साफ होने का समय आ गया है? क्या जल्द ही कांग्रेस को गैर गांधी अध्यक्ष मिलने वाला है? क्या कांग्रेस अब कॉपोर्रेट तौर-तरीकों से संचाालत होगी? क्या कांग्रेस को फिर से कोई माखनलाल फोतेदार, सैम पित्रौदा या अहमद पटेल मिलने वाला है?
क्या कांग्रेस एक बार फिर देश की प्रमुख राजनीतिक पार्टी बनकर देश पर छा जाने वाली है? यह भले ही शेख चिल्ली ख्वाब हो, लेकिन माहौल तो ऐसा ही बनाया जा रहा है। यह हो रहा है चुनाव प्रबंधन के गुरु कहलाने वाले प्रशांत किशोर के कांग्रेस में प्रवेश कर उसके काया कल्प कर देने के दावे-प्रतिदावे की वजह से।
यहां एक बात जरूर है कि ऐसा कांग्रेस के दिग्गज नहीं मानकर चल रहे, बल्कि प्रचार तंत्र की नब्ज के पारखी प्रशांत किशोर ने बेहद चतुराई से ऐसा ताना-बाना बुन दिया कि देश के हर आम-खास वर्ग में चर्चा चल पड़ी कि कांग्रेस की रेल अब दिल्ली के लाल किले की ओर रवाना होने ही वाली है। सीटें सीमित हैं, इसीलिए जो जतनी जल्दी सवार होगा, उसे उतनी ही आरामदायक जगह मिलने की गारंटी है।
· प्रशांत किशोर की कांग्रेस के साथ जो बैठक हुई, उसके बाद जितने मुंह उतनी बातें हो रही हैं। जैसे गरीब की जोरू सबकी भाभी होती है, उस तरह से पेश आया जा रहा है। यह देश की सबसे पुरानी और पहली राजनीतिक पार्टी के लिये खासा चिंताजनक और अफसोस की बात है।
वैसे हकीकत तो यही है कि आज कांग्रेस जिस स्थिति में पहुंच चुकी है, उसमें इस तरह की बातें स्वाभाविक ही हैं। पहले बात करते हैं प्रशांत किशोर के प्रस्ताव की।
अब यह तो सब जानते हैं कि प्रशांत किशोर कोई राजनेता नहीं बल्कि चुनाव प्रबंधन को जानने वाले पेशेवर व्यक्ति हैं। जैसे शादी में बैंड बजाने वाला दुल्हा नहीं हो जाता, वैसे ही। यह और बात है कि प्रशांत किशोर खुद को सबसे योग्य दुल्हा मानने लगे हैं तो इस पर कोई रोक-टोक तो है नहीं।
आधुनिक युग में हर कार्य में तौर-तरीके भी अधुनातन हो चले हैं। चुनाव जैसी लोकतांत्रिक प्रक्रिया भी इससे बची नहीं रही। प्रशांत किशोर उस परंपरा की एक महत्वपूर्ण कड़ी इस मायने में है कि 2014 के आम चुनाव में नरेंद्र मोदी ने उनकी सेवायें ली थीं, तब से वे यह मानने लगे हैं कि मोदी को प्रधानमंत्री उनके अभियान ने बनाया है।
जबकि 2019 का चुनाव मोदीजी या भाजपा ने प्रशांत की सेवा लिये बिना लड़ा और ज्यादा सीटें प्राप्त कीं। बहरहाल।
· दरअसल, प्रशांत किशोर ने अकबर रोड पर कांग्रेस के दिग्गजों के साथ मुलाकात में पॉवर पांइट प्रजेटेंशन प्रस्तुत करते हुए बताने की कोशिश की कि वे कांग्रेस का कायाकल्प कर सकते हैं। इससे गांधी परिवार कितना प्रभावित हुआ, कहना कठिन है, लेकिन वहां बैठे तपे-तपाये कांग्रेसी तो कतई प्रभावत नहीं हुए, ऐसा सामने आता जा रहा है।
मसलन, उस बैठक में मौजूद अशोक गहलोत, दिग्विजय सिंह, मल्लिकार्जुन खड़गे, अंबिका सोनी वगैरह ने तो वहीं कह दिया कि इसमें ऐसी कोई नई बात तो नहीं है, जो पहले कभी नहीं की गई हो।
जैसे खड़गे, दिग्विजय सिंह और अंबिका ने कहा बताते हैं कि ये सारी बातें तो 1998 में पचमढ़ी चिंतन शिविर, 2003 के शिमला चिंतन शिविर और 2014 के आम चुनाव में हार के बुाद ए. के. एंटोनी समिति की रपट में भी यही सब बातें और सुझाव मौजूद हैं। याने प्रशांत किशोर को लग रहा था कि उनका प्रजेंटेशन मिसाइल लांचर साबित होगा, उसे फुलझड़ी की तरह भी नहीं लिया गया।
