वसुंधरा राजे सिन्धिया की राजस्थान में वापसी के बारे में निर्णय पन्द्रह अगस्त तक ?

भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने भी माना कि वसुन्धरा राजे प्रदेश में लोकप्रिय नेता, नागपुर संघ मुख्यालय की वसुंधरा राजे से कोई शिक़ायत नहीं

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वसुंधरा राजे सिन्धिया की राजस्थान में वापसी के बारे में निर्णय पन्द्रह अगस्त तक ?

गोपेंद्र नाथ भट्ट की विशेष राजनीतिक रिपोर्ट

नई दिल्ली।भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और राजस्थान की दो बार मुख्यमंत्री रहीं वसुंधरा राजे सिन्धिया की राजस्थान की राजनीति में सक्रिय भागीदारी और प्रदेश की राजनीति में वापसी के बारे में पन्द्रह अगस्त तक कोई ठोस निर्णय होने की उम्मीद है।

पिछलें चौबीस घंटों में इसे लेकर तेजी से कई घटना क्रम हुए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल ही नई दिल्ली में अकबर रोड पर राजस्थान की हवेलीनुमा नव निर्मित गुजरात के अतिथि गृह गर्वी गुजरात भवन में अन्य प्रदेशों की तरह राजस्थान के सभी सांसदों की भी बैठक ली थी । इस बैठक में पार्टी के राष्ट्रीय पदाधिकारी और केन्द्र में राजस्थान के मन्त्रियों के साथ वसुंधरा राजे भी शामिल हुई थी।

बताते है कि इस बैठक में प्रधानमंत्री मोदी ने पार्टी नेताओं को कई सख्त सन्देश दिए और हर हालत में एकजुट होकर मोदी सरकार की उपलब्धियों के आधार पर चुनाव जीतने की हिदायत दी। मोदी ने उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह सहित अन्य कई बड़े नेताओं का उदाहरण देते हुए स्पष्ट रुप से कहा कि यदि कोई नेता ख़ुद को पार्टी से बड़ा मानता है तो वह इस ग़लतफ़हमी में नही रहें। यदि किसी ने पार्टी छोड़ी अथवा पार्टी के विरोध में काम किया तो उसका बुरा हश्र होगा तथा राजनीतिक केरियर भी समाप्त हो जाएगा।मोदी ने कहा कि हर कोई समझ लें कि पार्टी से बड़ा कोई नहीं होता,मैं भी नहीं। अतः पार्टी के निर्णयों को हर हालत में सभी को मानना पड़ेगा।

प्रधानमंत्री मोदी के इस उद्बोधन को सुन राजस्थान में मुख्यमंत्री का चेहरा बने तथाकथित नेता बहुत खुश हुए और मन ही मन इसे राजस्थान में वसुन्धरा युग की समाप्ति मानने लगें लेकिन इस दौरान घटनाक्रम बदला। संघ मुख्यालय नागपुर जिसे वसुंधरा राजे से कोई शिक़ायत नहीं है और भारतीय जनसंघ से भारतीय जनता पार्टी के अभ्युदय में वसुंधरा की माता ग्वालियर की राजमाता विजया राजे सिन्धिया के योगदान को संघ आज भी सम्मान पूर्वक मानता है,के हस्तक्षेप से वसुन्धरा राजे को लेकर भाजपा शीर्ष नेतृत्व से पुनः विचार करने का आग्रह किया गया। आरएसएस के अपने सर्वेक्षण और भाजपा द्वारा करवाये गए सर्वेक्षण में आज भी राजस्थान भाजपा में वसुन्धरा राजे ही पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा है जिसे आगे कर वर्तमान परिस्थितियों में पार्टी अशोक गहलोत का मज़बूती से मुक़ाबला कर विधान सभा का चुनाव जीत सकती है।

इस दौरान यह बात भी निकल कर सामने आई कि वसुन्धरा राजे से किसी को कोई एतराज नही है लेकिन उनके पिछले कार्यकाल के दौरान कई कारणों से आरएसएस की प्रदेश इकाई विशेष कर तत्कालीन संगठन मंत्री प्रकाश चंद्र भाई साहब उनसे काफी नाराज़ है।इन कारणों में आरएसएस और पार्टी के लोगों के काम नही होने और वसुन्धरा को घेरे रखने वाले कुछ नेताओं से उनकी सख़्त आपत्ति बताई गई । प्रकाश चंद्र संघ में अभी भी बहुत प्रभाव शाली है और वर्तमान संगठन मंत्री चन्द्र शेखर शर्मा तथा केन्द्र में इसी पद पर कार्यरत बी सन्तोष भी उनकी राय को तवज्जों देते है। ऐसे में यह मार्ग निकाला गया कि यदि वसुन्धरा राजे प्रकाश चंद्र भाई साहब से मिल आपस की गलतफ़हमियाँ दूर कर लें तों राजस्थान को लेकर कोई अच्छा मार्ग निकल सकता है। फिर क्या था ? वसुन्धरा राजे ऐसा निर्देश मिलते ही दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस वे के सोहना-दौसा रोड से फटाफट जयपुर पहुँची और प्रकाश चंद्र भाई साहब से मिल कर चन्द घण्टों बाद ही पुनः नई दिल्ली लौट आई।

