क्रिकेट बनाम सियासत का खेल

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एक जमाना था जब हम भी दूसरों की भांति क्रिकेट के दीवाने थे. उन दिनों न परीक्षा का भूत हमें क्रिकेट सुनने [ तब देखने की व्यवस्था न थी ] से रोक सकता था और न घर वालों की डाट-फटकार .जब टीवी पर क्रिकेट सजीव दिखाया जाने लगा तो ये बुखार खूब बढ़ा.खुद स्टेडियम में जाकर क्रिकेट देखने का परमानंद भी हमने कभी हाथ से नहीं जाने दिया .लेकिन लम्बे अरसे से टीवी से तर्के-ताल्लुक के साथ ही ये दीवानगी जाती रही.अचानक कल जब भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच टी-20 मैच देखने का मौक़ा मिला तो बीते दिन याद आ गए .

दुनिया के तमाम खेलों में क्रिकेट सबसे अलग खेल है. इसमें सब कुछ अनिश्चित होता है. महान से महान खिलाडी कहिये तो शून्य पर चलता बने और कहिये तो एकदम नौसीखिया शतक बनाकर आपको चौंका दे .कल भी यही हुआ.टीम इंडिया ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ हुई 3 मैच की टी-20 सीरीज़ पर कब्जा कर लिया है. हैदराबाद में खेले गए सीरीज़ के निर्णायक मैच में भारत ने 6 विकेट से जीत जीत हासिल की और इसी के साथ सीरीज़ पर 2-1 से कब्जा कर लिया. जानकार कहते हैं कि ‘वर्ल्डकप ‘ में जाने से पहले भारतीय टीम के लिए यह जीत अच्छे मनोबल का काम करेगी.

मनोबल खेल में ही नहीं बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में सफलता की गारंटी बन सकता है. भारत के लिए इस मैच में सूर्यकुमार यादव और विराट कोहली हीरो बनकर सामने आए. ऑस्ट्रेलिया ने टीम इंडिया के लिए 187 रनों का लक्ष्य रखा था, केएल राहुल (1) और रोहित शर्मा (17) के सस्ते में आउट होने के बाद सूर्यकुमार यादव और विराट कोहली ने पारी को संभाला.सूर्यकुमार और विराट कोहली के छक्कों ने मजा बांध दिया .सूर्यकुमार यादव ने 36 बॉल में 69 रनों की पारी खेली, जिसमें 5 चौके और 5 छक्के शामिल रहे. वहीं, विराट कोहली ने भी 48 बॉल में 63 रनों की पारी खेली, उन्होंने 3 चौके और 4 छक्के जमाए. दोनों खिलाड़ियों के बीच मैच में 62 बॉल में 104 रनों की साझेदारी हुई. इसी साझेदारी ने खेल को भारत की तरफ पलट दिया.

मेरे लिए ये मैच बेहद रोमांचक था. मैच में यदि रोमांच न हो तो मजा नहीं आता .अंत में हार्दिक पंड्या ने 16 बॉल में 25 रनों की पारी खेली और मैच को फिनिश किया. आखिरी 3 ओवर में भारत को 32 रनों की जरूरत थी, बीच में ऐसा लगा कि मैच फंस सकता है लेकिन हार्दिक और कोहली की जोड़ी ने यहां कमाल दिखाया. आखिरी ओवर में भारत को 11 रनों की जरूरत थी, जिसे हार्दिक ने चौका मारकर पूरा किया. बहरहाल मैच से आपको फिर सियासत की पिच पर ले चलता हूँ .इस समय देश में सियासत भी बेहद फंसी हुई है .सबको इस समय विपक्ष के खेल का इन्तजार है .

