राजश्री फिल्म्स वालों ने शम्मी कपूर की एक श्रृंखला ‘शम्मी कपूर अनप्लग्ड’ आरंभ की थी। इसमें शम्मी कपूर यादों का गुलदस्ता लेकर आते थे। इस सीरीज में शम्मी कपूर ने एक से अधिक मर्तबा देव आनंद की मेहरबानियों का जिक्र करते हुए बताते हैं कि साठ के दशक के दो मशहूर निर्माता निर्देशक फिल्में बना रहे थे। इनमें एक थे नासिर हुसैन जो शम्मी कपूर लॉबी के निर्देशक थे। जिनकी फिल्म ‘दिल देके देखो’ और ‘तुमसा नहीं देखा’ में शम्मी कपूर काम कर चुके थे। दूसरे थे सुबोध मुखर्जी जो देव आनंद के खास थे। इनकी फिल्म ‘पेइंग गेस्ट’ और ‘मुनीमजी’ को देव आनंद हिट करवा चुके थे। संयोग से नासिर हुसैन पहले सुबोध मुखर्जी के लिए ही काम करते थे। ‘मुनीमजी’ की पटकथा और संवाद नासिर हुसैन ने ही लिखे थे। इस लिहाज से देव आनंद से भी उनकी पटती थी।
देव आनंद
एक दिन नासिर हुसैन ने शम्मी कपूर को फोन लगाकर कहा मैं एक फिल्म बना रहा हूं। जिसमें आशा पारेख हीरोइन है और इस बार ओपी नैयर के बजाए शंकर-जयकिशन को लेकर म्यूजिकल रोमांटिक फिल्म बना रहा हूं। शम्मी कपूर ने कहा अच्छा है ! इस पर नासिर हुसैन बोले, लेकिन इसके लिए मैंने देव आनंद को साइन कर लिया है। इससे शम्मी कपूर का मूड खराब हो गया। उधर, सुबोध मुखर्जी ने भी देव आनंद से सम्पर्क कर अपनी नई फिल्म की चर्चा की, जिसमें एक नई हीरोइन पहली बार अभिनय करने वाली थी। ‘मिस्टर हिटलर’ नाम से बनने वाली इस फिल्म में भी संगीत शंकर-जयकिशन का ही था और फिल्म कश्मीर की वादियों में फिल्माई जाने वाली थी। जब देव आनंद को पता चला कि नासिर हुसैन ने शम्मी कपूर को चिढाने के लिए फोन किया, तो उन्हें बुरा लगा। उन्होंने सुबोध मुखर्जी से कहा कि देखो में यदि यह फिल्म करता हूं और यह सुपर हिट भी होती है, तो मेरे करियर पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा, बस एक लिस्ट में एक हिट फिल्म और जुड़ जाएगी। जबकि, शम्मी को इस समय एक हिट फिल्म की बहुत जरूरत है और फिल्म के मिजाज से इसमें शम्मी कपूर ज्यादा फिट होगा, तुम उससे बात करो।
देव आनंद 2
सुबोध मुखर्जी ने शम्मी कपूर से बात की और कहा इसके लिए पहले देव आनंद से बात चली थी। उन्होंने ही तुम्हारी सिफारिश की है, तब शम्मी कपूर ने देव आनंद को फोन मिलाया और उनसे सुबोध मुखर्जी की फिल्म में काम करने की अनुमति मांगी। तब देव आनंद ने कहा यह तुम्हारी फिल्म है, लेकिन इसका नाम जम नहीं रहा है। तब, सुबोध मुखर्जी ने ‘मिस्टर हिटलर’ का नाम बदलकर ‘जंगली’ रखा और फिर इतिहास गवाह है कि इस फिल्म ने शम्मी कपूर का करियर आसमान पर ला दिया। नासिर हुसैन की जिस फिल्म में देव आनंद ने काम किया वह भी अपने जमाने की सबसे बड़ी हिट फिल्म ‘जब प्यार किसी से होता है’ थी।
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इसके बाद दूसरा मौका तब आया जब नासिर हुसैन विजय आनंद के निर्देशन में ‘तीसरी मंजिल’ बना रहे थे। इस फिल्म के हीरो देव आनंद तय थे। संगीतकार आर डी बर्मन देव आनंद के कहने पर ही लिए गए थे। आम तौर देवआनंद कभी किसी से बहस नहीं करते, लेकिन एक दिन देव आनंद और नासिर हुसैन में पता नहीं क्या बात हुई। देव आनंद ने बाहर निकलते ही कहा ‘जिंदगी में फिर कभी इसके साथ काम नहीं करूंगा।’ लेकिन, उन्होंने विजय आनंद को काम करने से नहीं रोका। ‘तीसरी मंजिल’ के लिए देव आनंद ने विजय आनंद को शम्मी कपूर का नाम सुझाया। विजय आनंद और नासिर हुसैन ने शम्मी कपूर से बात की, तो शम्मी कपूर ने कहा पहले देव साहब से कंफर्म करूंगा कि वे तो फिल्म नहीं कर रहे हैं, तब ही हां करूंगा। उन्होंने देव आनंद को फोन लगाकर कंफर्म किया और उनकी अनुमति लेकर ही ‘तीसरी मंजिल’ साइन की। शम्मी कपूर इसे देव आनंद का बहुत बड़ा अहसान मानते थे।
