पीपल, पानी, पथवारी और पर्यावरण से जुड़ा है : दशा माता व्रत!

दशा माता पर्व पर माधुरी सोनी (लोक व्रत कथाकार) की विशेष प्रस्तुति!

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पीपल, पानी, पथवारी और पर्यावरण से जुड़ा है : दशा माता व्रत!

भारत भूमि की चुनर हर रंग में रंगी है जिसमें हर रिवाज के सितारे जड़े हुए हैं, हर परम्पराओं की सुनहरी किनारी लगी है। इस धरती पर रहने वाले अपने तीज-त्यौहार और परम्पराओं से जुड़े हैं और उनमें अपने अस्तित्व को खोजता हुआ पूर्णता प्राप्त करता है और इन्हीं पूर्णता को व्रत तीज-त्यौहार संकल्प सिद्ध कर हर मानव मात्र के मनोरथ का सुफल मिलता है।

 

होलिका दहन के पश्चात जीवन के दुख शोक को दूर करने का विधान हमारी लोक परंपराओं में बख़ूबी देखा जा सकता है। संयोग वियोग का यह क्रम रंगपंचमी, शीतला सप्तमी, दशा माता व्रत की कथा से शुरू होकर चैत्र नव वर्ष उपरांत तक चलता है। हिंदुओं की आस्था लोक संस्कृति की अमिट छाप लिए एक पर्व दशा माता व्रत हर हिन्दू स्त्री अपने अपने तरीकों से घर की सुख सौभाग्य हेतु करती है।

 

घर की हर बिगड़ी दशा को अच्छा करने की यह मान्यता एक अटूट संकल्पित सिद्धदात्री मानी जाती है। स्वच्छता से घर आंगन जगमग हो उठे, हर गृहिणी पूजन थाल में अक्षत, कुमकुम, सोलह शृंगार सामग्री धरे, नैवेद्य संग हल्दी युक्त गूंधे आटे के आभूषणों को बनाती है।

 

इतनी पारंगत आभूषण बनाने में ये महिलाएं जैसे सुनार भी पीछे रह जाए। इन्हीं आभूषण को पीपल वृक्ष पर जल, दही, नैवेद्य, शृंगार सामग्री अर्पण कर दस-दस कनु बिंदिया हल्दी, मेंहदी, कुमकुम, सिंदूर, काजल की वृक्ष को लगाती हैं।इसी भावना से कि अखंड सुहाग उनका बना रहें। गले में हल्दी रंगा कच्चा धागा पहनकर हर स्त्री का विश्वास उसके घर परिवार को अच्छी दशा में रखें। यहीं आस्था इन लोक त्योहारों से धर्म और राष्ट्र को भी मजबूत बनाती है।

स्त्रियों का अनुराग, मनोविज्ञान आस्था से शुरू होकर धर्म को एक गति देता है।

जहां वृक्षों की महत्ता, जल, खेत, अंकुरण, आदि की हितैषी हर स्त्री ही होती है तभी तो दशा मां व्रत में पीपल का महत्व अधिक है, कारण यह भी कि जिस तरह पीपल की जड़ों और वृक्ष का विस्तार हैं उसी अनुरूप कुल और वंश का विस्तार हिंदू स्त्री चाहती ही है।

 

व्रत में पीपल को कच्चा सूत लपेटना उसके फेरे लेना हर स्त्री पर्यावरण संरक्षण के महत्व को जाने धागे के अटूट बंधन की कामना लिए आशीर्वाद सुख सौभाग्य मांगती है।

कनु उंगली से वृक्ष की छाल उखाड़कर स्वर्ण प्राप्ति से आह्लादित हो नन्हीं सी डिबिया में वर्षभर स्वर्ण संचय की कामना से दशा माता व्रत की पूर्णता राजा नल और रानी दमयंती की कथा सुन पूर्ण करती है।

 

कथा श्रवण में जाति भेद को भुलाकर सभी एक समान प्रेम भावना से कथा सुनती है।

कथा श्रवण पश्चात पंडिताइन द्वारा गणपति वार्ता, आड़ी वाड़ी, सूरज नारायण, पथवारी माता का जिक्र अवश्य किया जाता है जिसमें पथ प्रदर्शक और मायके की ससुराल की हरी भरी संपदा हो, गंगाजल सी निर्मलता घर में पावन बनी रहे। बधावा गीतों की सुमंगलता और सिया जी का चाल चलावा हर स्त्री चतुराई से घर कुल की परम्पराओं को निभाती रहें। कितनी परम्पराओं का दायित्व निभाती स्त्रियां प्रेम समर्पण के धागे मात्र से पीपल की छांव सी आशा मन में समाए हर अधूरी आसक्ति की पूर्णता चाहती हैं।

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लोक कथाओं में आदिम समुदाय का वर्चस्व रहा। मतलब भील जाति जनजाति के लोगों को लोक जाति ,आदि मानव सभ्यता से जोड़कर देखा जा सकता है। हमारे मालवा और राजस्थान के अनेक रीति रिवाजों की कथाओं को भले ही हम कितना भी पढ़ लिख लें पर परम्पराओं में रस्मों के बंधन में इन कथाओं के माध्यम से आज डिजिटली युग में भी मानते ही हैं।

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इन्हीं लोक कथाओं की वजह से धर्म भी बंधा हे अन्यथा आज द्रुतगामी समय में धर्म से विमुख इंसान में मानवीय धर्म भी शायद हो। वजह जो भी हो हमारे तीज त्यौहार पर्व रिवाजों का बंधन ही मानव से मानव को जोड़े रखे हैं। हर आस्था विश्वास की धुरी पर टिकी हे मान्यताओं पर फलदायी है तभी हर भारतीय हिन्दू नारी घर परिवार की दशा की संपूर्णता को एक कच्चे सूत के अस्तित्व में सदा के लिए बांध देती है।

कहने को गुण धर्म में ये कच्चा सूत पूरे वर्ष के लिए स्त्रियों की मनोदशा पर फलता हुआ माना जाता। दशा अर्थात हमारी जीवन शैली का हर दिन जिसमें श्री सौभाग्य, संपदा, आरोग्यता, वैभव, कुल वंश के काज मंगलदाई सिद्ध हों। लोक कथाओं में राजा वही जो परम ज्ञानी हो जो प्रजापालक हो परंतु कभी क

IMG 20250323 WA0051भी छोटी सी जाति भी उस राजा के ज्ञान के समक्ष बौनी हो जाती है।

जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारि…

छोटी सुई मात्र की महत्ता भी तलवार से आंकी नहीं जा सकती।