देश की सियासत में जब से खेल भावना समाप्त हुई है तब से न कोई रहस्य रहा है और न रोमांच .सियासत अब कौशल का नहीं बल्कि खरीद-फरोख्त का खेल बन गयी है ,फिर भी दुनिया उम्मीद पर कायम है .सत्तारूढ़ दल की उम्मीद है कि वो सत्ता में रहने का कांग्रेस का कीर्तिमान ध्वस्त करेगा और विपक्ष को उम्मीद है कि उसका बिखराव अंतत: एकता में बदल कर सत्तारूढ़ दल के सपने को पूरा नहीं होने देगा .सभी राजनीतिक दल जनता के सपनों को भुला बैठे हैं .राजनीति के खिलाड़ी क्रिकेट के खिलाड़ियों की तरह देश के लिए नहीं बल्कि अपने लिए खेलने लगे हैं .

राजनीति के खेल में जो रोमांच 2014 में था वो 2019 में जाता रहा,क्योंकि जीती हुई टीम ने दोबारा खेल जीतने के लिए जो कुछ किया वो अप्रत्याशित न था .सबको पता था कि 2019 का खेल ‘करो या मरो’ की भावना का खेल न था .दूसरे पक्ष की तैयारियां शुरू से कमजोर नजर आ रहीं थीं .बीते 08 साल में सियासत के खेल के प्रति जनता का रोमांच कम हुआ है. खिलाड़ी भी अब अपने प्रदर्शन से दर्शकों को लगातार निराश कर रहे हैं .अब सियासत का खेल ,खेल नहीं रहा बल्कि ‘ खेला ‘ हो गया है .कब कहाँ ये खेला हो जाये कोई नहीं जानता .अब जनमत हासिल करने के लिए चुनाव के अलावा भी अनेक रास्ते हैं .

क्रिकेट के खिलाड़ियों जैसे नेताओं को चुने का मौक़ा जनता के हाथ बार-बार आता है. कुछ समय बाद फिर आएगा .जनता इस खेल का रुख बदलेगी या नहीं अभी से कहना कठिन है,लेकिन आसान बात ये है कि जनता सियासत के इस खेल को मूक दर्शक की तरह देख रही है. दर्शक का खेल में मौन हो जाना सबसे ज्यादा खतरनाक होता है ,भले ही दर्शक स्टेडियम के भीतर का हो या बाहर का. यही फार्मूला सियासत के खेल पर भी लागू होता है .सियासत के खेल में दर्शक मौन है .

इस समय सत्ता पक्ष और विपक्ष की टीमें जनता की रूचि से नहीं बल्कि अपनी ख्वाहिशों के हिसाब से खेल रहीं हैं .खिलाड़ियों में भगदड़ मची है. हर कोई सत्तापक्ष की और से खेलना चाहता है. विपक्ष की और से खेलने में खिलाड़ियों को डर लगता है .बावजूद इसके विपक्ष में भी नए खिलाड़ी मोर्चा सम्हालते नजर आ रहे हैं .वे क्या नया जादू कर या दिखा पाएंगे,इसी पर सभी की नजर है .टीमें चुनी जा रही हैं .कप्तान भी बदले जा रहे हैं.प्रशिक्षक भी इसी दौर से गुजर रहे हैं .शायद इस तमाम कवायद से सियासत के खेल से गुम हुआ रोमांच वापस आ सके .रोमांच के बिना खेल देखने का मजा ही नहीं है .

खेल क्रिकेट का हो या सियासत का खेल भावना से खेला जाये तो ही मजा आता है. खेल में अदावत नहीं होना चाहिए. खेल में विजय का भाव होना जरूरी है .फिलहाल क्रिकेट के विजयी खिलाड़ियों को बधाई और शुभकामनाएं देते हुए अच्छा लग रहा है .सियासत के खेल में तो खेल भावना जब आएगी,तब आएगी .ईश्वर से कामना है कि खेलों में खेल भावना हमेशा बनी रहे .ताकि जन जीवन ऊब का शिकार न बने .याद रखिये कि क्रिकेट या किसी दूसरे खेल का कोई घोषणा पत्र नहीं होता ,उसमें कोई वादा नहीं होता .यदि वादा होता भी है तो सच्चा वादा होता है .सियासत के खेल में सब कुछ ठीक इसके उल्ट होता है .उम्मीद कीजिये कि क्रिकेट की तरह सियासत के खेल में भी सुचिता बनी रहे.