कई कलाकारों को देव आनंद ने सितारा बनाया
ऐसा ही अहसान वे धर्मेन्द्र पर भी कर चुके थे। रमेश सहगल ‘शोला और शबनम’ बना रहे थे। इसके लिए उन्होंने देव आनंद का नाम तय कर उन्हें बात करने ऑफिस बुलाया। ऑफिस के बाहर भीड़ में लाइन लगाकर धर्मेन्द्र भी काम की तलाश में खड़े थे। ऑफिस के अंदर जाते हुए देव आनंद ने धर्मेन्द्र को देखा और उनके पास रूककर बातचीत की। ऑफिस के अंदर जब रमेश सहगल ने उन्हें ‘शोला और शबनम’ की कहानी सुनाई तो देव आनंद ने कहा कि यह फिल्म मुझ पर सूट नहीं करेगी। लेकिन, मैं अभी तुम्हें फिल्म का हीरो देता हूं। कहकर उन्होंने बाहर खड़े धर्मेन्द्र को बुलवाया और उन्हें ‘शोला और शबनम’ दिलवाई। इस फिल्म ने धर्मेन्द्र को सफलता का स्वाद चखाकर लोकप्रिय बना दिया। जिसके लिए वे जिंदगीभर देव आनंद के शुक्रगुजार रहे।
सभी बात को सभी जानते हैं कि ‘जंजीर’ पहले देव आनंद को ही ऑफर हुई थी। इसकी कहानी देव आनंद की पुरानी फिल्म ‘सीआईडी’ से मिलती जुलती है। उसमें भी देव आनंद पुलिस ऑफिसर बने थे और जेल में एक कैदी की हत्या हो जाती है, जिसका इल्जाम देव आनंद पर लगता है। वे जॉनी वॉकर की सलाह मानकर जेल से भाग जाते हैं और असली कातिल का पता लगाते है। ‘जंजीर’ की कहानी भी ये थी। यहां तक कि ‘सीआईडी’ का गीत ‘ले के पहला पहला प्यार’ और ‘जंजीर’ का गीत ‘दीवाने है दीवानों को न घर चाहिए’ की सिचुएशन भी एक समान थी। दोनों गीत नायक पर नहीं, बल्कि सड़क पर हारमोनियम लेकर घुमने वाले स्ट्रीट सिंगर पर फिल्माए गए थे। देव आनंद को ‘सीआईडी’ में यह शिकायत थी, कि उन्हें गाने नहीं दिए गए। लेकिन, ओपी नैयर अड़ गए थे कि पुलिस ऑफ़िसर गाना गाते हुए अच्छा नही लगेगा। गुरूदत्त को यह बात जम गई और देव आनंद को एक भी गाना नहीं मिला। जो एक गाना मिला उसमें भी उन्होंने एक ही लाइन गाई थी, आंखों ही आंखों में इशारा हो गया। देव आनंद के ‘जंजीर’ छोड़ने का सबसे बड़ा फायदा अमिताभ को हुआ। अमिताभ इसके लिए कभी देव आनंद को धन्यवाद देना नहीं भूले।
ऐसा ही कुछ ‘संगम’ के दौरान भी हुआ। राज कपूर ने ‘संगम’ के लिए देव आनंद को साइन करना चाहा था, देव आनंद को कहानी भी अच्छी लगी थी। लेकिन, वे चाहते थे कि उन्हें राज कपूर वाली भूमिका मिले। क्योंकि, उनका मानना था कि उनके प्रशंसक फिल्म के अंत में उन्हें मरते नहीं देख पाएंगे। लेकिन, राज कपूर भी हीरोइन को छोड़ना नहीं चाहते थे। लिहाजा ‘संगम’ राजेंद्र कुमार के हिस्से में आई। इससे राजकपूर और राजेन्द्र कुमार की दोस्ती गहरी हुई। इस मेहरबानी के लिए राजेन्द्र कुमार भी देव आनंद का अहसान मानते रहे। बहुत कम लोगों को पता है कि ‘जिस देश में गंगा बहती है’ कि कहानी पहले देव आनंद के पास थी। अर्जुन देव रस्क से कहानी सुनने के बाद उन्होंने राज कपूर को फोन लगाकर कहा कि एक कहानी भेज रहा हूं, तुम्हारे काम आएगी। वाकई इस कहानी पर राज कपूर ने गजब की फिल्म भी बनाई। आरके स्टूडियो में राज कपूर के मेकअप रूम में कोई दस्तक तक देने की हिम्मत नहीं करता था। देव आनंद अकेले थे, जिन्हें न केवल राज कपूर के मेकअप रूम के अंदर तक जाने की छूट थी। बल्कि, आर के स्टूडियो में शूटिंग के दौरान उन्हें राज कपूर का मेकअप इस्तेमाल करने की इजाजत भी थी। विजय आनंद, राज कपूर, दिलीप कुमार और देव आनंद को लेकर एक ब्लॉकबस्टर बनाना चाहते थे। इसके लिए मुशीर रियाज तैयार भी हो गए थे। फिल्म की नायिका वैजयंती माला भी तय हो चुकी थी। लेकिन एक खास कारण से फिल्म मूर्त रूप नहीं ले पाई वर्ना यह हिन्दी सिनेमा की सबसे अनूठी और सबसे हिट फिल्म होती।