डॉ अंबेडकर जन्मस्थली को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने में विलंब नुकसानदायक

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डॉ अंबेडकर जन्मस्थली को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने में विलंब नुकसानदायक

दिनेश सोलंकी की रिपोर्ट 

संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की महू स्थित जन्मस्थली भारत में डॉ अंबेडकर के पांच प्रमुख तीर्थ स्थलों में शामिल है। जन्मस्थली के महत्व को लेकर एक लंबे समय से मांग की जा रही है कि इसे राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया जाए और यह मांग इसलिए भी जरूरी हो गई है ताकि अंबेडकर जन्मस्थली को लेकर उसकी स्मारक समितियां में हर साल सामने आने वाला विवाद खत्म हो और जन्मस्थली के नाम पर मांगे जा रहे हैं ऑनलाइन चंदे की साजिश का भी खात्मा हो सके।

सर्व विदित है सन 2008 से डॉ आंबेडकर जयंती समारोह में अनुयायियों के खान पान का खर्च महू में मध्य प्रदेश शासन के द्वारा वहन किया जाता रहा है। जयंती समारोह में हर साल 14 अप्रैल को महू के अलावा इंदौर, देवास सहित प्रदेश के अन्य हिस्सों और बाहरी राज्यों से हजारों की संख्या में उनके अनुयायी आकर शामिल होते रहे हैं। पहली बार 1991 में जब जन्मस्थली पर स्मारक का स्तूप बनाए जाने हेतु घोषणा हुई थी तब पहली बार 1,00,000 लोग डॉ अंबेडकर की 100वीं जयंती पर महू आए थे। इसके बाद 125 वीं जयंती पर प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी पधारे थे। जयंती पर हर साल यही उम्मीद रहती है कि यह आंकड़ा लाख से ज्यादा तक पहुंचे, मगर अब संख्या गैर सरकारी आंकड़ों और मीडिया के माध्यम से 15- 20 हजार तक ही रह पाती है।

हालांकि जयंती समारोह में अनुयायियों के खान-पान की व्यवस्था मध्य प्रदेश शासन की तरफ से की जाती है, मगर देखा जाता है कि विविध ठेकों के माध्यम से कागजों पर हर साल ये आंकड़े लाख या इससे कहीं अधिक दर्शाए जाते हैं। पिछले दो-तीन सालों से देखा जा रहा है अनुयायियों के महू आने में काफी कमी आई है। उसका कारण यह है कि बाहर से आने वाले अनुयायी जो कि ज्यादातर ट्रेन से आया जाया करते थे उनके लिए खंडवा – महू रुट बंद होने से उनकी संख्या में घटोत्री हुई है। अलावा डॉ. अंबेडकर की जन्मस्थली के दर्शन के लिए साल भर लोग आना-जाना करते हैं, इसलिए 14 अप्रैल को खासकर मध्यम और निम्न वर्ग के अनुयाई ही इसमें आते हैं जो भी रेल – बस साधनों के अभाव में उनकी संख्या लगातार घटती जा रही है। समिति विवाद से उपजे संगठन फाड़ भी इसका मुख्य कारण है जिससे अनुयायी निराश होने लगे है।

अंबेडकर जयंती को लेकर यह भी देखा जा रहा है की शासन यहां पर स्मारक समिति का गठन करवाता है, ताकि साल भर जयंती स्थल सुरक्षित रहे और यहां पर आने वाले चंदे का हिसाब किताब रखा जा सके। चंदा यहां पर 1991 के बाद से स्मारक के बनते बनते वहां रखी दान पेटियों के माध्यम से इकट्ठा होता रहा है। लेकिन पिछले 3 साल से मौजूदा समिति ने अपने क्यूआर कोड के माध्यम से ऑनलाइन चंदा मांगना शुरू किया है जो असीमित है। यह हैरत की बात है कि समिति द्वारा ऑनलाइन चंदे का कोई हिसाब सार्वजनिक नहीं किया जाता है, इसलिए इसमें शंका गहराती है की अंबेडकर जी के नाम पर विकास की आड़ को लेकर मांगा गया चंदा लाखों – करोड़ों रुपए में हो सकता है और इस चंदे पर प्रशासन का अंकुश भी नहीं है।

यह चंदा पहले अंबेडकर जन्मस्थली के विकास के लिए मांगा जाता था बाद में विविध कारण बताए जाने लगे थे, जबकि जन्मस्थली 22500 स्क्वेयर फीट की निर्धारित भूमि है जिसमें भी अधिकांश हिस्से पर स्तूप बना हुआ है। इसलिए विकास की यहां कोई संभावना नहीं है और न ही 3 सालों से ऐसा कोई आयोजन भी हुआ जिसमें बड़ा खर्च ज्यादा दिखाई देता हो। कुल मिलाकर ऑनलाइन चंदा एक षड्यंत्र के रूप में यहां पर चल रहा है, जिसे लेकर दूसरी तथाकथित समिति और समाज के लोगों ने भी इसकी जांच के लिए आवेदन दिए हैं।

समिति में इस समय बहुत विवाद चल रहे हैं और पिछले साल इंदौर कलेक्टर ने इन विवादों के चलते आश्वासन दिया था कि जयंती समारोह के बाद इसका निपटारा होगा। लेकिन वस्तु स्थिति आज भी जस की तस बनी हुई है। अफसोस होता है की समितियों के आपसी झगड़ों के कारण यहां पर खूनी रंजिश भी हो चुकाहै और पुलिस में एफआईआर दर्ज भी हुई है। ऐसी स्थिति में पूज्यनीय अंबेडकर स्मारक, इन समितियां के नाटकों के कारण विवादास्पद बनता जा रहा है, जिस पर भी सरकार को ध्यान देने की जरूरत है।

राष्ट्रीय स्मारक घोषित होने पर डॉक्टर अंबेडकर की जन्मस्थली को ऐतिहासिक महत्व मिल सकता है और फिर इसका रख रखाव पूरी तरह से शासन के अधीनस्थ भी आ सकता है जिससे चंदा वसूली भी पारदर्शी हो सकेगी।