corn, maize or corn cobs: कभी दूध के साथ कॉर्न फ्लैक्स न लिया !तो फिर आप के बुध्दिजीवी होने पर—?

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corn, maize or corn cobs: कभी दूध के साथ कॉर्न फ्लैक्स न लिया! तो फिर आप के बुध्दिजीवी होने पर—?

आइये चलते हैं  मक्के के संसार मे...
डॉ. विकास शर्मा
क्योंकि मक्के के जितने भी व्यंजन हैं न, वे सभी मेरे दिल के बड़े करीब हैं। फ़ोटो के सभी व्यंजन हमारी ग्रामीण जीवनशैली का अमूल्य हिस्सा हैं। आपने मक्के को किस रूप में चखा है फटाफट कमेंट करिये, तब तक मैं इसके गुणों की खिचड़ी पकाता हूँ।
तो चलिये आज आपको मिलाता हूँ- फ्यूचर क्रॉप मक्का से। इसे Gift of modern world भी कहा जाता है। सामान्य ज्ञान की परीक्षाओं से लेकर मेडिकल एंट्रेंस NEET में भी प्रश्न पूछा जाता है कि What is the gift of the New World to Old World crop? जिसका उत्तर है अपना मक्का, मकई या भुट्टा। शहरी लोगो के लिए मेज या कॉर्न कह लीजिए। तो आखिर ऐसा क्या है इस सामान्य सी फसल में जो इसे इतनी ख्याति प्राप्त है कि यह फ्यूचर क्रॉप की तरह देखी जाती है। जबकि बीच बीच मे इसे मोटा अनाज या जानवरो का चारा कहकर भी नजरअंदाज किया गया था। वैसे तो मक्का मक्का ही है लेकिन फिर भी क्षेत्रीय नॉन हाइब्रिड किस्में गुणवत्ता की दृष्टिकोण से ज्यादा बेहतर मानी जाती है। गाँव देहात में बोई जाने वाली देशी मकई, सफेद मक्का, व लाई वाली मक्का का अपना अलग ही स्वाद है। इसके स्वाद के दीवाने इसे किसी भी कीमत में पा लेने के लिए बेकरार रहते हैं।
शुरू कहाँ से करूँ समझ नही आ रहा है, क्योंकि मक्के के बारे में इतना देखा, सुना, खाया, पिया है कि माइंड कन्फ्यूज किये दे रहा है। खैर वहीं से शुरू करता हूँ जहाँ से पहली बार मक्के के किताबो में देखा था याने अपने बचपन की किताबो के एक बेहतरीन हिस्से से….
हरी थी, रंग भरी थी, लाल मोती जड़ी थी।
राजाजी के बाग में दुशाला ओढ़े खड़ी थी।
इस पहेली का उत्तर है- उत्तर है भुट्टा।
Health के लिए फायदेमंद होती है भुट्टे के बाल से बनीं चाय - Spirit of Uttarakhand
आपकी सुबह कैसे होती है, मतलब पूछ रहा हूँ कि सुबह सबसे पहले खाने पीने में क्या लेते हैं आप? तो उत्तर मिलेगा चाय, कॉफी, बिस्किट, तौस या इसी टाइप का ही कुछ, और सच बताऊँ तो सारी बीमारियो को निमंत्रण यहीं से मिलता है। दरसल हमारी संस्कृति में कभी चाय और कॉफी थी ही नही, और हमारे शरीर को इनकी आवश्यकता भी नही है। ये सब तो एक दूसरे की देखा- सीखी वाले ढकोसले हैं। हम पशुधन सम्पन्न देश के निवासी रहे हैं तो यहाँ दूध का कॉन्सेप्ट बिल्कुल सटीक बैठता है, अगर वह मिलावटी न हो तब। दूध से शरीर के लिए आवश्यक लगभग सभी पौषक तत्व मिल जाते हैं। यदि आपको इन बुरी चीजों की आदत लग ही चुकी है तो इसमें समय समय पर मौसम अनुरूप थोड़ा बहुत बदलाव करते रहिये।
