Coral Bead:अगर आप इस गलतफहमी में हैं कि रत्ती के बीज खास भार के होते हैं तो माफ कीजियेगा—-

भगवान कृष्ण को बहुत प्रिय है। ऐसा माना जाता है, कि भगवान श्रीकृष्ण रत्ती की बनी हुई मालायें धारण किया करते थे।

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Coral Bead:अगर आप इस गलतफहमी में हैं कि रत्ती के बीज खास भार के होते हैं तो माफ कीजियेगा—-

डॉ विकास शर्मा
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अगर आफ इस गलतफहमी में हैं कि रत्ती के बीज खास भार के होते हैं तो माफ कीजियेगा, मैं आपका भ्रम तोड़ने वाला हूँ…
क्योंकि अपवादों का अध्ययन भी विज्ञान कहलाता है…
कहते हैं विज्ञान और खासकर जीव विज्ञान में सभी चीजें खास सिद्धांतो पर टिकी होती हैं, और कोई न कोई एक उदाहरण ऐसा देखने को मिल जाता है, जो उस सिद्धांत को चुनोती दे देता है। जैसे धातुयें ठोस होती है लेकिन पारा द्रव है। उड़ने वाले कशेरुकी पक्षी कहलाते हैं लेकिन चमगादड़ हम मनुष्यों की तरह स्तनपायी है। मछलियां जल में रहती हैं जिनमे फिन्स होते हैं लेकिन व्हेल स्तनपायी है। मसलन हर सिद्धांत को चोट करता अपवाद कहीं न कहीं मौजूद है। अब मैं ठहरा वनस्पति जगत वाला प्राणी तो मैं पौधों के अपवाद ढूंढने में लगा था। वैसे यहाँ भी पहले से कोई कमी नही थी। जैसे नग्न बीजियों में पुष्प नही होते लेकिन gnetum में है, जीवाश्म मृत होते हैं लेकिन cycas जीवित भी है और जीवाश्म भी कहलाता है। वायरस में कोशिका भी नही है और वह प्रजनन भी करता है आदि आदि। जीवों की दुनिया भी अजब गजब है। खैर मैं अपने विषय याने पेड़ पौधों पर लौटूँ। आप सभी ने सुना होगा कि रत्ती नामक पौधे के सभी बीज हमेशा एक खास वजन के होते हैं। इसीलिये सुनार भाई इसे सोने को तोलने के लिए प्रयोग किया करते थे। लेकिन यह गुलाबी रत्ती इस सिद्धांत को रौंदती नजर आती है। कैसे…? जानना है तो पहले गुंजा या रत्ती के विषय मे पढ़िए और फिर तश्वीर भी देखिये। इसके बाद आप खुद कहेंगे कि इससे सोना नही नापेंगे भाई । अगर आप गुंजा या रत्ती के विषय मे सब कुछ नही जानते तो फिर एक बार पूरा लेख पढ़िए, मजा आएगा।
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वैसे तो गुंजा / रत्ती के रंगों के हिसाब से 5- 6 वेरियंट देखने को मिलते हैं। अलग अलग मित्रों के अनुभव और फेस बुक पर फ्रॉड जानकारियों के कारण अलग अलग रंग की गुंजा के बीजों में इतना धोखा खाने में बाद यकीन करना मुश्किल हो गया था कि ये सफेद, काले और लाल-काले के अलावा अन्य किसी रंग के होते होंगे। गुलाबी रत्ती के विषय मे जानना वाकई मजेदार था। विगत वर्ष फेसबुक मित्र के Kiran Chaudhari जी से ये बीज प्राप्त हुए और इनसे उगे पौधों में इस वर्ष गुलाबी बीज भी लगे। ये बीज लाल- काली प्रजाति की तुलना में छोटे आकार के हैं। इनकी फलियों में केवल 4 बीज होते हैं जबकि लाल-काली प्रजाति में 6 बीज होते हैं। यह गुंजा या रत्ती कई मायनो में उपयोगी है।

