बाबाओं के मोहपाश में फंसा देश
धार्मिक आयोजनों और बाबाओं के कार्यक्रमो की भीड़ में भगदड़ और अफरातफरी की घटना बार बार दोहराई जा रही हैं लेकिन फिर भी केंद्र और राज्य सरकारों की तरफ से धर्म के नाम पर जमा होने वाली भीड़ को नियंत्रित करने के लिए कोई एस ओ पी (स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर) नहीं बनी है। धर्म एक ऐसा व्यवसाय बन गया है जिसमें तमाम तरह के दागी, बागी और अपराधी शरण पाकर भगवान का दर्जा प्राप्त कर लेते हैं। इसके पीछे वोट बैंक की राजनीति भी काफ़ी हद तक जिम्मेदार है।वामपंथी दलों के अलावा अमूमन तमाम दलों के बड़े नेता किसी न किसी बाबा की शरण में बैठे दिखाई देते हैं और कई नेता तो दर्जनों बाबाओं के साथ नजदीकियां बनाए रहते हैं ताकि थोक में उनके भक्तों के वोट बटोर सकें। एक जमाने में चंद्रास्वामी ऐसे बाबाओं की सूची में नंबर एक था। बाद में आशाराम बापू और राम रहीम आदि इस सूची में शामिल होते गए। स्थानीय स्तर पर भी डोंकी बाबा और वर्तमान में हाथरस हादसे वाला बाबा जैसे न जाने कितने बाबा कश्मीर से कन्याकुमारी तक मिल जाएंगे। इसी तरह रामकथा वाचकों और भागवत कथा वाचकों और राधा कृष्ण के प्रेम प्रसंगों के बहाने रासलीला रचाते छोटे बड़े बाबाओं की देश भर में न जाने कितनी दुकानें फल फूल रही हैं।बाबाओं का चोला अपराधियों , भ्रष्ट सरकारी कर्मियों, और विशुद्ध धार्मिक धंधेबाजों के लिए ऐसा सुरक्षा कवच है जिसे भेद पाना सुरक्षा एजेंसियों के लिए भी नामुमकिन है।नए नए बाबा नए नए भूले बिसरे देवी देवताओं के ज्ञात अज्ञात ठिकाने हथियाकर धर्मभीरू जनता में खूब अंध विश्वास परोस रहे हैं।हाथरस वाले चर्चित बाबा ने भी पुलिस की मामूली नौकरी से बर्खास्तगी के बाद जिस तरह से भक्तों की फौज खड़ी की वह भी कम आश्चर्यजनक नहीं है।
किसी और को क्या कहा जाए जब देश के प्रधानमन्त्री खुद अपने आप को अलौकिक शक्ति से संपन्न बताते हैं। वे ख़ुद भी आशाराम बापू और कई दूसरे बाबाओं के साथ आत्मीयता दिखाते रहे हैं।उनके पूर्ववर्ती इंदिरा गांधी और नरसिंह राव के भी धीरेंद्र ब्रह्मचारी और चंद्रास्वामी आदि से आत्मीय रिश्ते जगजाहिर थे।कई मुख्यमंत्रियों की अपने सूबे के ऐसे बाबाओं से नजदीकियां रही हैं जिनका चरित्र आपराधिक और संदिग्ध गतिविधियों में लिप्त रहा है। इसी वजह से बाबाओं का बाजार बहुत बड़ा है। उनकी ट्रस्ट में काले धन की नीव होती है, उसी के सहारे उनके पांच सितारा होटल बनते हैं जिनमें राजाओं सरीखे ऐशो आराम की साधन सुविधाएं जुटती हैं।कई छोटे व्यापारी उनकी भीड़ वाली महफिलों में प्रसाद और होटल आदि के धंधे चलाते हैं और बडे़ व्यापारी बाबाओं के नेटवर्किंग के माध्यम से टेंडर आदि पाते हैं और बहुत से अधिकारी मलाईदार पोस्टिंग का जुगाड करते हैं।
जिस तरह का राजनीतिक सरंक्षण इन बाबाओं को मिलता है उसके सामने अक्सर पुलिस प्रशासन और कानून के हाथ पैर सब बंध जाते हैं। इन बाबाओं के खिलाफ नामजद एफ आई आर दर्ज करना पुलिस के लिए वैसी ही टेढ़ी खीर साबित होती है जैसे पूर्व सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि प्राप्त महिला पहलवानों की शिकायत के बावजूद दिल्ली पुलिस हिम्मत नहीं कर पाई थी। ऐसे में इनको निचली अदालतों से सजा दिलाना लगभग असंभव है। सामान्य प्रशासनिक व्यवस्था के लिए बाबाओं से निबटना संभव नहीं है क्योंकि धर्म और वोट बैंक की राजनीति इस कार्य में सबसे बड़ा अवरोधक है। इस समस्या का एक ही समाधान है। सर्वोच्च न्यायालय के मार्गदर्शन में एक हाई पावर एस आई टी बननी चाहिए जिसमें बाबाओं के अपराधों और काले धन की जमाखोरी की सघन जांच के लिए आयकर और पुलिस के ईमानदार और चरित्रवान अधिकारियों की बड़ी टीम संयुक्त रूप से काम करे तभी काफ़ी बाबा एक साल के अंदर सलाखों के पीछे पहुंच सकते हैं और उनके अकूत काले धन और संपत्ति की जब्ती हो सकती है।