
Court Dismissed the Claim : कान्हा इंटरनेशनल होटल का दावा न्यायालय ने किया निरस्त!
Ratlam : जिले के ग्राम सेजावता फोरलेन स्थित इफ्का लेबोरेटरी के पास होटल कान्हा इंटरनेशनल की और से शासन के विरुद्ध लगाया गया दावा न्यायालय तृतीय व्यवहार कनिष्ठ खण्ड के न्यायाधीश अतुल श्रीवास्तव ने निरस्त कर दिया है। जानकारी देते हुए शासकीय अधिवक्ता समरथ पाटीदार ने बताया कि चांदनीचौक निवासी होटल मालिक चन्द्रप्रकाश सोनी पिता जगदीशचंद्र सोनी ने वर्ष 2020 में रतलाम न्यायालय में दावा पेश किया था कि मेरे आधिपत्य की भूमि सर्वे क्रमांक 128/8 रकबा 0.800 ग्राम सेजावता, जिला-रतलाम में स्थित हैं। उक्त भूमि पर 1 व्यावसायिक होटल भवन का निर्माण किया गया हैं जिसमें मैं अपना व्यापार संचालित करता हुं। मेरे द्वारा उक्त भूमि पंजीकृत विकृय पत्र दिनांक 28. नवम्बर. 1996 के माध्यम से क्रय की गई थी तथा उक्त दिनांक से ही में उक्त भूमि का स्वत्वधारी एवं आधिपत्यधारी हूँ तथा राजस्व अभिलेख में भी वादग्रस्त भूमि मेरे नाम से दर्ज है।
मेरे द्वारा उक्त भूमि पर वर्ष 2012-13 में भवन का निर्माण प्रारंभ किया था तथा विधिक अज्ञानता के कारण मेरे द्वारा वादग्रस्त भूमि का कृषि प्रयोजन से व्यावसायिक प्रयोजन में व्यपवर्तन नहीं कराया गया था। उक्त त्रुटि के कारण अधीक्षक भू-अभिलेख रतलाम/राजस्व निरीक्षक, रतलाम / पटवारी द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट एवं पंचनामा के आधार पर अनुविभागीय अधिकारी रतलाम ग्रामीण द्वारा प्रकरण क्रमांक 04/अ-2/15-16 पंजीबद्ध किया गया था तथा आदेश दिनांक 21. दिसम्बर. 2015 के द्वारा यह आदेशित किया गया था कि उक्त भूमि के व्यपवर्तन हेतु लिखित सूचना देने की आवश्यकता थी जो मेरे द्वारा नहीं दी गई, जिसके उपरांत म.प्र. भू-राजस्व संहिता, 1959 की धारा 172(1) एवं 59(2) के अंतर्गत मुझ पर अर्थदंड अधिरोपित किया गया था तथा वादग्रस्त भूमि को औद्योगिक प्रयोजन में व्यपवर्तित किया गया था। मेरे द्वारा उक्त आदेश के पालन में अर्थदंड राशि जमा कराई गई थी तथा ग्राम पंचायत सेजावता से विधिवत निर्माण अनुज्ञा प्राप्त करने के उपरांत उक्त वादग्रस्त भवन का निर्माण पूर्ण किया गया था।
न्यायालय में दावा प्रस्तुत करने के कुछ दिन पूर्व कलेक्टर रतलाम के अधीनस्थ कार्यरत अधिकारी एवं कर्मचारी मुझसे अवैधानिक लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से मेरी वादग्रस्त भूमि पर आकर मनमाने रूप से नप्ती इत्यादि की कार्यवाहीं करते एवं वादग्रस्त भवन के निर्माण को लेकर अनावश्यक आपत्तियां एवं विवाद करते तथा वादग्रस्त भवन का निर्माण तोड़ने की धमकी देते। कलेक्टर के अधीनस्थ किसी भी अधिकारी/कर्मचारी द्वारा मुझे किसी भी प्रकार का कोई सूचनापत्र नहीं दिया गया तथा सुनवाई का अवसर प्रदान किये बिना वादग्रस्त भवन पर कार्यवाही करने की धमकी दी जा रही। प्रतिवादी के उक्त कृत्य से भयभीत होकर तथा वादग्रस्त भूमि एवं भवन के संरक्षण हेतु मेरे द्वारा यह वाद प्रस्तुत किया गया था कि कलेक्टर के अधीनस्थ किसी भी कर्मचारी अधिकारी को मेरे भवन व निर्माण में किसी प्रकार से तोड़फोड़ का अधिकार प्राप्त नही है। न्यायालय ने वादी चंद्रप्रकाश व शासन दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद वादी चंद्रप्रकाश का दावा निरस्त कर दिया!