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रत्ती का पौधा एक मौसमी लता है, जो जंगलो में बारिस से लेकर ठंड के मौसम तक मिलती है। ठंड के जाते जाते इसके बीज परिपक्व हो जाते हैं। हालांकि पुरानी बेल वाले स्थान पर प्रतिवर्ष नयी बेल उग आती है, किन्तु बीजो से भी कई नए पौधे तैयार होते रहते हैं। इसकी पत्तियां खाने में मीठे स्वाद वाली होती हैं, जो natural sweetening agents का एक अच्छा उदाहरण हैं। इसी तरह इसकी जड़ भी मुलैठी की लकड़ियों के समान मीठी लकड़ी के रूप में जाने जाते हैं। बीजों का अपना औषधीय और तांत्रिक महत्व है। यह चार प्रकार की हो सकती है। एक तो यही आधी लाल- आधी काली, दूसरी- पूरी काली, तीसरी पूरी सफेद और चौथी आधी गुलाबी-आधी नीली या काली।
इनमे से यह लाल- काली भयंकर ज़हरीली है, जिसे खाने से मौत भी हो सकती है, जिसका कारण इसमे पाया जाने वाला भयंकर टोक्सिन abrin एवम अन्य कई उत्पाद है। किन्तु तांत्रिक प्रयोगों के लिये सबसे अनुकूल है। जिसमे वशीकरण, नौकरी की बाधाएं दूर करने, संतान, शादी आदि सबसे महत्वपूर्ण विषय हैं। हालाकि अनुभवी वैद्य/ चिकित्सक इनसे आंखों के रोगों की अचूक औषधि बनाते हैं। सभी प्रकार की रत्ती औषधि महत्व रखती हैं। लेकिन सफेद गुंजा का सबसे अधिक औषधीय महत्व है। हालांकि यह बहुत कम उपलब्ध है। यह आंखों की रोशनी लौटाने के अलावा, चर्म रोग, कुष्ठ रोग, सफेद दाग, बालो को लंबा और काला करना, आदि कई रोगों में काम आता है। जबकि काली गुंजा सफेद से भी दुर्लभ है, जो अकाट्य तंत्र साधना के लिये जाने जाते हैं। गुलाबी गुंजा सबसे दुर्लभ है। कई बार लोग रंग चढ़ाकर सुनहरी, हरी और अलग अलग तरह की रत्ती बेचते नजर आते हैं लेकिन यब सिर्फ छलावा साबित होता है।
इन सब उपयोगों के अलावा यह भगवान कृष्ण को बहुत प्रिय है। ऐसा माना जाता है, कि भगवान #श्रीकृष्ण रत्ती की बनी हुई मालायें धारण किया करते थे। संभवतः इनकी मनमोहक छबि से इसका कोई संबंध हो।
पुराने समय मे सोना चांदी की दुकानों में इसके बीज शायद (120 मिलीग्राम) सोने को तोलने के लिए इसके बीजों का प्रयोग किया करते थे, क्योंकि इसके बीज सदैव एक सामान आकार के ही होते हैं।जो हमे भी हर परिस्थिति में एक जैसा बने रहने की प्रेरणा देता है।
पारम्परिक भारतीय वज़न में रत्ती का एक खास स्थान है, जो इस प्रकार हैं –
८ धान की एक रत्ती’ बनती है
८ रत्ती का एक माशा बनता है
१२ माशों का एक तोला बनता है
५ तोलों की एक छटाक बनती है
१६ छटाक का एक सेर बनता है
५ सेर की एक पनसेरी बनती है
८ पनसेरियों का एक मन बनता है|
रत्ती (वज़न का माप)
रत्ती
प्राचीन भारत में रत्ती द्रव्यमान (भार) मापने के काम आती थी, तथा द्रव्यमान की ईकाइ भी थी।
रत्ती भारतीय पारंपरिक भार मापन इकाई है, जिसे अब 0.12125 ग्राम पर मानकीकृत किया गया है। यह रत्ती के बीज के भार के बराबर होता था। कुछ अन्य माप इस प्रकार हैं।
1 तोला = 12 माशा = 11.67 ग्राम
(यह तोला के बीज के भार के बराबर्होता था, जो कि कुछ स्थानों पर जरा बदल जाता था)
1 माशा = 8 रत्ती = 0.97 ग्राम
1 धरनी = 2.3325 किलोग्राम (लगभग 5.142 पाउण्ड) = 12 पाव (यह नेपाल में प्रयोग होती थी)।
१ सेर = १ लीटर = 1.06 क्वार्ट (इसे सन १८७१ में यथार्थ १ लीटर मानकीकृत किया गया था, जो कि बाद में अप्रचलित हो गयी थी)
सेर भारतीय उपमहाद्वीप का एक पारम्परिक वज़न का माप है। आधुनिक वज़न के हिसाब से ऐक सेर लगभग ९३३ ग्राम के बराबर है, यानि एक किलोग्राम से ज़रा कम।
१ पंसेरी = पांच सेर = 4.677 kg (10.3 पाउण्ड)
१ सेर = ८० तोला चावल का भार
डॉ विकास शर्मा
वनस्पतिशास्त्र विभाग
शासकीय महाविद्यालय चौरई
जिला छिंदवाड़ा (म.प्र.)