संसद की आचार संहिता की धज्जियां उड़ाकर लोकतंत्र को चोंट

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मेरा सौभाग्य रहा है कि मुझे सन 1972 से संसद की रिपोर्टिंग करने का अवसर मिलता रहा है | पहले समाचार एजेंसी का संवाददाता होने से अधिक समय गैलेरी में बैठना होता था | नियम कानून का ध्यान में रखकर सुनना और लिखना पड़ता था | अख़बारों

में रहने पर सदन के अंदर और बाहर अथवा संसदीय लाइब्रेरी में रहकर अधिकाधिक जानकारियां प्राप्त करनी होती थी | वर्षों तक अख़बारों में संसद की कार्यवाही – प्रश्नोत्तर और महत्वपूर्ण मुद्दों पर पहले पृष्ठ की खबरों से अधिक अंदर पूरा एक पृष्ठ की सामग्री जाती थी | महत्वपूर्ण भाषण के अधिकांश अंश छापे जाते थे | इसलिए इन दिनों राज्य सभा में हुई हिंसा , सदस्यों द्वारा महिला सुरक्षाकर्मी के साथ मारपीट , सभापति के आसन की ओर कागज फेंकते हमले के प्रयास पर भी सदन से एक सत्र के लिए निलंबन का कड़ा विरोध देखकर दुःख और आश्चर्य हो रहा है |

पराकाष्ठा यह है कि सदस्य अपने अपराध के लिए सभापति से ‘ खेद – क्षमा तक मांगने को तैयार नहीं हुए | इस विरोध अभियान का नेतृत्व भी देश की सबसे पुरानी कांग्रेस पार्टी कर रही है | पार्टी के शीर्ष नेता राहुल गाँधी ने तो यह एलान किया कि  किस बात की माफ़ी माँगी जाए ? राज्य सभा में उनके नेता मल्लिकार्जुन खड़गे का तर्क रहा कि नियमानुसार यदि सदन के पिछले सत्र में हुए अपराध की सजा इस सत्र में नहीं दी जा सकती है |

इस तर्क के आधार पर यदि किसी सत्र के अंतिम दिन कोई सदस्य विरोधी नेता का गला घोंट दे या गिराकर पटक दे अथवा अनर्गल गंभीर आरोप लगाने पर किसी  सदस्य के विचलित होने से हार्ट अटेक हो जाए , तब भी उसे अगले सत्र में दण्डित नहीं किया जा सकता है | वैसे भी सदन के अंदर लगे आरोपों अथवा किसी व्यवहार पर सामान्यतः अदालत में कार्रवाई का प्रावधान नहीं है | सांसदों के पास विशेषाधिकार का कवच है | हां लोक सभा के अध्यक्ष और राज्य सभा के सभापति और सदन बाहरी व्यक्ति – पत्रकार को विशेषाधिकार का उपयोग कर दण्डित कर सकते हैं | सुप्रीम कोर्ट के जज  तक को सदन में बुलाकर बर्खास्त कर दण्डित कर सकते हैं |

 इस घटना पर नियमों का हवाला देने वाले कांग्रेसी नेता संसद द्वारा ही लागू आचार संहिता की पुस्तक में प्रकाशित  नियमों की अनदेखी कर रहे हैं | इसमें एक नियम स्पष्ट लिखा है – ” सदस्यों को सदन में नारे लगाने , कोई बिल्ला लगाने , झंडे पोस्टर लहराने , हथियार और बन्दूक  की गोली रखने की मनाही है | सदस्यों को विरोध के लिए सदन के बीच में नहीं आना चाहिए | ” इसी तरह संसदीय बहस में हिस्सा लेने के लिए बने नियमानुसार ” सदस्य किसी ऐसे तथ्य  अथवा विषय का उल्लेख नहीं करेगा , जिस पर न्यायिक निर्णय लंबित हो | अभिद्रोहात्मक , राजद्रोहात्मक या मानहारिकारक शब्द नहीं कहेगा | अपने भाषण के अधिकार का प्रयोग सदन के कार्य में बाधा डालने के प्रयोजन के लिए नहीं करेगा | सदन में दस्तावेज नहीं फाड़ेगा | “

