

Controversy over VC’s Statement : रामायण के पात्रों को लेकर प्रो कुलगुरु शुभा तिवारी के बयान से विवाद उपजा!
छतरपुर से राजेश चौरसिया की रिपोर्ट
Chhatarpur : सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय की कुलगुरू प्रो शुभा तिवारी का बयान चर्चा का विषय बन गया। कुलगुरू ने एक कार्यक्रम में दिए भाषण में न केवल माता सीता को फेमिनिस्ट बताया बल्कि रामायण से जुड़े अन्य लोगों के बारे में भी कई आपत्तिजनक बातें कहीं। कुलगुरू का अंग्रेजी में यह भाषण ओरछा में दिया गया। उनके द्वारा कही गई बातों से हिंदुओं में नाराजगी है और उनकी जमकर निंदा की जा रही।
दिल्ली के जेएनयू के स्टूडेंट रहे छतरपुर के विकास चतुर्वेदी ने कहा कि कुलगुरू प्रो शुभा तिवारी ने आदि कवि महर्षि वाल्मीकि के पवित्र ग्रंथ रामायण का जिक्र करते हुए श्रीराम को एक सामान्य व्यक्ति और माता सीता को भी सामान्य महिला सिद्ध करने का प्रयास किया। इससे प्रतीत होता है कि उन्होंने वाल्मीकि रामायण का अध्ययन नहीं किया। वे बौद्धिकता के अतिरेक में यूरोपीय फेमिनिस्ट आदर्शों के आधार पर महिलाओं को अपना जीवन जीने के लिए प्रेरित कर रही हैं। उन्होंने माता सीता को फेमिनिस्ट बताकर न केवल हिंदुओं के धार्मिक तथ्यों के साथ खिलवाड़ किया, बल्कि हमारे आदर्शों का अपमान भी किया है।
शूर्पणखा के द्वारा भगवान राम और लक्ष्मण से किए गए पाप पूर्ण प्रस्ताव को भी कुलगुरु ने सही ठहराया। आशय यह कि वे महिला स्वेच्छाचार को बढ़ावा देने की वकालत करती है। मंथरा के कृत्य को सही ठहराना भी संयुक्त परिवारों में फूट डालने को सही ठहराना है और यह भारतीय परिवारों में कुल और समाज के हित को अपने हितो से ऊपर रखने की सनातन परंपरा का उपहास है।
कुलगुरू का यह कहना कि रावण मोटा, काला तथा बदसूरत था इसलिए माता सीता ने उसे नकार दिया, यह रामायण में उल्लेखित माता सीता के पतिव्रत धर्म का अपमान है। चतुर्वेदी ने कहा कि कुलगुरू के कहने का यह भी तात्पर्य है कि यदि रावण सुंदर होता तो माता सीता भगवान राम को छोड़कर रावण को पसंद कर लेती, यह अत्यंत आपत्तिजनक है। उन्होंने कहा कि कुलगुरू का पद अत्यंत सम्मान और गरिमा का पद है। यदि उस पर कोई संभ्रांत महिला विराजमान है तो उससे यह उम्मीद की जाती है, वह उचित आचरण भी करें। वह ऐसा कोई भी कुतर्क न करें, जिससे जनसामान्य की भावनाओं को ठेस पहुंचे।