ऐसे विकल्प के तैयार है ऐसी ही हमारी एक विशेष चाय। जी हाँ मक्के की चाय, सुनने में अजीब लगा न? तो आप इसे काढ़ा कह सकते हैं। सामान्य बोलचाल में चाय वाली फीलिंग ही बनी रहे इसीलिये इसे चाय ही कह लीजिये। यह सिर्फ चाय नही कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सस्ता, सुंदर और टिकाऊ उपचार है। गुरुदेव डॉ. Deepak Acharya कहते थे, कि भुट्टा खाने के बाद, इनके सिल्क और छोही को फेंकिये मत। इसे एक गिलास पानी मे उबाल लीजिये, इसमें थोड़ा सा नींबू, काला नमक, अदरक भी डाल दें। कप में छानकर आनंद की चुस्की लें।।
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वैसे तो भुट्टा पूर्व से लेकर आज तक ग्रामीण फ़ास्ट फ़ूड है, लेकिन आजकल तो हर कोई इसे पसंद करता है। बेबी कॉर्न और स्वीट कॉर्न के इस जमाने मे अनुभवी लोग देशी भुट्टा/ मक्का खोजते हैं, और वहीं हम लोग मकई (गाँव की नॉन हाइब्रिड किस्म) का मजा ले लेते हैं। ये वही भुट्टा यानि मक्का है, जो किसान जब खेत मे बोने के लिये खरीदता है तो 250 से 400 रुपये प्रति किलो होता है। लेकिन जब बेचता है तो 9 रुपये से लेकर अच्छी किस्मत होने पर 20 रुपये प्रति किलो तक बिक जाता है। लेकिन हैरानी की बात है,धनवानों की महफ़िल या आनंदशाला/ मल्टीप्लेक्स में पॉपकॉर्न के रूप में 500 रुपये के महज 50 ग्राम- 100 ग्राम दाने 500 रुपये तक हो जाते है। उस हिसाब से इसकी कीमत यहीं कोई 5000 रुपये किलो की कीमत हो जाती होगी।
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इसी को हमारे गांव में कूकर में या कढ़ाई में तेल डाल कर महज 2-4 रुपये के खर्च पर तैयार कर लिया जाता है। खैर जाने दें, यह जमाना प्रोपेगेंडा और प्रचार प्रसार वाला है। यहाँ गुणों से अधिक स्ट्रेटजी की कीमत होती है। अपने ज्ञान का यहाँ कोई मोल नही है। बाजार की इस चकर-पकर में मेरा अपने भोजन वाले विषय से ध्यान भटक गया, ठीक आज के जागरूक, पढ़े लिखे नागरिकों की तरह।
ज्यादा न भटकते हुए विषय पर वापिस आता हूँ। मक्के के सिल्क की चाय/ काढ़े में विटामिन K, फाइबर्स, पोटेशियम, आयरन, कैल्सियम, जिंक जैसे कई पोषक तत्व और कार्बोहायड्रेट मौजूद होते हैं। यह किडनी से संबंधित रोगों में भी फायदेमंद होती है। यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ जाने पर यह आराम देती है। गठिया के रोगियों को भी सिल्क की चाय से बहुत फायदा मिलता है। वहीं पर ताजे भुट्टे पेट भरने और ऊर्जा प्राप्त करने का बेहतरीन विकल्प हैं। देशी मक्के का आटा मधुमेह के रोगियो के लिए अच्छा माना जाता है, और मक्के के आटे से खूद, मंगोड़े जैसे स्वादिष्ट पकवान बनाये जाते हैं। आप कहीं किसी खास कार्यक्रम के मेहमान हों और आपने रेस्ट हाउस या होटेल में दूध के साथ कॉर्न फ्लैक्स न लिया तो फिर आप के बुध्दिजीवी होने पर प्रश्न उठ सकता है, सावधान रहिएगा। वैसे आजकल तो मक्के का पोहा भी हम गरीबो के घर मे खूब चल रहा है। यूँ ही नही मक्के को फ्यूचर क्रॉप के रूप में जाना जाता है, कहते हैं ऐसा कोई उत्पाद ही नही होगा, जिसे मक्के से प्राप्त न किया जा सके।
लेकिन मैं  तो यह कहता हूँ, कि खेत मे गाय चराते समय भुट्टे भून कर खाने में जो स्वाद और आनंद है, वह इन शहरी चोचलों में कहाँ…?