 सारे नियम कानूनों की धज्जियां उड़ाकर अब तो राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार , सभापति पर अनुचित अशोभनीय टिप्पणी , सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश और अब राज्य सभा के मनोनीत सम्माननीय सदस्य पर लोक सभा में बेहद आपत्तिजनक आरोपों की चर्चा , प्रधान मंत्री के विरुद्ध भी अशोभनीय भाषा का प्रयोग , बजट सहित कई गंभीर विषयों पर निर्धारित समयावधि में अनुपस्थिति अथवा प्रतिपक्ष के प्रमुख नेता द्वारा विषय पर नहीं बोलने का दम्भपूर्ण दावा दुखद ही नहीं संसदीय व्यवस्था का सम्मान करने वालों को भी शर्मसार करता है |

विडम्बना यह है कि पुरानी परम्परा और संसदीय नियमावली के अनुसार अध्यक्ष / सभापति सदनों की कार्यवाही से उन बातों को निकाल देने की आदेशात्मक घोषणा कर देते हैं , लेकिन लोक सभा या राज्य सभा के सीधे प्रसारण के समय न केवल वे आरोप , अशोभनीय दृश्य देश दुनिया में पहुंच जाते हैं और कोई कहीं भी उसे रिकार्ड करके रख लेता है | फिर सोशल मीडिया पर करोड़ों लोगों तक पहुंचा देते हैं  हाल की घटनाओं से लगता है कि राहुल गाँधी और उनके समर्थक भाजपा की मोदी  सरकार को हटाने के लिए ब्रिटिश नेता चर्चिल के फॉर्मूले को अपना रहे हैं |

यों चर्चिल वर्षों तक प्रधान मंत्री रहा , लेकिन बुरे दिन आने और लेबर सरकार आने से दुखी होकर कहा था ‘ विपक्ष का धर्म है कि वह सत्तारूढ़ दल को सत्ता से हटाए ,चाहे उसके लिए कुछ भी करना पड़े | ‘ इसी सिद्धांत को मानकर राहुल गाँधी और उनकी मण्डली  नागरिकता खत्म होने देश भर के , किसानों की सारी जमीन और फसल केवल दो चार  उद्योगपतियों के पास चली जाने , अनाज विदेशी कंपनियों द्वारा विदेश ले जाने से भारत में लोगों के भूखे मरने , चीन द्वारा भारत में घुस जाने और प्रधान मंत्री द्वारा घुटने टेकने जैसे अनर्गल आरोप संसद के अंदर और बाहर लगा रहे हैं | ‘ निरंतर भ्रम और अफवाहों की वजह से क्या उनकी और भारत की छवि ख़राब नहीं हो रही है ?

 सामान्यतः भारत में आजादी से पहले और बाद भी राजनीति को सेवा , ईमानदारी , राष्ट्र हित के लिए माना जाता था | ऐसा नहीं कि इस समय सत्तारूढ़  नेताओं से कोई गलती नहीं हो रही अथवा उनकी गड़बड़ियों , कमियों की तीखी आलोचना नहीं होनी चाहिए | लोकतंत्र में तो पार्टी में भी अलग अलग राय होती है | संघ भाजपा के नेताओं में भी मत भिन्नता संभव है | लेकिन सुरक्षा और समाज के कल्याण से जुड़े विषयों पर पूरी तरह गलत जानकारियां फैलाना कितना उचित कहा जाएगा ?

