Conspiracy Against Government:क्या एक और विभाजन का केंद्र बंगाल होगा?

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Conspiracy Against Government:क्या एक और विभाजन का केंद्र बंगाल होगा?

Conspiracy Against Government:क्या एक और विभाजन का केंद्र बंगाल होगा?

ऐसा इस समय सोचना व बोलना थोड़ा अटपटा,असंभव या असहज लगे, लेकिन अतीत बताता है कि राज्य व्यवस्था के खिलाफ साजिशें इसी तरह से तैयार होती हैं। हालिया घटना का उल्लेख करें तो इजरायल-फिलीस्तीन का मसला है। इजरायल ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि हमास इतनी तैयारी से हमला करेगा। नेपाल में राजशाही का खात्मा उन्हीं के खानदान का व्यक्ति पलक झपकते कर देगा, किसी ने सोचा था? यह सब छोड़िये, क्या हमने ही सोचा था कि अंग्रेज जब मुल्क छोड़कर जायेंगे तो विश्व इतिहास के सबसे शर्मनाक,खौफनाक तरीके से देश का विभाजन कर दिया जायेगा? इसलिये, केवल सकारात्मक सोच की हिमायत के परिप्रेक्ष्य में एक और विभाजन का न सोचना रेत में गर्दन छुपाकर बेफिक्र हो जाने जैसा ही होगा। कम अस कम गत कुछ समय से वैसे ही हालात पैदा किये जा रहे हैं,जो संकेत तो विभाजन जैसे ही दे रहे हैं। प्रार्थना तो करें कि वैसा कुछ न हो,कितु इतने लापरवाह भी न हो जायें कि आप खड़े ही रह जायें और तन सिर से कब जुदा हो जाये, पता तक न चले।

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पश्चिम बंगाल के उत्तर चौबीस परगना में 700 करोड़ के राशन घोटाले के आरोपी के यहां छापेमारी के लिये जा रहे प्रवर्तन निदेशालय के दल के पांच अधिकारियों समेत सुरक्षा दलों तक पर करीब 500 से अधिक हुड़दंगियों की भीड़ ने तृणमुल कांग्रेस नेता शाहजहां शेख के भ़डकाने पर लाठी,पत्थरों से हमला बोल दिया। कुछ अधिकारी गंभीर घायल हुए हैं। स्वतंत्र भारत के इतिहास में ईडी,सीबीआई जैसे संस्थानों के साथ ऐसी वारदात शायद ही कभी हुई हो।यह सीधा इस बात का संकेत है कि जिस राज्य में जिस भी गैर भाजपा दल की सरकार होगी.वहां कानून और मर्जी भी उसी दल की चलेगी। देश के कानून को वहां ठेंगा दिखा दिया जायेगा। इसे समाजवादी पार्टी के शासनकाल में उत्तर प्रदेश में पनपे माफिया राज से जोड़ कर देख लीजिये। जब एक वर्ग विशेष के गुंडों,जैसे अतीक अहमद,मुख्तार अंसारी या मुलायम-अखिलेश यादव के कैबिनेट मंत्री आजम खान के कारनामों को याद कर लीजिये। कैसे कोई कलेक्टर से जूते साफ करवाने के दावे करता था तो कोई कैसे पूरे थाने को कैद कर लेता था,हथियार लूट ले जाते थे। और कोई कैसे पुलिस को अपने इलाके में घुसने तक नहीं देता था। याने भारत में पाकिस्तान जैसे हालात थे। ऐसे में यह कतई अतिरंजित नहीं होगा कि पश्चिम बंगाल के हालात को हम विभाजन के समय के जैसे मानें। वहां वही चलेगा, जो ममता बैनर्जी या तृणमुल कांग्रेस चाहेगी।

