Deepotsav – 2023: 500 वर्ष बाद निर्मित हो रहे विशेष संयोग,
शास्त्रीय और पौराणिक महत्व , पूजा विधि जानिये -ज्योतिर्विद पंडित राघवेंद्र रविश राय गौड़ से
( प्रस्तुति – डॉ घनश्याम बटवाल मंदसौर द्वारा )
देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों की दुदुंभी के चलते वर्ष का सबसे बड़ा पंच दिवसीय दीपोत्सव ज्योति पर्व की गहमागहमी भी पूर्ण यौवन पर है । हर वर्ग हर धर्म और हर समाज द्वारा दीपावली उत्साह और उमंग से मनाए जाने वाला त्यौहार है ।
पांच दिन तक चलने वाला दीपोत्सव ‘पंचपर्व’ कहलाता है। इन पांच दिनों में भिन्न-भिन्न देवताओं का पूजन होता है।
दीपावली का त्योहार इस वर्ष 12 नवंबर को मनाया जाएगा. ऐसे में मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए यह विशेष दिन होगा. ऐसे में इस बार 500 सालों के बाद दीपावली पर विशेष संयोग का निर्माण हो रहा है ।
इस बार 500 साल बाद दीपावली पर न्याय के देवता शनिदेव शश राज योग का निर्माण कर रहे हैं. इसके साथ ही मंगल और सूर्य की युति से भी राजयोग का निर्माण होने जा रहा है. इस दिन शनिदेव स्वराशि कुंभ में होकर शश राजयोग का भी निर्माण कर रहे हैं. साथ ही इसी दिन आयुष्मान योग का भी निर्माण हो रहा है.
इसके साथ पंचपर्व के दोरान हर्ष, सरल, शंख, लक्ष्मी, शश, साध्य, मित्र और गजकेसरी जैसे अष्ट महायोग भी बन रहे हैं. जो अत्यधिक शुभ है ।
दीपों के उत्सव की पौराणिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महिमा सर्वविदित है। दीपावली ऐसा त्योहार है, जो उत्साह और उल्लास के साथ विभिन्न प्रांतों में अनेक कृत्यों के साथ मनाया जाता है। वैसे यह पांच दिनों तक अनतरत चलने वाला उत्सव-पर्व है, जो धन त्रयोदशी से आरम्भ होकर भाई दूज तक चलता है। दीपावली इनके केंद्र में है। पांच दिन तक चलने वाला दीपोत्सव ‘पंचपर्व’ कहलाता है। इन पांच दिनों में भिन्न-भिन्न देवताओं का पूजन होता है, जो धनाध्यक्ष कुबेर के पूजन से शुरू होकर न्याय के प्रणेता भगवान चित्रगुप्त के लिए दीपदान तक चलता है।
कुबेर एवं धन्वंतरि की धन तेरसपूजा(10 नवंबर )
धनरेतस या धनत्रयोदशी इस वर्ष धनतेरस शुक्रवार, 10 नवंबर 2023 को है. इस वर्ष धनतेरस पर 50 साल बाद अद्भुत योग बनने जा रहा है। धनतेरस के दिन यम पंचक शिववास और प्रदोष व्रत का भी है संयोग पड़ रहा है, यह योग 50 साल बाद बन रहा है।
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी धन तेरस के नाम से जानी जाती है। पौराणिक विद्वानों के अनुसार धसतेरस में ‘धन’ शब्द का संबंध संपत्ति के अधिपति कुबेर के साथ आरोग्य के प्रदाता धन्वन्तरि से भी है। इसीलिए इस दिन चिकित्सक लोग अमृतधारी भगवान धन्वन्तरि का पूजन करते हैं। प्राय: इस दिन से दीप जलाने की शुरुआत होती है, और पांच दिनों तक जलाए जाते हैं।
लोकाचार में प्रसिद्ध है कि इस दिन खरीदे गए सोने या चांदी के धातुमय पात्र अक्षय सुख देते हैं। इस नाते लोग नए बर्तन या दूसरे नए सामान धनतेरस के दिन ही खरीदते हैं। एक परंपरा यह भी है कि इस दिन नव-निधियों के नाम का उच्चारण किया जाए। नौ निधियों के नाम हैं – महापद्म, पद्म, शंख, मकर, कच्छप, मुकुंद, कुंद, नील और खर्व।
🔸धनतेरस मुहूर्त
त्रयोदशी तिथि का प्रारंभ 10 नवंबर को दोपहर 12 बजकर 35 मिनट पर होगा और अगले दिन 11 नवंबर को दोपहर में 1 बजकर 57 मिनट पर समाप्त होगी। धनतेरस का त्योहार प्रदोष काल में मनाया जाता है, इसलिए यह शु्क्रवार को 10 नवंबर को होगा।