 यह वही संसद है , जिसमें मेरे जैसे पत्रकारों और सामाजिक राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने पिछले पचास वर्षों में अटल बिहारी वाजपेयी , ज्योतिर्मय बसु , मधु लिमये , पीलू मोदी , जगजीवन राम , चौधरी चरण सिंह ,   , चंद्र शेखर , जार्ज फर्नांडीज , , हेमवती नंदन बहुगुणा ,  सुषमा स्वराज ,नरसिंह राव , प्रणव मुखर्जी जैसे दिग्गज सांसदों को संसद में पक्ष विपक्ष में रहकर आदर्श लोकतांत्रिक परम्परा को मजबूत किया |

विरोध में नैतिक मूल्यों और संस्कारों की रक्षा की | संसद में अब भी कई बुजुर्ग और युवा कहे जाने वाले सांसद पूरी तैयारी से बोलते और सकारात्मक भूमिका निभा रहे हैं , लेकिन हंगामे और केवल टकराव के कारण कई दिन या तो काम ही नहीं होता अथवा केवल विवाद चर्चा में रहते हैं | दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहकर गौरवान्वित होने वाले सभी दलों के नेताओं को एक विशेष बैठक बुलाकर आत्म समीक्षा कर संसद के नए भवन से पहले नई आचार संहिता बनानी चाहिए |

संसद में न्याय पालिका , मीडिया , सेना , वैज्ञानिकों तक की विश्वसनीयता पर दाग लगाने से पूरा भारत कलंकित हो रहा है | देश विदेश में नए सपने देखने वाले लाखों युवा भारतीयों को भ्रम के साथ निराशा होने लगती है | वास्तव में संसद ही भारतीय लोकतंत्र का दर्पण है | इसे टूटने से बचाना सबका कर्तव्य है |

( लेखक आई टी वी नेटवर्क – इंडिया न्यूज़ और आज समाज दैनिक के सम्पादकीय निदेशक हैं )

Author profile
ALOK MEHTA
आलोक मेहता

आलोक मेहता एक भारतीय पत्रकार, टीवी प्रसारक और लेखक हैं। 2009 में, उन्हें भारत सरकार से पद्म श्री का नागरिक सम्मान मिला। मेहताजी के काम ने हमेशा सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।

7  सितम्बर 1952  को मध्यप्रदेश के उज्जैन में जन्में आलोक मेहता का पत्रकारिता में सक्रिय रहने का यह पांचवां दशक है। नई दूनिया, हिंदुस्तान समाचार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान में राजनितिक संवाददाता के रूप में कार्य करने के बाद  वौइस् ऑफ़ जर्मनी, कोलोन में रहे। भारत लौटकर  नवभारत टाइम्स, , दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान, आउटलुक साप्ताहिक व नै दुनिया में संपादक रहे ।

भारत सरकार के राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य, एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व महासचिव, रेडियो तथा टीवी चैनलों पर नियमित कार्यक्रमों का प्रसारण किया। लगभग 40 देशों की यात्रायें, अनेक प्रधानमंत्रियों, राष्ट्राध्यक्षों व नेताओं से भेंटवार्ताएं की ।

प्रमुख पुस्तकों में"Naman Narmada- Obeisance to Narmada [2], Social Reforms In India , कलम के सेनापति [3], "पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा" (2000), [4] Indian Journalism Keeping it clean [5], सफर सुहाना दुनिया का [6], चिड़िया फिर नहीं चहकी (कहानी संग्रह), Bird did not Sing Yet Again (छोटी कहानियों का संग्रह), भारत के राष्ट्रपति (राजेंद्र प्रसाद से प्रतिभा पाटिल तक), नामी चेहरे यादगार मुलाकातें ( Interviews of Prominent personalities), तब और अब, [7] स्मृतियाँ ही स्मृतियाँ (TRAVELOGUES OF INDIA AND EUROPE), [8]चरित्र और चेहरे, आस्था का आँगन, सिंहासन का न्याय, आधुनिक भारत : परम्परा और भविष्य इनकी बहुचर्चित पुस्तकें हैं | उनके पुरस्कारों में पदम श्री, विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, पत्रकारिता भूषण पुरस्कार, हल्दीघाटी सम्मान,  राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार आदि शामिल हैं ।