

Daughter-in-Law’s Property Rights : सास-ससुर की संपत्ति में बहू का कितना हक, सुप्रीम कोर्ट ने दिया अहम फैसला!
New Delhi : महिलाओं को संपत्ति में हक देने का मामला हमेशा ही विवाद का विषय रहा है। भले ही कानून में महिलाओं का पिता की संपत्ति में हक और पति और सास ससुर की संपत्ति में हक है, पर इसे समाज मे आसानी से स्वीकारा नहीं जाता। सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे ही एक मामले में महत्वपूर्ण निर्णय दिया। इसमें बताया गया कि एक बहू का अपने सास ससुर की संपत्ति में कितना हक है, यह सभी को पता होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया, जो सास-ससुर की संपत्ति में बहू के अधिकारों को संबोधित करता है। इस फैसले से एक नया रास्ता खुलता है। यह निर्णय कानूनी रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह समाज में रिश्तों की व्याख्या और स्थिति को बदल देता है। यह निर्णय पारंपरिक मानसिकता को चुनौती देता है, जहां बहू को केवल घरेलू कामकाजी माना जाता था।
ससुराल में बहू को संपत्ति में हक
सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के अधिकारों की रक्षा पर जोर दिया और महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। एक मामले में, बहू को सास-ससुर की संपत्ति में क्या अधिकार है, इस पर अदालत ने निर्णय दिया कि बहू को ससुराल में रहने का पूरा अधिकार है और उसे बिना कारण घर से निकाला नहीं जा सकता। कोर्ट ने यह भी कहा कि महिलाओं को घरेलू हिंसा की समस्याएं होती हैं और देश में ऐसे अपराध बढ़ रहे हैं। महिलाओं के अधिकारों और सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए यह निर्णय एक महत्वपूर्ण कदम है।
पिछले फैसले में बदलाव किया
न्यायाधीश अशोक भूषण की अगुवाई में तीन जजों की एक बेंच ने एक मामले में दो जजों के फैसले को पलट दिया। 2005 में न्यायाधीश ने महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने वाले कानून को महत्वपूर्ण मानते हुए कहा कि महिलाओं को पति के माता-पिता की संपत्ति और घर पर पूरा अधिकार है। महिलाओं को अधिकार और सुरक्षा देने के लिए यह निर्णय एक महत्वपूर्ण कदम है।
पैतृक संपत्ति में पत्नी का हक
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पत्नी को ससुराल की साझा संपत्ति में रहने का कानूनी अधिकार है। इसके अलावा, पत्नी को पति द्वारा बनाई गई संपत्ति (पत्नी की संपत्ति) पर अधिकार भी मिलेगा। 2006 में एसआर बत्रा बनाम तरुण बत्रा मामले में तीन जजों की पीठ ने एक ऐतिहासिक निर्णय दिया। इस फैसले से संपत्ति अधिकारों में महिलाओं की सुरक्षा और अधिकारों को मजबूत किया था।
अधिकारों में बदलाव हुआ
हिंदू परिवारों में पहले बेटी को पिता की संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं था। बाद में बदलाव ने उसे पिता की संपत्ति में हिस्सेदार बनाया। अब बेटी को, चाहे वह शादीशुदा हो या नहीं, संपत्ति में अधिकार मिल गया है। उसे परिवार का मालिक भी बनाया जा सकता है। इस बदलाव के बाद, बेटी अपने मायके में अपने बेटे के बराबर का हिस्सा पा सकती है। ससुराल में उसकी संपत्ति पर अधिकार बहुत सीमित हैं। यह परिवर्तन बेटी के अधिकारों को मजबूत करने में एक महत्वपूर्ण कदम है।
महिलाओं को कोर्ट से राहत मिली
2006 में अदालत ने एक प्रमुख मामले में फैसला किया कि पत्नी को अपने पति के माता-पिता की संपत्ति में रहने का अधिकार नहीं है। इस फैसले के अनुसार, उसकी संपत्ति का अधिकार केवल अपने पति की संपत्ति तक सीमित था। हालांकि इस मामले को तीन जजों की पीठ ने फिर से सुनवाई की और पहले से ही निर्णय को पलट दिया। उनका कहना था कि पत्नी को अपने पति की निजी संपत्ति के अलावा परिवार के साझा घर पर भी अधिकार है। इस निर्णय से संपत्ति के अधिकारों में एक नई दिशा मिली।