नरक चतुर्दशी (11/12 नवंबर )
दीपावली से ठीक एक दिन पहले आने वाली चतुर्दशी तिथि को भगवान विष्णु ने माता अदिति के आभूषण चुराकर ले जाने वाले निशाचर नरकासुर का वध किया था। परम्परा में इसे शारीरिक सज्जा और अलंकार का दिन भी माना गया है, इसलिए इसे रूप चतुर्दशी भी कहा जाता है।
चतुर्दशी तिथि का आरंभ 11 नवंबर को दोपहर में 1 बजकर 57 मिनट से होगा और समापन अगले दिन 12 नवंबर को दोपहर में 2 बजकर 44 मिनट पर होगा। इसलिए उदया तिथि के अनुसार नरक चतुर्दशी 12 नवंबर को ही मनाएंगे। इसी दिन दीपावली भी मनाई जाएगी। जो लोग इस दिन काली पूजा करते हैं और यमदीप जलाते हैं वे 11 नवंबर को नरक चतुर्दशी मना सकते हैं।
ज्योति पर्व है दीपोत्सव (12 नवंबर)
कार्तिक अमावस्या सनातन प्रकाश पर्व के रूप में स्थापित है। यह दिन अंधेरे की अनादि सत्ता को अंत में बदल देता है, जब छोटे-छोटे ज्योति-कलश दीप जगमगाने लगते हैं। यह दिन लक्ष्मी पूजा के लिए प्रशस्त है। किसानों की बरसाती फसल दीवाली से पहले पककर तैयार हो जाती है। इस नाते यह आनंद-वितरण करने वाला उत्सव है। इस दिन सायं (जिसे प्रदोषकाल कहा जाता है) माता लक्ष्मी की आराधना की जाती है।
गणपति, कुबेर और भगवान विष्णु की पूजा भी माता लक्ष्मी के साथ होती है। सुख, सौभाग्य और सम्पत्ति की प्रदात्री भगवती सिंधुजा की पूजा नए धान और उपलब्ध पत्र-पुष्पों से होती है। स्पष्ट है कि माता लक्ष्मी के रूप में यह प्रकृति पूजन है जो शताब्दियों से चला आ रहा है। अथर्ववेद में लिखा है कि जल, अन्न और सारे सुख देने वाली पृथ्वी माता को ही दीपावली के दिन भगवती लक्ष्मी के रूप में पूजा जाता है। इसी कारण लक्ष्मी पूजन की मुख्य सामग्री गन्ना और अन्य ऐसे पदार्थ हैं, जो सर्वकाल और सार्वभौम सुलभ हैं।
🔸तिथि निर्णय एवं मुहूर्त :-
दीपावली को सबसे बड़े त्यौहार के रूप में मान्यता प्राप्त है. धार्मिक आधार पर भगवान श्री रामचंद्र रावण पर विजय प्राप्त करने के बाद इसी दिन अयोध्या वापस लौटे थे और उनके आने की खुशी में नगर वासियों ने दीपक जलाकर उनका स्वागत किया था, तब से यह प्रथा चली आ रही है.
दीपावली के दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर अपने परिवार के साथ पूर्वजों व कुल देवी देवताओं का पूजन कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए. यह दिन अमावस्या होने के कारण पूर्वजों के निमित्त श्राद्ध कार्य करने के लिए भी सर्वोत्तम दिन माना गया है. दीपावली का दिन माता महालक्ष्मी की पूजा के लिए विशेष रूप से फलदायक माना गया है.
इस दिन श्री महागणेश , माता महालक्ष्मी , माता महासरस्वती और माता महाकाली की उपासना की जाती है.
ज्योतिर्विद पंडित राघवेंद्र रवीश राय गौड़ से जानते हैं, दिवाली के दिन श्री लक्ष्मी पूजा के शुभमुहूर्त .
यहां पर आपको प्रदोष काल का मुहूर्त, स्थिर लग्न का मुहूर्त, निशीथ काल का मुहूर्त और चौघड़िया मुहूर्त बताए गए हैं. लेकिन आप स्थिर लग्न और प्रदोष काल के मुहूर्त को सर्वाधिक उपयुक्त मानकर उसी दौरान श्री महालक्ष्मी की पूजा करें. परंपरागत रूप से निशीथ काल में पूजा करने वाले निशीथ काल के दौरान पूजा करें. जो लोग चौघड़िया मुहूर्त को देखकर पूजा करते हैं, वे अपनी परंपरा के अनुसार इसी मुहूर्त में भी पूजा कर सकते हैं. वृषभ लग्न जोकि एक स्थिर लग्न है, उसमें प्रदोष काल के दौरान श्री लक्ष्मी पूजन करना चाहिए.
