Corruption Law : भ्रष्टाचार कानून ईमानदारों की ढाल, बेईमानों पर लगाम, केंद्र सरकार का सुप्रीम कोर्ट में पक्ष

पिछले 6 वर्षों में आई 2,395 शिकायतों में 989 (41%) को जांच से रोका गया!

742

Corruption Law : भ्रष्टाचार कानून ईमानदारों की ढाल, बेईमानों पर लगाम, केंद्र सरकार का सुप्रीम कोर्ट में पक्ष

 

मीडियावाला’ के स्टेट हेड विक्रम सेन की टिप्पणी

 

New Delhi : केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में स्पष्ट कहा कि भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम (Prevention of Corruption Act) के तहत धारा 17A का उद्देश्य ईमानदार अधिकारियों को बचाना और भ्रष्ट अधिकारियों को दंडित करना है। सरकार ने इसे निर्भीक शासन (Fearless Governance) की आधारशिला बताया, जो किसी भी संवैधानिक शासन प्रणाली का मूल सिद्धांत है।

यह टिप्पणी उस समय आई जब सर्वोच्च न्यायालय ने भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा 17A की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर अंतिम सुनवाई करते हुए फैसला सुरक्षित रख लिया।

क्या है यह पूरा मामला

2018 में संशोधित धारा 17A के अनुसार, किसी भी सरकारी अधिकारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच शुरू करने से पहले सरकार की पूर्व अनुमति आवश्यक है। इसे लेकर सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (CPIL) ने याचिका दाखिल की, जिसमें इस प्रावधान को जांच की स्वतंत्रता के विरुद्ध बताया गया।

दो दिवसीय सुनवाई में क्या हुआ?

सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ के समक्ष दो दिन चली बहस में CPIL की ओर से अधिवक्ता प्रशांत भूषण और केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पक्ष रखा। प्रशांत भूषण की दलीलें थी कि धारा 17A जांच की शुरुआत में ही बाधा बनती है। ललिता कुमारी फैसले के तहत प्रारंभिक जांच की अनुमति है, इसलिए 17A का औचित्य नहीं। पिछले 6 वर्षों में आए 2,395 मामलों में 989 (41%) को जांच से रोका गया।

केंद्र का जवाब (SG तुषार मेहता)

धारा 17A विधायिका की मंशा को प्रतिबिंबित करती है। इसका उद्देश्य ईमानदार अधिकारियों को अनावश्यक परेशानियों से बचाना है। यह जांच को रोकता नहीं, सिर्फ जांच के प्रारंभ से पहले अनुमति की मांग करता है। अब तक 60% मामलों में जांच की अनुमति दी गई है।

महत्वपूर्ण आंकड़े

– 2,395 शिकायतें (6 वर्षों में)

989 (41%) में अनुमति नहीं दी गई।

– 1,406 (59%) में जांच की मंजूरी मिली।

सुप्रीम कोर्ट का रुख

जस्टिस विश्वनाथन ने पूछा कि क्या धारा 17A आईपीसी के तहत दर्ज अपराधों को भी प्रभावित करती है। SG मेहता ने जवाब दिया कि ऐसा अपवाद स्वरूप ही होगा। पीठ ने यह भी पूछा कि 2018 के संशोधन के बाद कितने भ्रष्टाचार मामलों में धारा 17A के तहत अनुमति दी गई है। मेहता ने कहा कि सीबीआई से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, 60% शिकायतों को जांच के लिए स्वीकृति दी गई।

एक और बड़ा निर्देश, तमिलनाडु सरकार को फटकार

सुप्रीम कोर्ट की एक अन्य पीठ जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस उज्जल भुइयां और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह ने तमिलनाडु सरकार को निर्देश दिया कि बिना जांच के किसी भी मौजूदा या पूर्व मंत्री या डीएमके पार्टी के विधायकों के खिलाफ दर्ज मामलों को वापस न लिया जाए। यह निर्देश एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया गया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि राजनैतिक दबाव में जांच और अभियोजन की स्वीकृति को वापस लिया जा रहा है। पीठ ने स्पष्ट किया कि सरकार की ओर से दाखिल हलफनामा याचिकाकर्ता को नहीं, बल्कि न्यायालय को संतुष्ट करने के लिए होना चाहिए। मामले की अगली सुनवाई 17 सितंबर को होगी।

केंद्र सरकार का यह रुख साफ संकेत देता है कि भ्रष्टाचार कानून का दायरा जांच को निष्पक्ष और प्रभावी बनाना है। जहां एक ओर सरकार जांच की अनुमति को आवश्यक सुरक्षा कवच मान रही है, वहीं दूसरी ओर याचिकाकर्ता इसे प्रशासनिक बाधा बता रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट का आने वाला फैसला तय करेगा कि ईमानदारी की रक्षा और भ्रष्टाचार की सज़ा के बीच संतुलन कैसे स्थापित किया जाए।

विशेष टिप्पणी

‘भ्रष्टाचार कानून का उद्देश्य किसी भी प्रकार से ईमानदार लोक सेवकों को बचाना है, ताकि वे भयमुक्त होकर जनसेवा कर सकें। लेकिन इसकी आड़ में किसी भ्रष्ट अधिकारी को संरक्षण न मिले, यह सुनिश्चित करना न्यायपालिका की जिम्मेदारी है।’

– अरिहंत नाहर (वरिष्ठ अधिवक्ता)