कांग्रेस का समर्थन रसातल पर और बनाई अपनी इमारत आलीशान
आलोक मेहता
“आज हम देश में क्या देख रहे हैं ? पार्टियों तथा उनके कार्यकर्ताओं के बीच आपसी संघर्ष तथा अप्रिय प्रतिस्पर्धा हो रही है | पार्टियों के पोस्टरों के प्रदर्शन , झंडे लहराने , जुलुस निकालने तथा जन सभाएं करने में एक दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ लागि हुई है , ताकि जनता का ध्यान और समर्थन मिले \ लेकिन इससे लोगों के बीच वैमनस्य पैदा होता है | पार्टियों की ऐसी लड़ाइयों से देश की प्रगति बाधित होती है \ जब पार्टियां एक दूसरे से लड़ती है , तो जनता उसे मुर्गों की लड़ाई की तरह देखती है |वह उत्तेजित हो सकती है लेकिन इससे किसी महत्वपूर्ण समस्या का समाधान नहीं हो सकता है | ”
यह बात आज के किसी सत्ताधारी नेता या बड़े समाजशास्त्री की नहीं , वरन कांग्रेस में लालबहादुर शास्त्री और इंदिरा गाँधी को प्रधान मंत्री बनवाने में सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष भारत रत्न के कामराज ने अपने भाषण में 1967 में कही थी और वर्तमान दौर में अधिक लागू हो सकती है | राजनीति में जिस ‘ कामराज योजना ‘ का जिक्र बार बार आता है , उसमें इस बात पर ही जोर दिया गया था कि कांग्रेस की हार का एकमात्र कारण कमजोर नेतृत्व और जिला ग्रामीण स्तर पर समर्पित कार्यकर्ताओं की कमी |
कामराज ने संगठन के लिए ही तमिलनाडु के मुख्यमंत्री का पद जिद करके छोड़ा था | यहाँ तक हुआ था कि प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरु ने भी इस्तीफे की पेशकश की थी | बाद में इंदिरा गाँधी के राज में इसी योजना के तहत वरिष्ठ मंत्रियों के इस्तीफे हुए | कामराज राजनीतिक पार्टी , नेता कार्यकर्ताओं की शान शौकत , बंगलों , गाड़ियों के विरुद्ध सदैव आवाज उठाते रहे | इसी तरह के तर्कों की वजह से 1947 से 1985 तक कांग्रेस ने अपने मुख्यालय के लिए कोई बिल्डिंग नहीं बनाई | लेकिन कांग्रेस पार्टी के विभाजन के साथ मुख्यालय के नाम पर राजधानी दिल्ली में कई सरकारी बंगलों पर कब्ज़ा होता रहा , रियायती दरों पर जमीन के प्लाट मिलते रहे | पहले जवाहर भवन बना , लेकिन पार्टी के बजाय बाद में वह राजीव गांधी प्रतिष्ठान बन गया | अब कांग्रेस बुरी तरह कमजोर हालत में है तब एक तरह से 138 साल बाद अपनी बनाई आलीशान इमारत को कांग्रेस पार्टी का मुख्यालय बनाया जा रहा है |
1947 से दिल्ली में 7 जंतर मंतर कांग्रेस का मुख्यालय रहा। वहां महात्मा गांधी,नेहरू, सरदार पटेल भी आते थे। यहां ही इन्दिरा गांधी सन 1959 में कांग्रेस अध्यक्ष चुनी गई थीं। 1969 में कांग्रेस का विभाजन होने पर इंदिरा गाँधी की कांग्रेस 5 राजेंद्र प्रसाद रोड पर आ गई | जगजीवन राम , डॉक्टर शंकर दयाल शर्मा , देवकांत बरुआ , ब्रह्मानंद रेड्डी के कार्यकाल में यहीं से पार्टी चली | जब रेड्डी ने भी 1978 में इंदिरा गाँधी को निष्कासित कर दिया , तब इंदिरा कांग्रेस का मुख्यालय 24 अकबर रोड पर आए गया । दरअसल यह बंगला सन 1978 में कांग्रेस के आंध्र प्रदेश से राज्यसभा सदस्य जी. वेंकटस्वामी को आवंटित हुआ था। तब कांग्रेस सत्ता में नहीं थी। इंदिरा गांधी और संजय गांधी भी 1977 में लोकसभा चुनाव हार चुके थे। तब इसी 24 अकबर रोड को कांग्रेस का पहले अस्थायी और फिर स्थायी मुख्यालय बना दिया गया था। एक दौर में 24 अकबर रोड को बर्मा हाउस कहते थे। म्यांमार (पहले बर्मा) के भारत में राजदूत को यही बंगला सरकारी आवास के रूप में आवंटित किया जाता था। प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के निर्देश पर 24 अकबर रोड को बर्मा हाउस कहा जाने लगा था।