pov~khet+bhutta=sukkon
  वैसे में अपनी बचपन की यादों के सहारे से कहूँ, तो गाँव में भैया और दोस्तो के साथ नदी नहाने जाना, पास के खेत से भुट्टे चुराना और भूनकर खाना फिर नदी में नहाकर घर लौट आना। बचपन के दिन दिल और दिमाग पर गहराई से प्रिंट हो चुके हैं। हर बार बेशरम/आइपोमिया की शाखाओं से छोटी मढ़िया बना आते थे, वहीं पर भुट्टे भूंजे जाते थे। लगता था जैसे थोड़े समय के लिए किसी घर के मालिक बन गए हैं। सबसे डरावनी बात तो यह थी कि माचिस साथ लाने का रिस्क उठाना पड़ता था, पकड़े जाने पर बीड़ी सिगरेट के शक में एक दो बार क्लास भी लग गई, और धुनाई भी हो गई।😜
अब जरा सोचिए कि इसे क्यों फ्यूचर क्रॉप की तरह देखा जाता है। तो आपको बता दूँ कि मक्के का प्रयोग कई तरह की इंडस्ट्रीज में किया जाता है। पैकेज्ड फ़ास्ट फ़ूड इंडस्ट्री का तो यह शहंशाह है। सस्ता होने के कारण बेसन की जगह आजकल इससे ही ज्यादतर खाने की सामग्रियाँ बन रही हैं। सूखी भोज्य सामग्री में मक्के के पापड़ बहुत पहले से अपने भारत के कई हिस्सों में प्रचलित हैं। पॉपकॉर्न जिसे गाँव मे मक्के की लाई कहते हैं यह भी ग्रामीण संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रही है। विज्ञान के विद्यार्थी जानते होंगे कि मक्के से स्टार्च भी प्राप्त किया जाता है। स्टार्च इंडस्ट्री के लिए इससे अच्छा कोई विकल्प ही नही है। बायोटेक्नॉलॉजी के विद्यार्थियों को पढ़ाया जाता है कि उच्च गुणवत्ता वाली प्लास्टिक निर्माण में भी मक्के का खास योगदान है, यह प्लास्टिक फाइबर्स को और अधिक लचीला बना देता है। इसी तरह फसलों में छिड़काव किये जाने वाले कई क्रॉप टॉनिक मक्के को सड़ाकर/ फरमेंट करके तैयार किये जाते हैं। क्योंकि इसमें अच्छी खाँसी मात्रा में मिनरल्स, प्रोटीन्स और अन्य आवश्यक पदार्थ मौजूद रहते हैं।
अच्छा एक और ज्ञान की बात बता दूँ, स्थलीय पौधों में दुनिया की सबसे लंबी style (वर्तिका) मक्के की ही होती है। जलीय पौधे में यह रिकॉर्ड वैलिसनेरिया नामक पौधे के पास है। मक्के की फसल भारत मे मोटे अनाज के रूप में सबसे अधिक बोई जाने वाली और उत्पादन करने वाली फसल है। छिंदवाड़ा जिले के चौरई तहसील को लोग मक्के के शहर के नाम से जानने लगे है। उत्पादन के हिसाब से छिंदवाड़ा जिला भारत के सभी जिलों में अग्रणी है। मध्य प्रदेश को कृषि कर्मण्य पुरुष्कार दिलाने में इस क्षेत्र का विशेष महत्व है। मक्के की रोटी हमारे ग्रामीण शैली में काफी घुली मिली सी है।
भोजन के रूप में मक्के को चाहें जिस तरह से उपयोग कर सकते हैं।। मक्के की रोटी और चने की भाजी ?सरसों का साग का तो पूछिये ही मत। थोड़ा नींबू निचोड़कर खाने बैठ जाइये, पेट जबाब देने लग जायेगा, लेकिन मन रुकने का नाम नही लेगा  ।
एक भुट्टे में चार प्रकार के मकई और उसके पास फूल पृष्ठभूमि मुफ्त डाउनलोड के लिए वॉलपेपर छवि - Pngtree
