डिजिटल क्रांति के बावजूद टी वी अभी जिन्दा शक्तिशाली 

112

डिजिटल क्रांति के बावजूद टी वी अभी जिन्दा शक्तिशाली 

आलोक मेहता

दिल्ली मुंबई में कई प्रभावशाली लोगों को यह ग़लतफ़हमी है कि अब कौन टी वी देखता है या कौन अखबार या किताब पढ़ता है ? खासकर बड़े सरकारी अफसर और कुछ जमीन की सचाई से कटे हुए कॉर्पोरेट प्रबंधकों को मैंने भी यह कहते सुना देखा है | मैं उनसे असहमत रहता हूँ | मेरे जमीनी अनुभव के बजाय कोई सरकार या अधिकृत कॉर्पोरेट मार्केटिंग के तथ्य को ही विश्वास करना चाहे तो अधिकृत आंकड़े इस बात के प्रमाण है कि 2025 की आवाज है – टीवी अभी जिंदा है — 230 मिलियन घरों और 900 मिलियन दर्शक इससे जुड़े हुए हैं | तभी तो विश्व के शीर्ष नेताओं में से एक रुस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भारत यात्रा के एक दिन पहले भारत के टी वी न्यूज़ चैनल आज तक और इण्डिया टुडे को इंटरव्यू दिया | वैसे 2002 में भी उन्होंने भारत के टी वी चैनल एन डी टी वी ( विष्णु सोम ) और 2007 में भारतीय दूरदर्शन के लिए ( राघव बहल को ) इंटरव्यू दिए थे | प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का रेडियो पर मन की बात कार्यक्रम भारत के अधिकांश न्यूज़ चैनल प्रसारित करते हैं | लोक सभा चुनाव 2024 से पहले नेशनल और रीजनल टी वी चैनल्स को इतने अधिक इंटरव्यू दिए , जो एक रिकॉर्ड है | फिर वह न्यूज़ चैनल्स के इवेंटस में अपनी बातें लगातार रखते हैं | जनता पर सीधे संवाद का इससे अच्छा तरीका और कुछ नहीं हो सकता है |

सरकारी और कॉर्पोरेट प्रबंधकों को इस तथ्य पर भी विचार करना चाहिए कि मीडिया और इंटरटेनमेंट सेक्टर की बढ़ती आय 2.5 लाख करोड़ से बढ़कर 2.7 लाख करोड़ रूपये इस बात का संकेत देती है कि आर्थिक मॉडल बदला पर मजबूत बना हुआ है। उसी समय, प्रिंट मीडिया ने भी 2025 की पहली छमाही में 2.77% सर्कुलेशन में वृद्धि दिखाकर लाभ दिये कि भरोसा अभी भी मौजूद है। इन सब के बीच सबसे बड़ा खतरा और अवसर दोनों डिजिटल में हैं — जहां नियम, टेक्नोलॉजी और नागरिक-साक्षरता यह तय करेंगे कि अगला दशक मीडिया-स्वास्थ्य और लोकतंत्र के लिये सकारात्मक बनेगा या नहीं | वर्ष 2025 ने मीडिया-इकोसिस्टम के उस परिवर्तन को और स्पष्ट कर दिया जिसे कई लोग पिछले दशक से देख रहे थे | एक ओर पारंपरिक टेलीविजन (टीवी) की पहुँच और भरोसेमंदता बरकरार है, दूसरी ओर डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म — ओ टी टी , सोशल मीडिया, न्यूज़ ऐप्स भी दर्शक और विज्ञापन की कमाई खींच रहे हैं। यही द्वैत न केवल दर्शक-व्यवहार बदलता है बल्कि मीडिया हाउसों के राजस्व, विज्ञापन मॉडल और नियंत्रण के स्वरूप को भी बदल रहा है।

उद्योग रिपोर्टों में बताया गया है कि टी वी के कुल स्क्रीन-काउंट 2024 में लगभग 190 मिलियन के स्तर पर था और 2026 तक इसे 214 मिलियन तक पहुँचने का प्रोजेक्शन दिया गया — इस वृद्धि से अनुमानित नई खरीद हर साल कई करोड़ स्क्रीन-वृद्धि के अनुरूप दिखती है | सरकारी रिपोर्ट्स के अनुसार 2025 में भारत में लगभग 230 मिलियन हाउसहोल्ड्स टीवी-नेटवर्क से जुड़े हुए हैं और कुल दर्शकों की पहुँच लगभग 900 मिलियन तक बताई गयी है। यानी टीवी की बेस-लाइन्स पहुँच विशाल है; यह ग्रामीण-अर्ध-शहरी क्षेत्रों में सार्वजनिक जानकारी पहुँचाने का सबसे किफ़ायती और प्रभावी माध्यम बना हुआ है — खासकर जहाँ इंटरनेट-पेनिट्रेशन या ब्रॉडबैंड-गति सीमित है। यह ऊँचा दर्शक-आधार टीवी को—विशेषकर समाचार और राज्य/क्षेत्रीय सूचनाओं के लिए—एक निर्णायक माध्यम बनाता है, भले ही युवा दर्शक अधिकतर डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर जा रहे हों। टीवी की पारंपरिक सामग्री न्यूज़ बुलेटिन , क्षेत्रीय सीरियल्स , धार्मिक और ग्रामीण कार्यक्रम अभी भी उस जनसमूह को सबसे पहले पहुँचाती है जिसका डिजिटल पहुंच सापेक्ष कम है।