7 जंतर मंतर जनता दल यूनाइटेड और अखिल भारतीय सेवा दल, जिसकी स्थापना मोरारजी देसाई ने की थी, का भी मुख्यालय रहा। कांग्रेस में दो फाड़ होने के बाद 7 जंतर मंतर पर कांग्रेस (ओ) का कब्जा हो गया था। कांग्रेस (ओ) का आगे चलकर जनता पार्टी में विलय हुआ। अब उसके एक हिस्से में सरदार पटेल स्मारक ट्रस्ट , जनता दल ( यू ) और पत्रकारों के संगठन नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट का कब्ज़ा है | इंदिरा कांग्रेस की 1980 में सत्ता में वापसी हुई तो भी पर इंदिरा गांधी ने 7 जंतर मंतर पर दावा नहीं किया। उनका कहना था कि संगठन इमारत से नहीं कार्यकर्ताओं के बल पर शक्तिशाली रह सकता है |
बहरहाल , कांग्रेस राज में कई सरकारी बंगले पार्टी के विभिन्न संगठनो युवक कांग्रेस , सेवा दल , महिला कांग्रेस , इंटक आदि के लिए आवंटित होते रहे | मुख्यालय बनाने के लिए पहले रायसीना रोड पर जमीन मिली तो भव्य जवाहर भवन बना | एक और जमीन दीनदयाल उपाध्याय मार्ग पर मिली हुई थी , उस पर बिल्डिंग बनाने के लिए अपने सत्ता काल में सोनिया गांधी और डॉक्टर मनमोहन सिंह ने शिलान्यास किया | अब 15 साल बाद 15 जनवरी को सही मुहूर्त मानकर सोनिया गाँधी , राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे 6 मंजिले आधुनिक सुविधा संपन्न मुख्यालय का उद्घाटन करेंगे | फिर भी पुराने बंगले खाली नहीं करने की कुछ बातें नेताओं ने कही है |
मजेदार बात यह है कि कुछ वर्ष पहले सुप्रीम कोर्ट फैसला दे चुका है कि राजनीतिक पार्टियां सरकारी बंगले खाली करें | लेकिन कांग्रेस ही नहीं भाजपा या कुछ अन्य दल अपने आनुषंगिक संगठनों के नाम पर इन्हें अपने पास रखे हुए हैं | दूसरी दिलचस्प बात यह हुई है कि भाजपा का दफ्तर तो दीनदयाल उपाध्याय मार्ग पर होना उनके लिए गौरव है | कांग्रेस को इस नाम पर कष्ट रहा , इसलिए उसने अपने मुख्यालय ‘ इंदिरा गाँधी भवन का मुख्य द्वार दूसरी तरफ बनाया , ताकि पते में फ़िरोज़शाह कोटला मार्ग लिखा जा सके | यों कांग्रेस में अब राहुल गांधी के दादाजी फ़िरोज़ गांधी का नाम नहीं लिया जाता है |
कांग्रेस दिल्ली विधान सभा चुनाव के दौरान इंदिरा गाँधी के नाम पर भवन का धूमधाम से उद्घाटन कर रही हैं , वह इंदिराजी अपने अध्यक्ष और प्रधान मंत्री कार्यकाल में शहरी आय और संपत्ति के नियंत्रण के सिद्धांत और बैंक बीमा कंपनियों के राष्ट्रीयकरण को अपने दस सूत्रीय कार्यक्रम में महत्व देती रहीं | क्या राहुल गाँधी उसी सिद्धांत पर दिल्ली या देश के अन्य हिस्सों में जनता का समर्थन लेने का अभियान चलाएंगे ? यही नहीं प्रदेशों के कांग्रेसी कार्यकर्ता ही नहीं नेता तक वर्षों से राहुल गांधी से मिलने तक में बड़ी भारी बाधाएं होने से इंदिरा युग में नियमित रुप से सामान्य लोगों से मिलने की परम्परा को याद दिलाते हैं | अभी तो 24 अकबर रोड पर भी सोनिया राहुल गांधी के कमरे यदा कदा खुलते थे | क्या फाइव स्टार नए मुख्यालय में जनता आसनी से नेताओं से मिल सकेगी ?