कोरोना का दौर :ब्लैक फंगस की दर्दनाक कहानी और काबू की कोशिश!  

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कोरोना का दौर :ब्लैक फंगस की दर्दनाक कहानी और काबू की कोशिश!  

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– अभय बेडेकर (आईएएस)

कोरोना की दूसरी लहर के अंतिम दिनों में जब मैं अपने रूटीन राउंड पर बॉम्बे हॉस्पिटल गया था तो वहाँ एक मरीज़ को देखा जिसे चेहरे पर एक गंभीर घाव, फोड़ा और लाल सूजन थी जो धीरे-धीरे आँख की तरफ़ बढ़ रही थी। मैं उस दृश्य को देखकर दहल गया। क्योंकि, मैंने आजतक कोई भी ऐसा गंभीर वायरल इन्फेक्शन नहीं देखा था, जो इतना घबराहट पैदा करने वाला हो। मैंने जब डॉक्टर से पूछा कि ये क्या है, तो उन्होंने बताया कि ये ‘म्यूकर माइकोसिस’ है जिसे आम भाषा में ब्लैक फंगस भी कहते हैं और ये अत्यंत गंभीर और जानलेवा वायरल इन्फेक्शन है। म्यूकर माइकोसिस एक बेहद दुर्लभ बीमारी है, जो ज्यादातर उन लोगों को प्रभावित करती है जिनकी प्रतिरक्षण प्रणाली स्टेरॉयड, अनियंत्रित मधुमेह मेलिटस, सह-रुग्णता (प्रत्यारोपण पश्चात/घातकता) के कारण कमजोर है। जो वोरिकोनाज़ोल थेरेपी से गुज़र चुके हैं, या लंबे समय तक आईसीयू में रहे हैं उन्हें भी यह बीमारी अपनी चपेट में लेती है।
कोविड-19 की शुरुआत के बाद ब्लैक फंगस के उद्भव, जिसे जाइजो माइकोसिस या म्यूकर माइकोसिस के नाम से भी जाना जाता है। उसने ध्यान आकर्षित किया था। कोविड के दौरान जिन लोगों की इम्यूनिटी कम थी, वे म्यूकर माइकोसिस के निशाने पर थे, जो एक दुर्लभ फंगल इन्फेक्शन है। यह सड़ती हुई रोटी, मिट्टी या खाद के ढेर से पैदा हुई फंगी से हो सकता है और काफी जानलेवा भी है। यदि इसका शुरुआती चरण में इलाज नहीं किया गया तो मृत्यु की संभावना हो सकती है। ज्यादातर यह उन लोगों को प्रभावित करता है जिन्हें कोरोना हुआ है। यह वायरस भोजन, पर्यावरण और अन्य चीजों में मौजूद रहता है। ब्लैक फंगस डिजीज का मूल कारण सांस के माध्यम से वातावरण से फंगस को अंदर लेना है। ये फंगल इन्फेक्शन साइनस, मस्तिष्क और लंग्स इन्फेक्शन का कारण बनता है। दूसरा तरीका त्वचा के माध्यम से है यदि आपकी त्वचा पर कोई चोट है तो यह आपकी त्वचा के माध्यम से प्रवेश कर सकता है और त्वचा में संक्रमण का कारण बन सकता है।
खुद को माइक्रोस्कोपिक फंगल इन्फेक्शन से दूर रखना काफी मुश्किल है। ये इन्फेक्शन्स तब तक हानिकारक नहीं होते हैं जब तक कि आपका इम्यून सिस्टम कमजोर न हो। ब्लैक फंगल सांस के साथ शरीर के अन्य हिस्सों में भी फैल सकता है। जब इंदौर के अस्पतालों में ब्लैक फंगस के मरीज बढ़ने लगे और हर तरफ़ उसके बारे में बात होने लगी तो सभी का ध्यान उसकी तरफ गया और इस बात की तलाश होने लगी कि आख़िर ब्लैक फंगस हो क्यों हो रहा है! फिर सब तरफ़ चर्चा होने लगी, डॉक्टर सेमिनार हुए, टीम मीटिंग हुई और मेडिकल फील्ड में बड़े लेवल पर भी ये बात पहुंची कि आख़िर ब्लैक फंगस क्यों फ़ैल रहा है!
तब तीन- चार बातें निकल कर सामने आयी कि जिन मरीजों का हाल ही में कैंसर का ऑपरेशन हुआ है। जो किसी गंभीर बीमारी जैसे एड्स, हार्ट डिजीज या कैंसर से ग्रस्त हैं और जिनकी इम्युनिटी एकदम कम हो चुकी है। जो व्यक्ति नशे के आदि हों या स्टेरॉयड लेते रहे हो। जिनका ऑर्गन ट्रांसप्लांट हुआ हो। जिन्हें कोरोना हुआ हो और जिससे उनकी इम्युनिटी बहुत कम हो गई हो। इन सारे मरीजों की इम्युनिटी एकदम निचले लेवल पर होती है और ये किसी भी वायरस या बैक्टीरिया के अटैक के प्रति अत्यंत संवेदनशील हो चुके होते हैं। इसलिए जैसे ही कोई भी वायरस इन पर अटैक करता है तो ये तुरंत ही उस से प्रभावित हो जाते हैं।