बड़े लोग भूल जाते हैं कि मोबाइल फोन देश के गरीब वर्ग तक पहुंचा है | बताते हैं कि 100 करोड़ मोबाइल सेट लोगों के पास हैं | लेकिन दिल्ली मुंबई में सब्जी फल बेचने वाले या रिक्शा चालक या घरों में काम करने वाली महिलाएं मोबाइल फोन सामान्यतः घर परिवार या काम की बात करने सुनने के लिए करती हैं , उस पर न्यूज़ या उससे जुड़े प्रोग्राम नहीं देखती | बच्चों की पढ़ाई में कुछ सहायक है | इसी तरह विश्वास करना कठिन लग सकता है पर ए बी सी सर्कुलेशन के के प्रामाणिक आँकड़ों के अनुसार जनवरी-जून 2025 ऑडिट-पीरियड में दैनिक अख़बारों की औसत-क्वालिफाइंग-सेल्स 29,744,148 (29.74 मिलियन) प्रतियाँ रहीं, जो कि जुलाई-दिसम्बर 2024 के 28,941,876 (28.94 मिलियन) से 2.77% (लगभग 8.02 लाख प्रतियाँ) की वृद्धि थी। इस वृद्धि का कारण कई क्षेत्रों में पाठक आज भी स्थानीय खबर, -सूचना, रोजगार-सूचना और क्षेत्रीय भाषा की रिपोर्टिंग के लिए अख़बार पर भरोसा रखते हैं। कस्बों और गांवों में ही नहीं महानगरों में भी सामान्य लोग अख़बारों को विश्वसनीय और उपयोगी मानते हैं | हाँ पाठकों या दर्शकों की बदलती रुचियों और उपयोगिता को प्राथमिकता ही सफलता देता है |

राहुल गांधी जैसे नेता डिजिटल क्रांति के भरोसे हैं | याद कीजिये राहुल गाँधी ने केवल अर्नब गोस्वामी को एक टी वी इंटरव्यू दिया | फिर केवल डिजिटल यू ट्यूब चैनल कर्ली टेल्स ( ट्रेवल फ़ूड इत्यादि के लिए प्रसिद्ध ) को इंटरव्यू दिया | हाँ भाषण प्रेस कांफ्रेंस करते रहे और मीडिया कर्मियों की जातियों , मालिकों के नाम पूछकर अपमानित करते रहे | बहरहाल उनका शौक बॉक्सिंग रहा है | इसी तरह उन्हें मांसाहार प्रिय है | भारत में अब भी शाकाहारी और धर्मप्राण आबादी की संख्या सर्वाधिक है | वह पारम्परिक मीडिया से अधिक जुड़ी हुई है |

यों डिजिटल पर नई पीढ़ी का समाचार देखना/पढ़ना बढ़ा है , पर भरोसा घट रहा है। रायटर्स इंस्टिट्यूट की रिपोर्ट्स के अनुसार डिजिटल-न्यूज़ की पहुंच विशेषकर शहरी तथा युवा-वर्ग में व्यापक है, पर फेक-न्यूज़ और हेट-स्पीच का खतरा साथ में बढ़ रहा है। सोशल-मीडिया, मैसेजिंग-ऐप्स और वायरल वीडियो के माध्यम से ग़लत सूचनाएँ तेज़ी से फैलती हैं। मैसेजिंग-ग्रुप्स (जैसे वॉट्सऐप): निजी/चाेनल मैसेजिंग में वायरल अफवाहें सहजता से फैलती हैं — मॉडरेशन-ऐंड-टीकेडाउन जैसी कार्रवाई अक्सर लागू नहीं होती।2025 तक ए आई सक्षम ऑडियो/वीडियो एडिटिंग ने धोखे और गलत पहचान की घटनाएँ बढ़ा दी हैं | उनके लिए नियमों में -विशेष प्रावधान की कमी चिंता का मुद्दा है। अब नियंत्रित कंटेंट और सत्यापन डिटेक्शन, ऑटोमेटेड सत्यापन टूल और स्टैंडर्ड-मेट्रिक्स की आवश्यकता बढ़ेगी। वर्तमान नियम इन नए जोखिमों के लिए पूरी तरह तैयार नहीं हैं। क़ानूनी संतुलन जैसे-जैसे डिजिटल पर नियंत्रण बढ़ेगा, अभिव्यक्ति-स्वतंत्रता और सेंसरशिप के बीच संतुलन करना होगा | नियमन के पारदर्शी और अपील-मेकैनिज्म बेहद आवश्‍यक होंगे।