  पोपकोर्न कथा पूर्व में ही सुना चुका हूं। लेकिन आजकल मकई के पोहे और कॉर्न फ्लेक्स का जमाना है। इनका उद्देश्य सिर्फ बच्चों को ललचाना है। एक नाम और है #फजीता शायद आपने सुना नही होगा, लेकिन लगता है कि खाया जरूर होगा। अब बड़े बुजुर्गों के अनुभव से देखूं तो लचका, #पेजा और #महेरी ये कुछ ऐसे व्यंजन हैं जिनमे स्वाद के साथ साथ अपने संघर्ष के दिनों की कहानी का स्वाद भी आ जाता है।
पातालकोट का पेजा, मेरे गाँव का लचका और छिन्दवाड़ा की महेरी बहुत खास है। अगर आपको लगता है कि मेरी पोस्ट अक्सर आपको सिर्फ ललचाने के लिये होती हैं, तो आप एक तरह से यह सही भी हैं। क्योंकि जब तक जी ललचाएगा नही तब तक ये देशी खानपान आपके व्यवहार में आएगा कैसे?
मक्के की रोटी को जब बिना चौकी बेलन के हाथ से तैयार किया जाता है तो यह कुशलता, समर्पण, स्नेह, धैर्य और इन सबसे कहीं अधिक एक तरह का शारीरिक व्यायाम बन जाता है जो गृहणियों को न जाने कितने रोगों से बचा ले जाता है। अक्सर लोग मुझसे पूछते हैं कि भारतीय गृहणियों को पुरुषों की तुलना में कम बीमारियां क्यो होती हैं तो मैं मेरी माताजी से सुनी सुनाई बात जबाब में दोहरा देता हूँ, कि रोटी बनाना भी एक खास किस्म का व्यायाम है। चलते चलते एक बात कह दूँ, कि हाइवे, गली, चौराहों और चौपाटियों पर भुट्टे के ठेले …
😍। इनकी बात जब तक न हो तब तक लेख पूरा हो ही नही सकता। हजारों लोगों को हेल्दी फ़ूड और रोजगार उपलब्ध कराने के मामले में इसकी कोई टक्कर नही है। नई पीढ़ी स्वीट कॉर्न या बेबी कॉर्न को पसन्द करती हैं, लेकिन हमारे यहाँ जानकार लोग आज भी ठसन के साथ आवाज लगाते हैं… छोटू मेरे लिए एक देशी वाला भूंजना, नमक नींबू और तेज चटनी के साथ….
मक्के की महेरी /राब की महिमा पर भी नजर डालें:
आवश्यक सामग्री:
1. ताजे कूटे हुये मक्के के बीज
2. छाछ/ मही (बटर मिल्क)
3. कढ़ी पत्ते, जीरे, स्वादानुसार नमक और मिर्च
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विवरण:- छाछ को कढ़ाई या गंजी में खाने के तेल में थोडा जीरा, थोडा मैथी दाना और कढ़ी पत्ते डाल कर बघार लगायें और उबाल आने पर थोडा कूटा हुआ या किसा हुआ मक्का या मोटा पिसा हुआ मक्के का आटा डाल दें। 5 से 10 मिनट तक धीमी आंच में पकने दें, अच्छी तरह पक जाने पर स्वादानुसार नमक व मसाले मिर्च-धनिया-लहसन-अदरख आदी डाल दें, उबाल आने दें और मजेदार महेरी तैयार है…। ठंडा होने पर कटोरी मेंपरोसें।।
आज भी कई सुदूर गाँव ऐसे हैं जहाँ सालभर के हिसाब से भुट्टे टांग दिए जाते हैं रोज के हिसाब से एक या दो भुट्टे। जब कोई कमाई न हो तो इन्ही भुट्टे के दानों से पूरे परिवार के लिए महेरी या पेजा बनता है।
