किशोरों में आपराधिक प्रवृत्ति (Criminal Tendency Among Teenagers)हमारे लिए चिंता का विषय

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किशोरों में आपराधिक प्रवृत्ति (Criminal Tendency Among Teenagers)हमारे लिए चिंता का विषय;

कोई भी बच्चा जन्मजात अपराधी नहीं होता है। परिस्थितियां उसे ऐसा बना देती है। किसी भी बालक अथवा किशोर के व्यक्तित्व को रूप देने में सामाजिक, सांस्कृतिक एवं पारिवारिक वातावरण अत्यंत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसी वातावरण व हालातों के चलते कुछ किषोर अपराध से जुड़े जाते हैं। हमें ऐसा समाज तथा कानून व वातावरण बनाना होगा। जहां बच्चे एवं किशोर अपराधों की ओर प्रवृत्त न हो।
हाल ही में देश में छोटे बच्चों के द्वारा घटित कुछ ऐसी हृदयविदारक घटनाएँ देखने को मिल रही है, जिन्हें देखकर हमें इनकी चिंता होने लगती है। देश के कुछ बच्चे बचपन में ही गंभीर अपराधों व दिल दहला देने वाली घटनाओं में लिप्त पाए गए हैं। स्थिति बेहद चिंताजनक है। जिस तरह से किशोर बच्चों के द्वारा आये दिन अपराधिक घटनाओं को घटित किया जा रहा है वह परेशान करती है। हमें इन बच्चों का लालन-पालन संस्कारों और सामाजिक परिवेश की ओर ध्यान आकर्षित करता है।
यदि बच्चे द्वारा कोई गैर कानूनी या समाज विरोधी कार्य हो जाता है तो इसे बाल अपराध कहा जाता है। आठ वर्ष से अधिक तथा सौलह वर्ष से कम आयु के बालक द्वारा किया गया अपराध विधि के विरूद्ध होगा। बाल अपराधियों को विधिक प्रक्रिया के अंतर्गत बाल न्यायालय में पेश करते हैं। भारत में बाल अधिनियम के स्थान पर सन् 1986 में किशोर न्याय अधिनियम लागू किया गया। जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के अधीन 16 वर्ष तक की आयु के लड़कों और अठारह वर्ष तक की आयु की लड़कियों के अपराध करने पर बाल अपराधी माना जाता है। बाल अपराध के लिए आयु सीमा अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग निर्धारित की गई है।
किशोर अपराधी उनको मानते हैं, जिनकी आयु अठारह साल से कम हो। भारत में भारतीय दंड संहिता के तहत एक बच्चे को किसी भी अपराध के जुर्म में सजा तब तक नहीं दी जाती है, जब तक उस बच्चे की उम्र कम से कम सात वर्ष न हुआ हो। अगस्त 2014 में भाजपा सरकार ने लोकसभा में किशोर न्याय बिल को रखा था। नए संशोधन बिल में उम्र की सीमा को घटाकर 18 वर्ष से 16 वर्ष किया गया। आज किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000 इस बात को स्पष्ट करता है कि ऐसे बच्चे जो कानून को अपने हाथ में ले लेते हैं, उनकी देखरेख और रखरखाव की आवश्यकता होती है। इन प्रावधानों के अनुसार गंभीर अपराधों में बाल अपराधियों को जेल की सजा दी जा सकती है। इन्हें उम्रकैद या फांसी की सजा नहीं दी जा सकती है।
अगर किसी आरोपी की आयु 18 वर्ष से कम हो, तो उस आरोपी का मुकदमा अदालत के स्थान पर किशोर न्याय बोर्ड में चलेगा। आरोपी पाए जाने पर किशोर को अधिकतम तीन वर्ष के लिए किशोर सुधार गृह भेजा जाता है। कानून में परिवर्तन के बाद रैगिंग जैसे अपराध करते हुए पाए जाने पर 16 वर्ष से अधिक वाले आरोपी को 3 वर्ष की सजा और दस हजार की राशि तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
किशोर न्याय कानून में नियम है कि बलात्कार और हत्या जैसे गंभीर अपराध करने वाले 16 से 18 साल के अपराधियों पर अधिक आयु वाले अपराधियों की तरह मामला चलाया जाए। यह देखने में आया है कि किशोर न्याय अधिनियम 2000 में कुछ प्रक्रियागत और कार्यान्वयन के तहत खामियां है। वहीं राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो (एनसीआरबी) के तहत उन अपराधों की संख्या में बढ़ोतरी तेजी से हो रहा था, जिनमें सम्मिलित लोगों की आयु 16 से 18 वर्ष के आसपास वर्तमान में 16 से 18 वर्ष के अपराधियों की संख्या चैपन प्रतिषत से बढ़कर 66 प्रतिशत हो गई है।
