Delhi Assembly Elections : एक पूर्व सीएम के सामने दो पूर्व सीएम के बेटे मुकाबले में!

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Delhi Assembly Elections : एक पूर्व सीएम के सामने दो पूर्व सीएम के बेटे मुकाबले में!

वेदविलास उनियाल की खास रिपोर्ट

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दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) कांग्रेस और बीजेपी में त्रिकोणीय संघर्ष होने वाला है। लेकिन, दस सीटें ऐसी है जहां नेताओं के परिजन चुनाव लड़ रहे हैं। इनमें तीन सीटों पर तो पूर्व मुख्यमंत्रियों के बेटे ताल ठोककर चुनाव मैदान में उतरे हैं। इनमें एक सीट नई दिल्ली की ऐसी हैं जहां एक पूर्व मुख्यमंत्री को उऩकी ही सीट पर घेरने के लिए दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के बेटों को दो अलग-अलग दल ने चुनाव मैदान में उतारा है। एक सीट पर विधायक के मकोका के मामले में जेल होने से उनकी पत्नी को टिकट दिया गया। दिल्ली चुनाव में टिकटों के लिए काफी जोर आजमाइश हुई। अलग-अलग चुनाव लड़ने की स्थिति में ‘आप’ और कांग्रेस ने सभी सीटों पर प्रत्याशियों को खड़ा किया। उधर, बीजेपी में भी सीटों को लेकर जमकर संघर्ष हुआ है। आखिरी क्षणों तक टिकटों को लेकर खींचतान होती रही है। बीजेपी ने 68 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं साथ ही एक-एक सीट लोजपा और जेडीयू को दी है।

सियासी दल बेशक परिवारवाद के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं। खासकर बीजेपी के शीर्ष नेताओं ने अभी अपने मंचों पर इस मुद्दे को काफी तूल दिया है। बीजेपी ने दांव चलकर अपने एक समय के कद्दावर नेता रहे दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के बेटों को चुनाव मैदान में लडाया है। पार्टी ने पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश वर्मा को नई दिल्ली से और पूर्व मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना के बेटे हरीश खुराना को मोती नगर से प्रत्याशी बनाया है। 1996 से 1998 तक दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे मदनलाल खुराना बीजेपी के दिग्गज नेताओं में माने जाते थे। इसी तरह 1996 से 1998 तक सीएम रहे साहिब सिंह वर्मा का भी दिल्ली की सियासत में अपना प्रभाव रहा। इस बार चुनाव में बीजेपी ने अपने इन दिग्गज नेताओं के बेटों को टिकट देकर आप के सामने चुनौती खड़ी कर दी।

नई दिल्ली में तो बीजेपी ने दो बार के सांसद रहे प्रवेश वर्मा को पूर्व मुख्यमंत्री और आप नेता अरविंद केजरीवाल के सामने चुनौती खड़ी कर दी। इस तरह कहा जा सकता है कि नई दिल्ली की सीट पर एक नहीं दो दो मास्टर स्ट्रोक चले हैं। गौरतलब है कि इसी सीट पर कांग्रेस ने भी बहुत बड़ा दांव चला है। दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस की दिग्गज नेता रहीं शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित को मैदान में उतारकर मामले को त्रिकोणीय बना दिया। शीला दीक्षित 1998 से 2013 तक दिल्ली की तीन बार की मुख्यमंत्री रही हैं। दिल्ली में उनके नाम के प्रभाव को समझा जा सकता है। भारत के चुनावी संघर्षों में ऐसा दृश्य कभी नजर नहीं आया कि एक पूर्व सीएम के सामने दो पूर्व सीएम के बेटे चुनाव लड़ते हुए नजर आएं। इस मायने में यह सीट बहुत जटिल और रोमांचक हो गई है। यहां सियासी दिग्गज और राजनीतिक घरानों का घमासान है।