बताया जा रहा है कि वसुंधरा राजे ने गुरुवार को अपनी चार घण्टे के अल्प प्रवास में जयपुर में पूर्व संगठन मंत्री प्रकाश चन्द्र भाई साहब से एक घण्टे मुलाक़ात की तथा उनको बताया कि पिछले कार्यकाल में मेरी सरकार में शिक्षा राज्य मंत्री वासुदेव देवनानी को आपने अपना प्रतिनिधि बनाया था । उनको ही संघ कार्यालय से जुड़ कर सारे काम करवाने थे। यदि तालमेल में कोई कमी रही तो यह उनकी किसी राजनीति का हिस्सा रही होगी, मेरी नहीं।वसुंधरा राजे ने साफ़ कर दिया कि उन्हें इसके लिए कैसे जिम्मेदार और दोषी माना जा सकता है।

प्रकाश भाई साहब से वसुन्धरा राजे की इस अहम मुलाक़ात से दोनों के मध्य मौजूद ग़लतफ़हमियाँ का बहुत हद तक निराकरण हुआ है और लगता है वसुंधरा को कुछ ख़ास निर्देशों के बाद अभय दान भी दे दिया जायेगा। अब वसुंधरा राजे के पुनः दिल्ली लोटने के बाद शीर्ष स्तर पर आगामी 15 अगस्त तक कोई महत्वपूर्ण घोषणा होने की संभावना बताई जा रही है।

इसके पहले राजनीतिक गलियारों में कुछ बातें बहुत तेज़ी से फैलाई गईं कि राजस्थान की भाजपा राजनीति से पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के दिन अब लद गए हैं । प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह ने उनके तेवर ढीले कर दिए हैं। अमित शाह की उदयपुर जनसभा को छोड़ प्रधानमंत्री की सभा में उन्हें बोलने का अवसर भी नही मिल रहा और पीएम भी उनका नाम तक सम्बोधित नही करते। वे इन सभाओं में प्रधानमंत्री को तस्वीर भेंट करने की भूमिका तक ही सीमित हो गई है।आरएसएस कार्यकर्ता उनसे नाराज़ है। राजस्थान के भाजपा नेताओं ने मिलकर उनके पर कतर दिए हैं और वह अब बर्फ़ मे चली गई है आदि -आदि कई बातें फैल रही थीं जिसका उनके विरोधी और कांग्रेसी मज़ा ले रहें थे। कांग्रेस वाले भाजपा की इस स्थिति को अपनी जीत की गारण्टी मानने लगें हैं लेकिन वर्तमान में आगे बढ़ रहें राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में लगता है कि भाजपा में यदि सब कुछ ठीक होता गया तों अब यह सारी बातें शायद निर्मूल साबित हो जायेंगी और वसुंधरा राजे फिर से राजस्थान की चुनाव रणनीति का अभिन्न हिस्सा बन हूंकार भरेंगी।

हालाँकि भाजपा की रणनीति के अनुसार इस बार प्रदेश में किसी को भी पहलें से मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नही किया जायेगा और राजस्थान विधान सभा का इस वर्ष के अंत में होने वाला चुनाव प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम और चेहरे पर ही लड़ा जायेगा।इस बार के चुनाव की सबसे बड़ी बात यह है कि राजस्थान में पार्टी को चुनाव जीताने की जिम्मेदारी भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने इस बार इतिहास में पहली बार किसी प्रधानमंत्री को दी है।राजनीतिक पण्डितों को मानना है कि इस अभियान में वसुन्धरा राजे का सक्रिय साथ मिलने से यह पार्टी के लिए सोने में सुहागा साबित होगा।

विश्वस्त सूत्रों के अनुसार भाजपा राजस्थान को तीन भागों में बाँट कर चुनाव लड़ेगी।इसमें हाड़ौती शेखावटी और जयपुर-अजमेर आदि इलाक़ों की जिम्मेदारी वसुन्धरा राजे तथा मारवाड़ की जिम्मेदारी राज्य विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता राजेन्द्र राठौड़ और मेवाड़-वागड़ अंचल की जिम्मेदारी प्रदेश अध्यक्ष सी पी जोशी को सुपुर्द कर चुनाव के रण में आगे बढ़ा जायेगा।

इधर कांग्रेस ने भी राहुल गाँधी की मानगढ़ यात्रा के बाद अपनी सक्रियता बढ़ा दी है । मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी अपने पैरों की चोट से धीरे-धीरे उबर रहें है। प्रदेश में अरविंद केजरीवाल की आप,मायावती की बीएसपी और हनुमान बेनीवाल की आर एल पी और अन्य दलों की राजनीतिक सक्रियता भी बढ़ रही है। इस प्रकार आने वाले चार महीनों में राजस्थान की राजनीति का पारा निरन्तर बढ़ना तय है। देखना होगा कि रंग रंगीला राजस्थान में आने वाले वक्त में किस पार्टी और नेताओं के रंग गहरे और किसके फीके पड़ेंगे।