🔸दिवाली – लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त
कार्तिक अमावस्या तिथि का आरंभ 12 नवंबर को 2 बजकर 44 मिनट पर होगा और समापन 13 नवंबर को दोपहर 2 बजकर 56 मिनट पर होगा। दीपावली की पूजा भी धनतेरस की तरह प्रदोष काल में करना शुभ माना जाता है। इसलिए दीपावली 12 नवंबर को मनाई जाएगी।
अमावस्या तिथि प्रारंभ: 12 नवंबर 2023 को दोपहर 14:45 बजे से
अमावस्या तिथि समाप्त:13 नवंबर 2023 को दोपहर 14:56 बजे तक.
प्रदोष काल का मुहूर्त
प्रदोष काल 12 नवंबर 2023 को सायं काल 17:28 से 20:07 बजे तक रहेगा, जिसमें वृषभ काल (स्थिर लग्न) 17:39 बजे से 19:33 बजे तक रहेगा.
लक्ष्मी पूजा का प्रदोष काल का मुहूर्त का समय सायं काल 17:39 बजे से सायं काल 19:33 बजे तक रहेगा. यह अवधि लगभग 1 घंटा 54 मिनट की होगी.
निशीथ काल का शुभ पूजा मुहूर्त
श्री महालक्ष्मी पूजा के लिए यह निशीथ काल मुहूर्त भी अच्छा माना जाता है जोकि रात्रि 11:39 बजे से रात्रि 12:30 बजे तक रहेगा. यह अवधि लगभग 52 मिनट की होगी.
🔸दीपावली पर शुभ चौघड़िया पूजा मुहूर्त
अपराह्न मुहूर्त (शुभ का चौघड़िया): 12 नवंबर को दोपहर 1:26 से दोपहर 02:46 बजे तक.
सायाह्न मुहूर्त (शुभ, अमृत, चर का चौघड़िया): 12 नवंबर को सायं काल 05:29 बजे से रात्रि 10:25 बजे तक.
रात्रि मुहूर्त (लाभ का चौघड़िया): 12 नवंबर की मध्य रात्रि के उपरांत 01:44 बजे से 2:23 बजे तक (13 नवंबर को 1:44 बजे से 3:23 बजे तक)
उषाकाल मुहूर्त (शुभ का चौघड़िया): 13 नवंबर को 5:02 बजे से 6:41 बजे तक.
गोवर्धन पूजा और अन्नकूट
गोवर्धन पूजा के दिन 14 नवंबर 2023 को सुबह 06:43 से सुबह 08:52 तक पूजा का शुभ मुहूर्त है. पूजा के लिए साधक को 2 घंटे 9 मिनट का समय मिलेगा.
अन्नकूट पूजा गोवर्धन पर्वत और भगवान श्रीकृष्ण से समर्पित है।
दीपावली का दूसरा दिन राजा बली पर भगवान विष्णु की विजय का उत्सव है। ऋग्वेद में उल्लेख है कि भगवान विष्णु ने वामन रूप धरकर तीन पदों में सारी सृष्टि को नाप लिया था। अत: तब से आज तक यह विष्णु विजय दिवस कहलाता है।
यशोदानंदन श्रीकृष्ण ने इसी दिन देवेन्द्र के मानमर्दन हेतु गोवर्धन को धारण किया था। अत: स्थान-स्थान पर नव धान्य के बने हुए पर्वत शिखरों का भोग अन्नकूट प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। वामनपुराण में इसे वीर-प्रतिपदा भी कहा गया है। इस दिन गो माता एवं बैलों की विशिष्ट पूजा की जाती है। यह दिन राजा बली पर भगवान विष्णु की विजय का उत्सव है।
भाई-बहन के प्रेम का भाई दूज
कार्तिक शुक्ल द्वितीया को एक सुन्दर उत्सव होता है, जिसका नाम है यमद्वितीया या भाई दूज। भविष्य पुराण में आया है कि इस दिन यमुना ने अपने भाई यम को अपने घर पर भोजन करने के लिए आमंत्रित किया था। अत: आज भी इस दिन समझदार लोग अपने घर मध्याह्न का भोजन नहीं करते। लोगों को इस दिन अपनी बहन के घर में ही स्नेहवश भोजन करना चाहिए, जिससे कल्याण और समृद्धि प्राप्त होती है।
इसी दिन भगवान श्री चित्रगुप्त की पूजा करनी चाहिए और इनके नाम से अर्घ्य और दीपदान भी करना चाहिए। लेकिन अगर दोनों दिन दोपहर में द्वितीया तिथि हो तब पहले दिन ही द्वितीया तिथि में यम द्वितीया भाई दूज का पर्व मनाना चाहिए।
भाई दूज इस वर्ष 14-15 नवंबर 2023 दो दिन मनाई जाएगी. पंचांग के अनुसार कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि 14 नवंबर 2023 को दोपहर 02.36 से शुरू होगी जो 15 नवंबर 2023 को दोपहर 01.47 पर समाप्त होगी.
