सी बी आई जांच में देरी , दबाव और राजनीति के असर

551

रेलवे में लालू राज का भर्ती घोटाला हो या झारखण्ड के हेमंत सोरेन सत्ता काल का खनन लूट कांड , टी वी न्यूज़ चैनल पर पार्टियों के नेता और कुछ पत्रकार भी इन दिनों यह सवाल उठाते हैं कि भाजपा की मोदी सरकार क्या सी बी आई की कार्रवाई के लिए समय का चुनाव अपनी सुविधा और विरोधियों पर  दबाव के लिए नहीं कर रही है ? इसे बचाव और सहानुभूति  पाने का मुद्दा कहा जा सकता है | लेकिन सी बी आई के कामकाज को चार पांच दशकों से जानने कवर करने वाले हम जैसे पत्रकारों को सी बी आई में रहे निदेशक स्वयं बताते  और बाद में बाकायदा लिखते रहे हैं कि सत्ता में बैठे या उनके गठबंधन के करीबी नेता भ्रष्टाचार और अन्य गंभीर अपराधों की जांच में देरी करवाते रहे हैं | सबसे मुखर और पारदर्शी चर्चित निदेशक जोगिन्दर सिंह ने लालू यादव के चारा कांड की जांच में नरसिंह राव , इन्दर कुमार गुजराल और एच डी देवेगौड़ा के प्रधान मंत्री काल में जांच प्रकिया में ढिलाई , देरी आदि के लिए हर संभव दबाव डालने की बातें पहले कभी मुझे बताई और बाद में उसे सार्वजनिक रुप से भी स्वीकारा | सत्ता का आनंद लेते रहे नेताओं की जांच के दौरान सबूत जुटाने वाले सी बी आई के निदेशक जोगिंदर सिंहजी को कांग्रेस गठबंधन की सरकार ने सेवा  निवृत्ति  से चार महीने पहले तबादला कर दिया यानी हटा दिया  और लालू को  वर्षों बाद अदालत से जेल हुई |सेवानिवृत्त होने के बाद भी जोगिन्दर सिंह और उनके कुछ सहयोगी अधिकारी हमें बताते थे कि मनमोहन सिंह के सत्ता काल में भी गठबंधन की मज़बूरी के नाम पर कानूनी कार्रवाई धीमे हुई और लालू 2009 तक केंद्र में मंत्री रहकर नए घोटाले भी कर गए | टू जी और खदान वितरण घोटालों की जांच पड़ताल में सत्तारूढ़ गठबंधन की मजबूरियां और रुकावटें रही हैं |

indian railway 2130167 835x547 m

  इस दृष्टि से रेल में नौकरी के भर्ती घोटाले में 2021 से शुरु जांच पड़ताल अब तक जारी रहने पर कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए | यह तथ्य ध्यान में रखना चाहिए कि बोफोर्स खरीदी में कमीशन कांड हो या हवाला कांड या कोयला खदान वितरण कांड या टू जी स्पेक्ट्रम घोटाला नेताओं , कंपनियों , दलालों , रिश्तेदारों या देश विदेश के करीबी लोगों से प्रमाण जुटाने में महीनों सालों लग सकते हैं | कुछ मामले तो किसी नेता के सत्ता में रहने पर संबंधित  मंत्री द्वारा क़ानूनी कार्रवाई ऊँची अदालत में न पहुंचने देने के भी हमारी जानकारी में हैं |  असल में 1972 – 76 में सी बी आई के निदेशक देवेंद्र सेन हुआ करते थे , तब उसकी वार्षिक रिपोर्ट में भी भ्रष्टाचार के मामले कुछ सौ रुपए   से कुछ हजार रुपए से अधिक के नहीं होते थे | हम जैसे रिपोर्टर को जन संपर्क अधिकारी भीष्म पाल कभी कभी कोई जानकारी देते और कला संस्कृति पर अधिक बात होती | तब 1974 में मेरे आग्रह पर निदेशक सेन साहब इंटरव्यू देने को तैयार हुए और फिर सी बी आई के कामकाज और उनसे बातचीत एक प्रमुख साप्ताहिक पत्रिका धर्मयुग ( टाइम्स प्रकाशन ) में कवर स्टोरी की तरह विस्तार से छपी | तब निदेशक देवेंद्र सेन ने मुझसे कहा था – ” अनुभव यह हुआ है कि पहले तो कोई गंभीर मामला सी बी आई को  सौपने की मांग की जातीं है । लेकिन मांग करने वालों की अपेक्षा के अनुसार जाँच का निष्कर्ष सामने आने पर वे इस पर अविश्वास करने लगते हैं । अब बताइये हम मांग करने वालों की इच्छानुसार रिपोर्ट देने लगे तो सी बी आई पर कौन विश्वास करेगा । ऐसे मामले तक आते हैं कि आठ साल पहले इतने पेड़ लगाने का दवा था , अब जांच करिये कि लगे या नहीं ? यह कैसे पता लगेगा ?  दूसरी तरफ काम का आधार अमेरिका के ऍफ़ बी आई कहा जाता है , लेकिन उसकी तरह न तो बजट है , न ही स्टाफ और सबसे बड़ी समस्या सीमित अधिकार । “