अपने जनाधार को फिर से पाने की कोशिश में जुटी कांग्रेस ने भी नए चेहरों की तलाश में वक्त नहीं गंवाया। इसके बजाय कांग्रेस में तपे तपाए नेताओं को टिकट थमाए गए। कांग्रेस ने अपने वरिष्ठ नेताओं पर भी भरोसा जताया और अपने पूर्व दिग्गज नेताओं के परिजनों को भी चुनावी मैदान में उतारा । कांग्रेस और आप के बीच रिश्तों की बर्फ पिघली नहीं।
कांग्रेस में इस बात को लेकर मंथन होता रहा कि आप से समझौता किया जाए या नहीं। लेकिन, जब तय हुआ कि कांग्रेस अपने स्तर पर सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी को पार्टी ने अपनी सूची से सबको चौंकाया। पार्टी ने इसके लिए नई दिल्ली सहित सभी सीटों पर आक्रामक व्यूह रचना तैयार की है। पार्टी ने इसी तरह तेजतर्रार नेता जयप्रकाश अग्रवाल के बेटे मुदित अग्रवाल को चांदनी चौक की सीट पर प्रत्याशी बनाया है। पूर्व सांसद जयप्रकाश अग्रवाल दिल्ली में कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में माने जाते हैं। जयप्रकाश अग्रवाल लोकसभा का चुनाव लड़े थे। हालांकि कांटे के संघर्ष में वह चुनाव हार गए थे। इस बार उनके बेटे मुदित अग्रवाल का मुकाबला लगातार विजयरथ लेकर चलने वाले विधायक शोएब इकबाल के बेटे आले इकबाल से है।

‘आप’ पार्टी ने पिछले दो चुनाव शानदार तरीके से जीते। आप का उदय होने के बाद इस पार्टी ने लगातार सफलता प्राप्त की। 2013 में आप दूसरे नंबर की पार्टी बनी थी। कांग्रेस के समर्थन से आप की बनी सरकार केवल 49 दिन चली थी। 2015 में पार्टी ने 54 .5% मत हासिल करके 67 सीट हासिल की थी। 2020 में आप का ग्राफ थोड़ा गिरा, लेकिन 62 सीटों के साथ सरकार आप की ही बनी। इसके बाद यमुना में काफी पानी बह गया है।

आज के बदले हालात में कई तरह की विपरीत स्थितियों में चुनाव मैदान में है। दिल्ली की मुख्यमंत्री अब अरविंद केजरीवाल नहीं आतिशी है। आप के खिलाफ कथित शराब घोटाला, शीशमहल और तमाम दूसरे प्रकरणों के चलते छवि पर असर पड़ा उससे लग रहा था कि पार्टी कुछ नए चेहरों के साथ चुनाव मैदान में उतर सकती है।

पार्टी ने माहौल को समझते हुए पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, दिल्ली विधानसभा की उपाध्यक्ष राखी बिड़लान की सीटें तो बदली, लेकिन 70 सीटों में पार्टी ने छह स्थानों पर विधायक पूर्व सांसद पूर्व विधायक के परिजनों को ही टिकट थमाए। दिल्ली के चुनाव में जो कशमकश मची है और जिस तरह हर सीट जटिल बनी हुई है, उससे आप के शीर्ष नेतृत्व ने किसी तरह की नाराजगी नहीं उभरने दी। पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल खुद नई दिल्ली से चुनाव लड़ रहे हैं। लेकिन, अब अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और सीएम आतिशी के अलावा स्टार प्रचारक में अरविंद केजरीवाल की पत्नी सुनीता केजरीवाल का नाम दिखाई देता है।

जिस तरह आप के बड़े दिग्गज नेता अपनी सीटों पर उलझे हुए हैं उसके बाद सुनीता केजरीवाल और सांसद संजय सिंह जैसे नेता अलग अलग सीटों में प्रचार के लिए निकल पा रहे हैं।

पहले इस बात की सुगबुगाहट थी अरविंद केजरीवाल दो सीट से चुनाव लड़ सकते हैं। साथ ही उनकी पत्नी भी चुनाव में दांव आजमा सकती है। लेकिन, आखिरकार आप पार्टी ने यह जोखिम उठाना ठीक नहीं समझा। त्रिकोणीय लड़ाई में फंसी आप पार्टी अपने कार्यकर्ताओं और दूसरे नेताओं को किसी भी तरह नाराज नहीं करना चाहती थी। लेकिन, इसके बजाए आप पार्टी ने दिल्ली के बड़े नेताओं के बच्चों या पत्नी को टिकट सौंपा है।

‘आप’ ने विधायक एसके बग्गा की जगह उनके बेटे विकास बग्गा, विधायक प्रहलाद साहनी की जगह उनके बेटे पूरणदीप साहनी, पूर्व विधायक मतीन अहमद की जगह जुबेर अहमद, पूर्व सांसद महाबल मिश्रा की जगह विनय कुमार मिश्रा और विधायक नरेश बलियान की जगह उनकी पत्नी पूजा बलियान को उम्मीदवार बनाया। स्पष्ट संकेत है कि आप पार्टी ने चुनाव में प्रत्याशियों को बदलने की स्थिति में उनके परिजनों को ही तरजीह दी।