· बताते हैं कि इसी बैठक में प्रशांत बाबू से जब उनकी भूमिका पर बात की तो उन्होंने कहा कि वे उपाध्यक्ष बनना चाहेंगे, जिसके अधीन कार्य समिति हो तो सारे नेता हत्थे से उखड़ गये।
इसका सीधा-सा आशय यह निकाला गया कि उनके आने के बाद अध्यक्ष बस नाम को ही रहेगा। वे यह कहने से भी नहीं चूके कि वो कोई भी हो सकता है, जिसका सीधा सा अर्थ तो यही हुआ कि गांधी परिवार का अध्यक्ष होना जरूरी नहीं। बताते हैं कि यहीं से बात बिगड़ भी गई।
बताते हैं कि एक नेता ने तो प्रशांत से पूछ भी लिया कि क्या वे खुद को अगला अहमद पटेल मानकर चल रहे हैं तो जवाब किशोर ने दिया, उसने तो जैसे बवंडर ही खड़ा कर दिया। वे बोले- अहमद पटेल तो नौकर थे।
मैं नौकर की भूमिका में नहीं मालिकी में हिस्सेदार के तौर पर रहूंगा। याने कांग्रेस कंपनी की तरह चलेगी और वे स्टैक होल्डर रहेंगे। दिल्ली स्थित मेरे एक कांग्रेसी मित्र ने कहा कि वे जल्द ही राहुल गांधी से पूछने वाले हैं कि यदि प्रशांत को स्टैक दे रहे हो तो हमारे भी शेयर्स कितने रहेंगे, बता दीजिये।
· कुल मिलाकर कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति काफी दिलचस्प मोड़ पर पहुंच गई है। प्रशांत के पुराने ट्वीट और बयान खोजे जा रहे हैं, जिसमें उन्होंने कांग्रेस पर कटाक्ष किये थे।
ज्यादा पुरानी बात नहीं है जब दिसंबर 2021 में उन्होंने राहुल गांधी को फिर से अध्यक्ष बनाने की मांग पर कहा था कि यह किसी एक व्यक्ति का दिव्य अधिकार नहीं है कि वही पार्टी का अध्यक्ष रहे। ऐसा भी नहीं है कि प्रशांत किशोर के प्रस्ताव को दरकिनार कर दिया गया हो या पूरी तरह से खारिज कर दिया गया हो।
जिस स्थिति में कांग्रेस इस समय है, ऐसे में वह हर उस बात पर गौर करने को तैयार हो सकती है जिसमें उसे थोड़ा-सा भी लाभ नजर आता हो।
गांधी परिवार भी यह तो जानने-मानने लगा होगा कि उसका जादू खत्म-सा हो चला है और उसे किसी ऐसे चमत्कार की जरूरत तो है, जो दिल्ली का तख्त उसे उपलब्ध कराये।
प्रशांत चौराहे पर डमरू बजाकर भीड़ जुटाने का माद्दा तो रखते हैं। उस भीड़ को अपने समर्थन में बदल देने का सम्मोहन किस तरह से होगा, उस पर चिंतन हो ही रहा होगा।
· इसमें सबसे प्रमुख बात यह नहीं है कि प्रशांत किशोर कांग्रेस का कल्याण करने के लिये अवतरित हुए हैं या लालायित हैं या उन्हें कांग्रेस की दयनीय सि्थति का अफसोस है।
वे अब चुनाव प्रबंधन गुरु के तमगे से बाहर निकल कर खुद राजनीतिक हस्ती बनने की उत्कंठा लिये हैं। वे अब भी यह मानते हैं कि नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद तक उन्होंने पहुंचाया है।
नीतीश कुमार को बिहार का दोबारा मुख्यमंत्री उन्होंने बनवाया। ममता बैनर्जी उनकी ही वजह से बंगाल की मुख्यमंत्री की कुर्सी सलामत रख पाई हैं।
इतना सब कर लेने के बावजूद राष्टीय स्तर पर स्थापित होने के लिये जो मंच उन्हें चहिये वो कांग्रेस जैसी कोई पार्टी ही दे सकती है।
· गेंद अब कांग्रेस के पाले में है और गांधी परिवार से लेकर तो उनके आसपास मजबूत घेरा बनाये कांग्रेसी खुद को पृष्ठभूमि में धकेलकर प्रशांत किशोर को अपनी मनमर्जी से कंपनी की तरह पार्टी चलाने देने का प्रस्ताव स्वीकार करते हैं या अपने बूते या अपनी शर्तों पर प्रशांत को जिम्मेदारी देने की पहल करेंगे, यह देखना दिलचस्प होगा।