 कुछ महीनों बाद झारखण्ड की खदान से यूरेनियम की तस्करी की जांच की एक महत्वपूर्ण जानकारी हमें मिल सकी | फिर जनता राज में किस्सा कुर्सी का फिल्म के नष्ट होने का मामला सी बी आई के पास आया | लेकिन फिर कांग्रेस और इंदिरा गाँधी ही सत्ता में आ गई | देश की प्रगति और राजनीतिक खींचातानी , भ्रष्टाचार , नेताओं के अपराधियों से संपर्क , चुनाव में बाहुबली और धन बल का प्रभाव बढ़ने से सी बी आई के पास करोड़ों से अरबों रुपयों के घोटालों , हत्याओं आदि के मामले बढ़ते गए | जबकि सी बी आई के पास संसाधनों , अधिकारियों की कमी बराबर बनी रही है | पिछले कुछ वर्षों में तो कोयला खदान वितरण घोटाले में सी बी आई के पूर्व निदेशक तक का नाम विवादों में आ गया |अदालत में इस समय करीब 182 ऐसे मामले बीस साल से लटके हुए हैं । करीब 1597 मामले दस साल से लंबित हैं

  समय के साथ नेता , दलाल और अधिकारी ही नहीं रिश्वत देने वाले भी अधिकाधिक चालाक हो गए हैं | इसलिए रेलवे के भर्ती घोटाले के सबूत जुटाने में सी बी आई को जाने कितने तार जोड़ने पड़ रहे हैं | जांच और प्रमाण अदालत में पेश होने पर ही सुनवाई और क़ानूनी कार्रवाई , सजा या दोषमुक्त का फैसला होगा | लेकिन 2021 में दर्ज प्रकरण से यह गंभीर तथ्य तो सामने आया कि  लालू यादव के परिजनों को तत्काल कोई धनराशि या जमीन नहीं दी गई | दो साधारण कर्मचारियों ने रेल में भर्ती के लिए पहले अपने या किसी करीबी के नाम जमीन ली | फिर कुछ साल बाद लाखों लाखों रुपयों की जमीन लालू परिवार के सदस्यों पत्नी राबड़ी देवी ,बेटी मीसा , हेमा इत्यादि को दान में अथवा बहुत कम दाम में दे दिए | लालू के करीबी भोला यादव की गिरफ्तारी और अब सुनील सिंह तथा अन्य लोगों के घरों पर छापेमारी के बाद डिजिटल या अन्य दस्तावेज और किसी कबूलनामे के साथ अदालत में कार्रवाई आगे बढ़ सकेगी  | इसलिए सी बी आई से जुड़े पूर्व अधिकारियों का यह तर्क सही है कि लालू परिवार सत्ता में रहकर ऐसी जांच में देरी करवाने में माहिर रहे हैं | तभी तो उन्हें लगता है कि भाजपा सरकार और प्रधान मंत्री भ्रष्टाचार से ‘ निर्णायक लड़ाई ‘ की घोषणा कर जांच में तेजी के साथ अदालत से सजा दिलवाने की जल्दी में हैं | बचाव का एक फार्मूला यह भी रहता है कि प्रतिपक्ष में बैठे नेता यह प्रचार और धारणा जोर शोर से बनाएं कि वे शीघ्र पुनः सत्ता में आ सकते हैं | मतलब अधिकारी संभलकर रहें | आख़िरकार सी बी आई में अधिकांश अधिकारी राज्यों से प्रति नियुक्ति पर आते हैं |कार्मिक मंत्री जितेन्द्र सिंह ने  संसद में  स्वीकार किया था कि सी बी आई के पास 5944 स्वीकृत पद हैं और 1329 खाली पड़े हैं ।सरकार  ने राज्यों और केंद्रीय पुलिस बालों से नाम मांगें  जिन्हें लोक सेवा आयोग की स्वीकृति के बाद रखा जा सकता है । दूसरी तरफ अधिकांश राज्यों में एक ही पार्टी की सरकारें नहीं हैं । नतीजा यह है कि आठ गैर भाजपा शासित सरकारों ने सी बी आई को अपने क्षेत्र में आने पर दस तरह के अंकुश लगा दिए हैं , क्योकि उनके ही मंत्री या परिवार , अधिकारी आर्थिक अपराधों में फंसे होने के मामले दर्ज हो रहे हैं ।