एक समय छिन्दवाड़ा जिले के पातालकोट मे तो रोज के हिसाब से एक भुट्टा ही घर के सामने लटकाकर सुरक्षित रखा जाता था। यह तरीका अनाज से प्राप्त पोषण का एक हिस्सा था क्योंकि जंगलो में रहने वाले ये प्रकृति मानव वास्तव में फल, पत्ते, कंदमूल आदि से भी पोषण प्राप्त किया करते थे। छुटपुट अन्य साधन भी रहे ही होंगे। शुद्ध शाकाहारी भारतीय खान पान के शौकीन मित्रो को बता दूँ कि फेस बुक पर भोजन-कल्पवृक्ष समूह भारतीय व्यंजन परंपराओं को समेटे एक अद्भुद समूह है। यहाँ आपको सम्पूर्ण भारत के विभिन्न क्षेत्रों में ग्रहण किये जाने वाले इसी तरह पारंपरिक व्यंजनो का खजाना मिलेगा। वहाँ मैं अक्सर अपने संकलन पोस्ट करते रहता हूँ। इससे अवश्य जुड़ें। 🙏
महेरी के विषय मे क्या बताऊँ, हमारे घर पर माह में 2- 4 बार बन ही जाता है कभी कभी तो सप्ताह में 2 बार भी। एक समय था जब गाँव के लोग बारिस में अपनी भूख इसी महेरी से मिटाया करते थे। कारण था कि वह दौर कम उपज का दौर था और पेट भरना आवश्यकता थी, दिखावा नही। घर से कहीं निकलना भी संभव न होता था। सीमित मात्रा में अनाज होता था और भोजन भी निर्धारित मात्रा में ही बनता था। ऐसे में जब कभी भोजन की कमी महसूस होती थी तो यही महेरी सहारा होता था। पेट भर के इसे पी लो न कोई एसिडिटी और न कोई गैस। पचने में भी झटपट वाला मामला, मोटी तोंद से अलग मुक्ति। आजकल तो मधुमेह के रोगियों को भी बाकायदा मोटा अनाज खाने की सलाह दी जाती है। महेरी इस मामले में सबसे उत्तम व्यंजन होता है, इसमें मोटा अनाज एक पोषक, पाचक एयर स्वादिष्ट कोम्बो पैक के रूप में उपलब्ध होता है।
इस व्यंजन में स्वाद और सेहद का आधार फेरमेंटशन प्रकिया होती है। वैज्ञानिक रूप से भी आज यह साबित हो चुका है कि फेरमेंटेड फ़ूड में विटामिन ए प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जो आंखों की रौशनी को तेज करता है साथ ही आंखों की बीमारियों से भी सुरक्षा प्रदान करता है। इसमें पाये जाने वाले कार्बनिक अम्ल भोजन को सुपाच्य बनाकर शरीर की विभिन्न मेटाबोलिक एक्टिविटी को कंट्रोल करते हैं। छत्तीसगढ़ का बासी भी लगभग इसी तरह का पारंपरिक व्यंजन था, लेकिन इसमी साबुत पके अनाज को फरमेंट करके खाया जाता था। लचका, पेजा, माड़ आदि सभी ऐसे ही व्यंजन हैं। केवल गुणों की चर्चा करूँ और बनाना न सिखाऊँ तो कहीं अन्याय न हो जाये आपके साथ क्योंकि मक्के का मौसम चल रहा है तो आपका मन भी करेगा मेरी तरह उल्टे पुल्टे प्रयोग करने का। अपने लिए तो यह सम्पूर्ण धरा ही प्रयोगशाला है, लगे हैं प्रयोग करने में…। हमारे गाँव में जब किसी का कुछ खाने का मन न करे, बीमार सा लगे या फिर अपच, गैस आदि की शिकायत हो तो उसे महेरी खाने की सलाह दी जाती है।
डॉ. विकास शर्मा
वनस्पति शास्त्र विभाग
शासकीय महाविद्यालय चौरई
जिला छिंदवाडा (म.प्र.)
वैज्ञानिक नाम#Zea_maize
फैमिली- #Poaceae
Gift of modern people to old world