कोरोना के समय ऑक्सीजन की कमी पड़ने पर अस्पतालों ने और लोगों ने ऑक्सीजन कंसंट्रेटर खरीदे थे। ऑक्सीजन कंसंट्रेटर में पानी डालना पड़ता है जिससे वह ऑक्सीजन बनाकर मरीज़ तक पहुंचाता है। पर ये पानी डिस्टिल्ड वॉटर होना जरूरी है अन्यथा पानी में उपस्थित फ़ंगस (जो आँखों से दिखते नहीं है) ऑक्सीजन के रास्ते मरीज के शरीर में पहुँच सकते हैं और वो क़हर ढा सकते हैं। इन्हें ब्लैक फ़ंगस कहते हैं और जो जानलेवा हो सकता है। कोरोना काल की दूसरी लहर के अंतिम दिनों में यही हुआ जिन मरीजों की इम्युनिटी कोविड-19 से ग्रस्त होने के कारण एकदम कम हो चुकी थी और उन्होंने ऑक्सीजन कंसंट्रेटर का उपयोग किया था उनके नाक में और मुंह में फंगस पहुंचा और यही ब्लैक फंगस की बीमारी थी। ये ऐसी खतरनाक बीमारी थी कि अगर मरीज के नाक में पहुंच जाए तो नाक काटनी पड़ती थी और अगर आँख तक पहुंच जाए तो आँख ही निकालना पड़ती थी। ये सब इसलिए कि ब्लैक फ़ंगस मस्तिष्क तक न पहुँच जाये अन्यथा मरीज़ की मृत्यु निश्चित है।
मैंने ऐसे अनेक मरीज़ उस समय बॉम्बे अस्पताल और सुपर स्पेशलिटी अस्पताल इंदौर में देखे जिनको देखकर घबराहट से भागने का मन करता था। किसी की नाक कटी हुई थी तो किसी की आँख निकली थी। उनके घर वालों को ढाढस बंधाना कितना मुश्किल था वो अनिर्वचनीय है। ब्लैक फंगस की बीमारी जितनी ख़तरनाक है, उसकी दवाई भी उतनी ही ज़हरीली और ख़तरनाक है। एम्फोटेरिसिन बी, पॉसकानाजोल ये दोनों ही दवाइयाँ ब्लैक फंगस के लिए दी जाती थी और ये दोनों ही दवाइयाँ बहुत खतरनाक और जहरीली हैं। एम्फोटेरिसिन-बी अत्यंत टॉक्सिक मेडिसिन है जो सिर्फ़ डॉक्टर्स की देख-रेख में ही दी जा सकती है। अगर इसे बिना डॉक्टर के पूछे दिया गया तो ये किडनी और लिवर को हमेशा के लिए डैमेज कर सकता है।
ब्लैक फंगस कितनी खतरनाक बीमारी है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कोविड-19 में भारत में मृत्यु दर 1.15%  थी जबकि ब्लैक फ़ंगस में मृत्यु दर 50 % के लगभग थी। एम्फोटेरिसिन-बी का डोज एक मरीज़ को 20 इंजेक्शन का था जो उस कठिन समय में मिलना बहुत मुश्किल थे। इसकी राशनिंग हो चुकी थी और ये बहुत मुश्किल से मिल रहे थे। क्योंकि, मई 2021  तक भारत में ब्लैक फंगस के 8848 मरीज हो चुके थे। एम्फोटेरिसिन-बी नामक ये दवा मूलत: डेनमार्क में बनती है और भारत में इंपोर्ट की जाती है। उस समय इस दवा की वैश्विक डिमांड होने से भारत में इसकी पूर्ति नहीं हो पा रही थी और लोग परेशान थे।
तब इंदौर के तत्कालीन कलेक्टर मनीष सिंह इस पर बहुत कड़ी नजर रखे हुए थे और हमारे साथ दवाइयों की उपलब्धता की रोज़ समीक्षा करते थे, ताकि इंदौर के मरीजों को परेशान न हो। मैं और उसके साथ के अधिकारी रोज़ अस्पतालों का दौरा करते और स्थिति पर नज़र बनाकर रखने के साथ साथ मरीजों और उनके परिजनों की हिम्मत बढ़ाते रहते थे। इंदौर में एक समय ब्लैक फंगस के 200 से ज़्यादा मरीज़ थे और उन्हें दवाई पहुँचाना अत्यंत कठिन काम था। कोरोना की दूसरी लहर के खत्म होने के साथ ही इस घातक बीमारी में भी कमी आई और स्थिति सामान्य होने लगी। वो दौर याद करके भी कंपकंपी सी आ जाती है। भगवान करे कि वो ख़तरनाक समय फिर कभी किसी के सामने न आए।