लालू यादव 41 महीने बाद आ रहे हैं पटना, राबड़ी आवास पर हलचल, RJD  कार्यकर्ताओं में जोश - Lalu Prasad Yadav returning Patna from delhi  preparations Rabri residence ntc - AajTak

  बहरहाल , यह केवल लालू परिवार की स्थिति नहीं है | राहुल गाँधी , चिदंबरम और उनके बेटे कार्तिक , हेमंत सोरेन परिवार , उद्धव ठाकरे , संजय राउत , शरद पवार परिवार , नवाब मलिक , अमित देशमुख , सत्येंद्र जैन जैसे नेताओं से जुड़े गंभीर मामलों की जांच  सी बी आई , प्रवर्तन निदेशालय जारी रख सकता है | जांच और अदालती प्रक्रिया से न्याय यानी सजा अथवा बेगुनाही के फैसले के लिए बहुत इन्तजार करना होगा | इसलिए कई नेताओं और कानूनविदों की यह सिफारिश  स्वीकारी जानी चाहिए कि राजनीतिक नेताओं से जुड़े भ्रष्टाचार या अन्य किस्म के अपराधों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतों का गठन हो और समयबद्ध नियमित सुनवाई के बाद फैसला किया जाए |  दूसरी तरफ अमेरिका की फेडरल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टिगेशन ( ऍफ़ बी आई ) की तरह सी बी आई के  सम्पूर्ण ढांचे , नियमों आदि को अधिक प्रभावशाली बनाया जाना चाहिए | केवल राज्यों से पुलिस अधिकारी लाना और 1960 – 70 के दिल्ली पुलिस के अधिकार वाले घीसे पिटे कानून को बदलने की जरुरत है | निरपराध साबित करने वाले नेताओं को रहत मिलेगी और दण्डित नेताओं को संसद या विधान सभा के चुनाव लड़ने तथा सत्ता में आने के प्रयासों पर अंकुश लगेगा |

( लेखक आई टी वी नेटवर्क इंडिया न्यूज़ और दैनिक  आज समाज के सम्पादकीय निदेशक हैं )

Author profile
ALOK MEHTA
आलोक मेहता

आलोक मेहता एक भारतीय पत्रकार, टीवी प्रसारक और लेखक हैं। 2009 में, उन्हें भारत सरकार से पद्म श्री का नागरिक सम्मान मिला। मेहताजी के काम ने हमेशा सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।

7  सितम्बर 1952  को मध्यप्रदेश के उज्जैन में जन्में आलोक मेहता का पत्रकारिता में सक्रिय रहने का यह पांचवां दशक है। नई दूनिया, हिंदुस्तान समाचार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान में राजनितिक संवाददाता के रूप में कार्य करने के बाद  वौइस् ऑफ़ जर्मनी, कोलोन में रहे। भारत लौटकर  नवभारत टाइम्स, , दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान, आउटलुक साप्ताहिक व नै दुनिया में संपादक रहे ।

भारत सरकार के राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य, एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व महासचिव, रेडियो तथा टीवी चैनलों पर नियमित कार्यक्रमों का प्रसारण किया। लगभग 40 देशों की यात्रायें, अनेक प्रधानमंत्रियों, राष्ट्राध्यक्षों व नेताओं से भेंटवार्ताएं की ।

प्रमुख पुस्तकों में"Naman Narmada- Obeisance to Narmada [2], Social Reforms In India , कलम के सेनापति [3], "पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा" (2000), [4] Indian Journalism Keeping it clean [5], सफर सुहाना दुनिया का [6], चिड़िया फिर नहीं चहकी (कहानी संग्रह), Bird did not Sing Yet Again (छोटी कहानियों का संग्रह), भारत के राष्ट्रपति (राजेंद्र प्रसाद से प्रतिभा पाटिल तक), नामी चेहरे यादगार मुलाकातें ( Interviews of Prominent personalities), तब और अब, [7] स्मृतियाँ ही स्मृतियाँ (TRAVELOGUES OF INDIA AND EUROPE), [8]चरित्र और चेहरे, आस्था का आँगन, सिंहासन का न्याय, आधुनिक भारत : परम्परा और भविष्य इनकी बहुचर्चित पुस्तकें हैं | उनके पुरस्कारों में पदम श्री, विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, पत्रकारिता भूषण पुरस्कार, हल्दीघाटी सम्मान,  राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार आदि शामिल हैं ।