देश के् लोग प.बंगाल के 2021 के विधानसभा चुनाव के बाद की स्थिति को भी नहीं भूले होंगे। तब पूरे राज्य में उत्पातियों ने भाजपाई कार्यकर्ताओं के साथ बेतरह मारपीट की थी,महिला कार्यकर्ताओं का शील भंग किया था,उत्पीड़न किया था।उनकी दुकानें,घर जला दिये गये थे और पुलिस-सरकार ने किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। ये किसी देश के भीतर किसी संविधान सम्मत राज्य सरकार का आचरण तो नहीं था। यह सिलसिला वहां बदस्तूर है। इससे पहले भी अनेक मौकों पर ममता बैनर्जी देश के प्रधानमंत्री का सार्वजनिक तौर पर अपमान तक कर चुकी है। उनके बंगाल दौरों पर शिष्टाचार भेंट तक के लिये नहीं गईं और बुलाये जाने पर भी विमानतल पर कुछ देर मिलकर लौट गईं। जबकि आम तौर पर राज्यों के दौरों पर प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के साथ मुख्यमंत्री रहते हैं।

ऐसी अशिष्टता तेलंगाना के मुख्यमंत्री के.सी.आर चंद्रशेखकर राव भी कर चुके हैं। वे अपने कार्यकाल में प्रधानमंत्री मोदी के तीन प्रवास में से एक बार भी उनसे मिलने नहीं गये। हिंदी फिल्मों के हीरो सुशांत सिन्हा की मौत की जांच के सिलसिले में उद्ध‌व ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना,राकांपा,कांग्रेस की मिली-जुली तत्कालीन महाराष्ट्र सरकार सीबीआई को प्रदेश में आने से रोक चुकी है। विपक्षी दलों का यह आचरण राज्य-राष्ट्र की अवधारणा को चोट पहुंचाने,अवज्ञा करने व अशिष्टता करने वाला् ही माना जायेगा। यह भाजपा सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बड़प्पन ही है कि उन्होंने किसी तरह की प्रतिशोध भरी कार्रवाई नहीं की।

बश्चिम बंगाल की बात करें तो देश की अनेक एजेंसी और स्वतंत्र रूप से काम करने वाले संगठन बार-बार कह चुके हैं कि बंगाल अवैध म्यांमारवासियों और बांग्लादेशियों की शरण स्थली बन चुका है। वहां की ममता सरकार इसे रोकने की बजाय उन्हें प्रोत्साहित कर रही है। उनके निवास प्रमाण पत्र,आधार बनवा रही है। वे मतदान कर वहां की रीति-नीति में दखल दे रहे हैं और एक दिन ये अवैध घुसपैठिये आसाम की तरह हालात विकट कर देंगे, जो अंतत: राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरा साबित होंगे। कश्मीर में भी रोहिंग्याओं की उपस्थिति चिंताजनक हो चुकी थी, जहां से इन्हें बाहर किया जा रहा है। मुंबई और उत्तराखंड तक भी ये पहुंच चुके हैं। याने देश के अलग-अलग हिस्सों में इनका दखल बढ़ता जा रहा है, जो स्थानीय स्तर की मदद के बिना संभव नहीं है। सोचने वाली बात यह है कि ये घुसपैठिये केवल गैर भाजपाई सरकार वाले राज्यों में ही क्यों पाये जा रहे हैं?

ऐसी अनेक घटनायें हैं, जो देश में अराजक स्थितियां पैदा करने का प्रयास कर रही हैं। इनका पहला और बड़ा लक्ष्य अप्रैल-मई 2024 में होने जा रहे लोकसभा चुनाव में व्यवधान डालना भी हो सकता है। पहले हंगामा खड़ा किया जाये और फिर उसे मुद्द‌ा बनाकर देश भर में प्रदर्शन,धरने,रैलियां आयोजित कर माहौल को दूषित किया जाये,ऐसी कोशिशें जारी हैं। चुनाव तक कुछ भी होने की आशंका को खारिज करना घातक हो सकता है। राजनीतिक सत्ता प्राप्ति के लिये देश की शांति ,प्रगति और सुकून को तहस-नहस करने के खेल को केवल सरकारी स्तर पर ही नहीं रोका जा सकता। इसके लिये जनता को भी सजग रहना होगा।