Delhi Assembly Election Exit Poll : दिल्ली में 26 साल बाद BJP की वापसी का इशारा, एक्जिट पोल के नतीजों से पार्टी आश्वस्त नहीं!

बीजेपी के लौटने के कारण सामने, पर 26 सीटों पर AAP का पलड़ा भारी, मध्यम वर्ग और पूर्वांचली पक्ष में!

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Delhi Assembly Election Exit Poll : दिल्ली में 26 साल बाद BJP की वापसी का इशारा, एक्जिट पोल के नतीजों से पार्टी आश्वस्त नहीं!

New Delhi : बुधवार को दिल्ली विधानसभा के लिए वोटिंग खत्म होने के बाद जो एग्जिट पोल के नतीजे सामने आए, उनमें 10 में से 8 में बीजेपी को बहुमत बताया गया। लेकिन, अभी ‘आप’ को पूरी तरह खारिज नहीं किया जा रहा। क्योंकि, एग्जिट पोल के नतीजे पिछले कुछ चुनाव के दौरान शंका के घेरे में रहे हैं। बीजेपी के रणनीतिकार भी एग्जिट पोल को लेकर बहुत ज्यादा उत्साहित नहीं है। इसके पीछे कुछ ऐसे कारण बताए जा रहे हैं जो ‘आप’ को फायदा दे सकते हैं।

दिल्ली विधानसभा की 70 में 13,766 मतदान केंद्रों पर वोटिंग होने के बाद 699 उम्मीदवारों की चुनावी किस्मत का फैसला ईवीएम में दर्ज हो गया। लगातार दो बार से दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी (आप) की नजर तीसरे कार्यकाल पर है। सर्वे के नतीजे बताते हैं कि 26 साल बाद भाजपा के दिल्ली की सत्ता में लौटने का अनुमान है। लेकिन, ये दावा भी किया जा रहा कि ‘आप’ हैट्रिक मार दे, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

इस बार मुख्य मुकाबला बीजेपी और ‘आप’ में ही है। कांग्रेस का पलड़ा बेहद कमजोर नजर आ रहा। बीजेपी ने 1993 में आखिरी बार दिल्ली में सरकार बनाई थी, उसके बाद 1998 से बीजेपी सत्ता से बाहर है। बीजेपी के रणनीतिकार और तटस्थ विश्लेषक मानते हैं कि यदि दिल्ली के 40 लाख मध्यमवर्गीय मतदाताओं और 46 लाख पूर्वांचली वोटरों ने अच्छा मतदान किया होगा, तो बीजेपी का 26 साल का वनवास समाप्त हो सकता है।

एग्जिट पोल के स्पष्ट नतीजों के बाद भी दिल्ली में फिर सत्ता पाने को लेकर बीजेपी के नेता पूरी तरह से आश्वस्त नहीं है। क्योंकि, झुग्गी झोपड़ी, महिलाओं और दलित मतदाताओं का ‘आप’ की तरफ झुकाव नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। मुस्लिम मतदाता भी अंतिम समय में कांग्रेस को छोड़कर’आप’ के पक्ष में दिखाई दिए थे। दिल्ली में पांच ऐसी मुस्लिम बहुल सीटें हैं, जहां कांग्रेस ने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया। दिल्ली विधानसभा क्षेत्र में 13% मुस्लिम मतदाता हैं, जो 20 सीटों पर बड़ी भूमिका निभाते हैं।

दिल्ली की राजनीति को गहराई से समझने वालों का मानना है कि आम आदमी पार्टी की गिनती 26 सीटों के बाद शुरू होगी। 70 में से ये 26 सीटें ऐसी है, जहां ‘आप’ की जड़ें काफी गहरी है। जबकि, दिल्ली में भाजपा के पास ऐसी 19 सीट है। कांग्रेस इस बार अपना खाता खोल सकती है, ऐसी उम्मीद लगाई जा रही है।

 

केंद्रीय बजट और 8 वें वेतनमान से बीजेपी को लाभ

केंद्रीय बजट के कारण चुनाव में इस बार बीजेपी फायदे की स्थिति में है। मध्यम वर्ग के 40 लाख मतदाता हैं, इनमें 16 लाख केंद्रीय कर्मचारी शामिल हैं। इन मतदाताओं को आयकर छूट की सीमा बढ़ाकर तथा 8वें वेतन आयोग की घोषणा कर के बीजेपी ने अपनी तरफ करने की कोशिश की है। मध्यम वर्ग के मतदाताओं पर भाजपा का सारा जोर है। बीजेपी और संघ परिवार के कार्यकर्ता सुबह से ही मतदाताओं को घरों से निकालने में लगे।

मध्यम वर्ग पिछले दो चुनाव से आम आदमी पार्टी के पक्ष में मतदान कर रहा था। इस बार बीजेपी को इसी वर्ग से सबसे ज्यादा उम्मीद है। मध्य वर्ग के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि यह वर्ग वोटिंग कम करता है। चुनावी विश्लेषकों का कहना है कि दिल्ली का मध्य वर्ग आम तौर पर 30% से 35% मतदान करता है। लेकिन, लगता है इस बार बीजेपी ने आम आदमी पार्टी के पूर्वांचली वोट बैंक में भी सेंध लगाई है। दिल्ली में हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तराखंड के भी मतदाता काफी संख्या में रहते हैं।

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कड़े मुकाबले में ‘आप’ के तीनों बड़े नेता

अभी तक का अनुमान है कि ‘आप’ के तीनों बड़े नेता अपनी सीटों पर फंसे हुए हैं। अरविंद केजरीवाल नई दिल्ली सीट पर, आतिश सिंह मार्लेना कालकाजी और मनीष सिसोदिया जंगपुरा विधानसभा सीट पर भाजपा से कड़े संघर्ष की स्थिति में हैं। नई दिल्ली सीट पर अरविंद केजरीवाल का मुकाबला भाजपा के प्रवेश वर्मा से है। इसी तरह आतिशी मार्लेना को पूर्व सांसद रमेश बिधूड़ी चुनौती दे रहे हैं। कांग्रेस ने नई दिल्ली में संदीप दीक्षित और कालकाजी सीट पर अलका लांबा को उतारा है। जबकि, मनीष सिसोदिया के समक्ष भाजपा के तरविंदर सिंह मारवाह और कांग्रेस के उम्मीदवार फरहाद सूरी की चुनौती है। मनीष सिसोदिया ने इस बार अपनी सीट बदली है।

‘आप’ के रणनीतिकार पूरी तरह से आश्वस्त हैं कि अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और आतिशी सिंह तीनों चुनाव जीत जाएंगे। इस चुनाव में मुस्लिम मतदाता खास तौर पर असमंजस की स्थिति में हैं। इसका कारण अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के हिंदुत्व का एजेंडा है। अरविंद केजरीवाल हनुमान भक्ति का प्रदर्शन बार-बार करते हैं। पुजारियों को वेतन देने की घोषणा करते हैं। जबकि, इमामों का वेतन रोक देते हैं। लेकिन, स्थिति असमंजस में हैं। क्योंकि, पिछले कई राज्यों के चुनाव के नतीजे एग्जिट पोल के अनुमानों के विपरीत रहे हैं।