Courage Saved The Workers : सुरंग से मजदूरों के जीवित निकलने में सबसे बड़ा है हौसला! 

जानिए, शुरू के 9 दिन तक कैसे बस बाहर निकलने की उम्मीद ने ही बचाया!   

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Courage Saved The Workers : सुरंग से मजदूरों के जीवित निकलने में सबसे बड़ा है हौसला!

Silkyara (Uttarkashi) : सिलक्यारा में धंसी सुरंग से 41 मजदूर सुरक्षित बाहर निकाल लिए गए। अब इस रेस्क्यू ऑपरेशन की कई कहानियां सुनाई जा रही है कि कैसे मशीनों के फेल होने पर रेट माइनर्स ने हाथ से बची सुरंग को खोदकर मजदूरों को बाहर निकालने का रास्ता बनाया। लेकिन, सबसे अहम् बात ये है कि 17 दिन तक जिंदगी की आस बनाकर धंसी सुरंग में रहने का हौंसला बनाए रखना सबसे बड़ी बात रही। जहां बचने कोई उम्मीद नहीं हो, एक के बाद एक मशीनें फेल हो रही हो, वहां ‘हम जिंदा बाहर निकलेंगे’ कि आस को बनाए रखना कम नहीं होता!

जहां 9 दिन तक तक खाने को चने और मखाने थे, चारों तरफ घुप्प अंधेरा था, वहां भी इन 41 मजदूरों ने जिस तरह अपने आपको संभाला वो किसी प्रेरणा से कम नहीं है। सुरंग में बीता उनका एक-एक पल जीवन का एक नया अध्याय है। जीवन के 9 दिन का गुजारा केवल चने, मखाने खाकर और बह रहे पानी से किया। सोने को बिस्तर था न शौच की सुविधा।

इसे सोचकर ही कंपकंपी आती है और इसीलिए ‘ऑपरेशन सिलक्यारा’ के सभी मजदूरों की जिंदादिली एक उदाहरण बन गई। टनल के भीतर इन 17 दिन उनकी दिनचर्या तो कुछ बनी, पर बाहर आने की व्याकुलता बरकरार रही। डॉक्टर, मनोचिकित्सक उनका हौसला बढ़ाते रहे। इसी जीवंतता के दम पर ही ये मजदूर सुरक्षित बाहर निकलने में सफल हो सके।

दिवाली के दिन 12 नवंबर की सुबह करीब 5:30 बजे जब सुरंग धंसी तो मजदूरों की आवाज सुनने के लिए 4 इंच का एक पाइप ही बचा था। बात हुई तो पता चला कि सभी बच गए, लेकिन फंसे हुए हैं। ऐसा कोई जरिया नहीं था, जिससे उन्हें खाने का सामान भेजा जाए। 20 नवंबर तक उन्हें सिर्फ जरूरी दवाएं, चने और ड्राई फ्रूट ही चार इंच के पाइप के जरिए प्रेशर से भेजे गए। वे किसी तरह अपनी भूख मिटाकर बचने का इंतजार करते रहे कि कोई तो उन्हें बाहर निकालेगा।

20 नवंबर को किसी तरह 6 इंच का पाइप अंदर तक पहुंचा तो मजदूरों को कुछ राहत मिली। उन्हें खाने के लिए खिचड़ी, केले, संतरे, दाल-चावल, रोटी के अलावा ब्रश, टूथपेस्ट, दवाएं, जरूरी कपड़े भेजे गए। उन्हें टीशर्ट, अंडर गारमेंट, टूथपेस्ट और साबुन भी भेजा गया। मजदूरों ने कपड़े बदले, मुंह हाथ धोया और भोजन किया। टेलीस्कोपिक कैमरे की मदद से सभी मजदूरों को देखा गया, बात की गई और उनके परिवारों को भी उनके सुरक्षित होने की जानकारी दी।

हिम्मत बांधने में कोरोना फार्मूला काम आया

मजदूरों का हौसला बढ़ाने में कोरोना काल का फार्मूला काम आया। कोरोना से संक्रमित मरीजों को यह कहा जाता था कि ईश्वर आपके साथ है। सब आपकी मदद कर रहे हैं। यहां कहा गया कि आप जल्दी बाहर निकलोगे, बस धैर्य रखो। यहां भी ऐसे मजदूरों का हौसला बढ़ाया। कोरोना के मरीजों को भी खुद पर भरोसा रखने के साथ कहा जाता था। यहां बार-बार डॉक्टरों ने उनका हौंसला बढ़ाया कि सब आपकी मदद कर रहे हैं, जल्द बाहर निकलोगे। अंदर फंसे मजदूरों से बात की, तो उन्हें ईश्वर पर भरोसा रखने को कहा गया।

ब्रह्मा की भूमि में कोई असुरक्षित नहीं

सिलक्यारा क्षेत्र को भगवान ब्रह्मा की भूमि माना जाता है। ब्रह्मखाल क्षेत्र की इस सुरंग से 41 मजदूरों के सुरक्षित निकालकर एक इतिहास रच दिया गया। मान्यता है कि यहां भगवान ब्रह्मा ने तपस्या की थी। राजस्थान के पुष्कर की तरह यहां भी भगवान ब्रह्मा का मंदिर है। ऑपरेशन सिलक्यारा के दौरान तकनीक के इस्तेमाल के साथ आस्था का बेजोड़ संगम दिखाई दिया। हर दिन अभियान शुरु करने से पहले सुरंग के बाहर बाबा बौखनाग की पूजा होती थी। ऑस्ट्रेलिया से आए इंटरनेशनल टनल एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रो अर्नोल्ड डिक्स की भी सुरंग में प्रवेश से पहले पूजा करते हुए तस्वीर सामने आई थी।

सिलक्यारा से कुछ मील पहले कस्बा ब्रह्मखाल है। मान्यता है, कि भगवान ब्रह्मा ने इस स्थान पर तपस्या कर ब्राह्मण रूप धारण किया था। पुष्कर की तरह यहां बी उनका बहुत प्राचीन मंदिर है। राजस्थान से आए हुए रावत ही इस मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं। अन्य देवताओं की तुलना में काफी उदार कहे जाने वाले भगवान ब्रह्मा की इस भूमि ने आखिर मजदूरों की जिंदगी के लिए राह आसान कर दी। लेकिन, भगवान की कृपा के साथ सबसे बड़ा है हौसला!