किशोर अपराधी बिल में किए संशोधन के तहत किसी नाबालिग के खिलाफ कोई आपराधिक मामला लम्बे समय से चल रहा हो और यदि इस मामले का निराकरण 6 माह के भीतर नहीं हो पा रहा है, तो ऐसी परिस्थिति में उस मामले को हमेशा के लिए समाप्त करना होगा। किशोर न्याय अधिनियम में इस तरह का नियम है। इसके बाद उस नाबालिग का कोई भी आपराधिक सबूत रखने की बजाय मिटा दिए जाने का नियम भी है। इस नियम के पीछे उद्देश्य यह है कि नाबालिग की नई जिंदगी में पिछले आपराधिक इतिहास का कोई निशान न रहे। इसके अलावा उसकी पुरानी गलतियों की वजह से उसकी भविष्य में आगे कोई बाधा उपस्थित नहीं होनी चाहिए।
किशोर न्याय अधिनियम के अंतर्गत नाबालिग द्वारा किए गए अपराध की सजा तय की जाती है। राज्य के सभी जनपदों में इसके लिए कोर्ट बनाई गई है। नाबालिग अपराधियों की अधिकतम सजा तीन वर्ष ही दी जा सकती है। इस दौरान नाबालिग अपराधियों के सुधार और देखभाल के लिए उन्हें संप्रेक्षण गृह रखा जाता है। इस अधिनियम में नाबालिग के खिलाफ चल रहे मुकदमे की सुनवाई के लिए समय निर्धारित है। यदि नाबालिग के खिलाफ मामले का निष्पादन छह माह के भीतर नहीं होता है, तो पूरी कार्यवाही को समाप्त कर दिया जाएगा।
आज हमारा यह दायित्व है कि समाज में व्याप्त असमानता को कम करने के साथ ही सभी बच्चों के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करें। हम बच्चों से आज्ञाकारी, बड़ों का आदर सम्मान करने वाला और अपने अंदर अच्छे गुणों की अपेक्षा करते हैं। अधिकतर बच्चें इस पर अमल भी करते हैं। बच्चों के जीवन में 11 से 16 साल की उम्र अत्यंत ही महत्वपूर्ण होती है। इस दौरान उनके व्यक्तित्व का निर्माण व सर्वांगीण विकास की ठोस नींव रखी जाती है। ऐसे में इस किशोर उम्र में विशेष ध्यान दिया जाना अत्यंत ही आवश्यक है। यही वह समय है जब बच्चे के गलत रास्ते पर चलने की आशंका सर्वाधिक होती है। अधिकतर बच्चे अपने परिवार, सामाजिक और सरकार के बनाए नियमों को मानते हैं। लेकिन कुछ बच्चे इससे भटक जाते हैं। इनमें से ही कुछ बच्चे आपराधिक गतिविधियों में लिप्त हो जाते हैं। इन बच्चों को ही बाल अपराधी या किषोर अपराधी के रूप में माना जाता है। आज भारतीय समाज में बाल अपराधों की दर दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इसका बड़ा कारण तेजी से हो रहे नगरीकरण तथा औद्योगिकरण की प्रक्रिया तथा आर्थिक असमानता है।
आजकल देश में बच्चे खतरनाक अपराधों में लिप्त पाये जाने लगे हैं। चोरी, लूट, झपटमारी, लड़ाई-झगड़े, हत्या, सामूहिक दुष्कर्म आदि ऐसे अपराध जिनमें शामिल होना समाज के लिए चिंता का विषय है। यह भी दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य है कि हमारे बाल सुधार गृह इन बच्चों में सुधार करने और नियंत्रित करने के लिये अपर्याप्त है। हमें इसमें तत्काल बदलाव लाने की जरूरती है। बार-बार गंभीर प्रवृत्ति के अपराधों के लिये अब बच्चों को भी वयस्कों की तरह दंडित किये जाने की मांग देश में उठने लगी है।
अब समय आ गया है कि विभिन्न देषों की भांति भारत में भी किशोर अपराधियों को सुधारने के लिए बड़े पैमाने पर ठोस व कारगर प्रयास किए जाएं। लेकिन, आज भी इन उपायों में काफी खामियां हैं। इन्हें तत्काल दूर किया जाना आवश्यक है। यह प्रयास आवश्यक है कि कोई किशोर अपराध के रास्ते न चले। इसके लिए आवश्यक है कि देश में निर्धन बच्चों के लिए बड़े पैमाने पर सरकारी एवं सामाजिक स्तर पर समान अवसर उपलब्ध करवाए जाएं। बच्चों के लिए स्वस्थ मनोरंजन के साधन उपलब्ध कराये जाना आवश्यक है।
इन किशोरों को अपराध के लिए प्रेरित करने वाले संसाधनों पर तुरन्त रोक लगाई जानी चाहिए। साथ ही बिगड़े हुए बच्चे को सुधारने के लिए बाल सलाहकार केन्द्र गठित किए जाने चाहिए। यहां काम करने वाले कर्मचारियों को भी उचित प्रशिक्षण दिया जाना आवश्यक है। किशोर अपराध की रोकथाम के के लिए सभी संगठनों में आपसी सामांजस्य स्थापित किया जाना भी अपरिहार्य है। इन किशोरों और बच्चों को सुधारने के लिए प्रभावी कदम उठाए जाने चाहिए। ऐसा माहौल दिया जाना आवश्यक है जिसमें बच्चे तनाव मुक्त माहौल में रह सके। कम उम्र में बच्चे गलत रास्ता न चुने, यह हम सबकी सामाजिक एवं महती जवाबदारी है।