14 नवंबर 2023 – पंचांग के अनुसार भाई दूज की पूजा का अपराह्न समय 14 नवंबर 2023 को दोपहर 01.10 से दोपहर 03.19 तक है. इस दिन भाई दूज पर शोभन योग भी बन रहा है. जो शुभ फलदायी माना गया है.
दीपावली पर इस बार विशेष रूप से करे ये सात अचूक उपाय और आर्थिक समस्या से निजात पाएं
इस बार दिवाली पर आप करें परंपरागत ऐसे उपाय जिन्हें करने से आपको कर्ज से मुक्ति मिल सकती है और धन संबंधी समस्या का समाधन हो सकता है।
दीपावली को माता लक्ष्मी को कमल का फूल चढ़ाया जाता है और घर में नई झाड़ू लाई जाती है साथ ही एक झाड़ू मंदिर में भी दान की जाती है।…
तो आजमाएं ये भगवती लक्ष्मी प्रिय 07 उपाय।
🔸1. चांदी का ठोस हाथी : विष्णु तथा लक्ष्मी को हाथी प्रिय रहा है इसीलिए घर में ठोस चांदी या सोने का हाथी रखना चाहिए। ठोस चांदी के हाथी के घर में रखे होने से शांति रहती है और यह राहू के किसी भी प्रकार के बुरे प्रभाव को होने से रोकता है।
🔸2. कौड़ियां : पीली कौड़ी को देवी लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। कुछ सफेद कौड़ियों को केसर या हल्दी के घोल में भिगोकर उसे लाल कपड़े में बांधकर घर में स्थित तिजोरी में रखें। ये कौड़ियां धनलक्ष्मी को आकर्षित करती हैं।
🔸3. चांदी की गढ़वी : चांदी का एक छोटा-सा घड़ा, जिसमें 10-12 तांबे, चांदी, पीतल या कांसे के सिक्के रख सकते हैं, उसे गढ़वी कहते हैं। इसे घर की तिजोरी या किसी सुरक्षित स्थान पर रखने से धन और समृद्धि बढ़ती है। दीपावली पूजन में इसकी भी पूजा होती है।
🔸4. मंगल कलश : एक कांस्य या ताम्र कलश में जल भरकर उसमें कुछ आम के पत्ते डालकर उसके मुख पर नारियल रखा होता है। कलश पर रोली, स्वस्तिक का चिन्ह बनाकर उसके गले पर मौली बांधी जाती है।
🔸5.सात मुखी दीपक : माता लक्ष्मी की कृपा हमेशा घर पर बनी रहे, इसके लिए हमें उनके समक्ष सात मुख वाला दीपक जलाना चाहिए। दीपक में घी होना चाहिए। दीपावली पर यह कार्य अवश्य कीजिए। यह भी कहा जाता है कि लक्ष्मी माता की मूर्ति के सामने नौ बाती वाली घी का दीपक जलाने से जल्दी धन लाभ मिलता है और आर्थिक मामले में उन्नति होती है।
🔸6.रंगोली : वर्तमान में रंगोली का प्रचलन सबसे अधिक है, लेकिन पुरानी परंपरानुसार आज भी आंतरिक इलाकों में मांडने बनाए जाते हैं। द्वार, देहरी, चौक और माता लक्ष्मी के पूजा स्थल के पास रंगोली अवश्य बनाएं।
🔸7.दीपक : दीपावली की रात को घर में और घर के आसपास खास जगहों पर दीपक जलाकर रखे जाते हैं। कहते हैं कि दीपावली की रात को देवालय में गाय के दूध का शुद्ध घी का दीपक जलाना चाहिए। इससे तुरंत ही कर्ज से छुटकारा मिलता है और आर्थिक तंगी दूर हो जाती है। दीपावली की रात को दूसरा दिया लक्ष्मी पूजा के दौरान जलाएं। तीसरा दिया तुलसी के पास, चौथा दिया दरवाजे के बाहर, पांचवां दिया पीपल के पेड़ के नीचे, छठा दिया पास के किसी मंदिर में, सातवां कचरा रखने वाले स्थान पर, आठवां बाथरूम में, नौवां मुंडेर पर, दसवां दिवारों पर, ग्यारहां खिड़की, बारहवां छत पर और तेरहावं किसी चौराहे पर। दीपावली पर कुल देवी या देवता, यम और पितरों के लिए भी दीपक जलाए जाते हैं।
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सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयंकरि।
सर्वदुःखहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