विकसित देश तुम्हारी अंतिम यात्रा निकाल रहे ‘विश्व शांति दिवस’ …

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विकसित देश तुम्हारी अंतिम यात्रा निकाल रहे ‘विश्व शांति दिवस’ …

कौशल किशोर चतुर्वेदी

आज विश्व शांति दिवस है। पर यह कहने में कोई तकलीफ नहीं है कि दुनिया भर में फैली अशांति को देखकर शांति दिवस को खुद भी बहुत कष्ट हो रहा होगा। भारत से ही हम अगर शुरुआत करें तो आज ही के दिन 21 सितंबर 1949 को मणिपुर के भारत में विलय होने पर मुहर लगी थी। और यह सब महसूस कर रहे हैं कि मणिपुर शांत होने का नाम नहीं ले रहा है। 19 सितंबर 2025 को ही असम राइफल्स पर हमला कर मणिपुर के उग्रवादियों ने यह बताया है कि मणिपुर में शांति की कल्पना करने का सपना भी मत देखो। और अगर पूरी दुनिया की बात करें तो रूस से लेकर अमेरिका तक दोनों महाशक्तियों के बीच सभी देशों में अशांति का साम्राज्य राज कर रहा है। रूस, यूक्रेन, पोलैंड, इजरायल, फिलिस्तीन और पूरा मध्य पूर्व युद्ध की आग में जल रहा है। अमेरिका प्रत्यक्ष और परोक्ष तौर पर अशांति का सबसे बड़ा केंद्र बनकर सामने है। रूस की अशांति पूरी दुनिया को अशांत कर रही है। जर्मनी, जापान, उत्तरी कोरिया, चीन तिब्बत, भारत, पाकिस्तान, ईरान, इराक, तुर्की, नेपाल, ब्रिटेन, फ्रांस, नाटो देश, इंडोनेशिया, वियतनाम, अफ्रीकी देश और पूरी दुनिया के देशों के नाम भी लिख लिए जाएं तो सभी जगह अशांति का ही बोलबाला है। और सभी जगह अशांति के पीछे की मुख्य वजह महाशक्तियां और विकसित देश ही हैं। वहीं महाशक्तियां और विकसित देश, जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ के बैनर तले 1982 में ‘अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस’ की शुरुआत की थी। उन्हीं महाशक्तियों और विकसित राष्ट्रों को देखकर आज शांति दिवस दहाड़ मार-मार कर रोने को मजबूर है।

विश्व शांति दिवस अथवा ‘अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस’ प्रत्येक वर्ष ’21 सितम्बर’ को मनाया जाता है। यह दिवस सभी देशों और लोगों के बीच स्वतंत्रता, शांति और खुशी कायम रखने के लिए परिकल्पित किया गया था। और तब से यह ‘विश्व शांति दिवस’ मुख्य रूप से पूरी पृथ्वी पर शांति और अहिंसा स्थापित करने के लिए मनाया जाता है। 43 वर्ष की उम्र तक आते-आते यह शांति दिवस खुद भी पूरी तरह से अशांति में डुबो दिया गया है। वर्ष 1982 से शुरू होकर 2001 तक सितम्बर महीने का तीसरा मंगलवार ‘अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस’ या ‘विश्व शांति दिवस’ के लिए चुना जाता था, लेकिन वर्ष 2002 से इसके लिए 21 सितम्बर का दिन घोषित कर दिया गया। अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस 2024 का विषय “शांति की संस्कृति का विकास” था। कल्चर ऑफ पीस न्यूज नेटवर्क द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में 2024 में दुनिया भर से अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस के 834 समारोहों की इंटरनेट रिपोर्टें मिलीं, जिनमें जापानी, हिंदी, रूसी, यूक्रेनी और अरबी के साथ-साथ अंग्रेजी, फ्रेंच, स्पेनिश, इतालवी और पुर्तगाली में कई रिपोर्टें शामिल हैं। बस अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस की महत्ता इन्हीं इंटरनेशनल इंटरनेट रिपोर्ट तक सीमित रह गई हैं। खुद ही समझा जा सकता है कि 2024 में तीन साल से युद्ध की आग में जल रहे रूस और यूक्रेन में इंटरनेट पीस रिपोर्ट का कितना औचित्य रह गया था। 2025 के लिए , संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित आधिकारिक थीम “शांति की संस्कृति का विकास” है। इसका उद्देश्य जीवन के सभी पहलुओं में शांति को बढ़ावा देना है। घर पर, स्कूलों में, समुदायों के भीतर और राष्ट्रों के बीच।यह विषय सभी को सहानुभूति, दयालुता और सकारात्मक संचार को महत्व देने के लिए आमंत्रित करता है तथा ऐसे कार्यों को बढ़ावा देता है जो संघर्ष को कम करने में मदद करते हैं और आपसी सम्मान, विविधता और समावेश को प्रोत्साहित करते हैं। इन खोखली बातों को पढ़कर ऐसा महसूस किया जा सकता है कि संयुक्त राष्ट्र संघ खुद में मजाक बनकर रह गया है और पूरी दुनिया का मजाक उड़ा रहा है।शांति का संदेश दुनिया के कोने-कोने में पहुँचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने कला, साहित्य, सिनेमा, संगीत और खेल जगत की विश्वविख्यात हस्तियों को शांतिदूत भी नियुक्त कर रखा है। पर यह शांति दूत भी शायद अपनी भूमिका को लेकर अशांत होंगे।

सम्पूर्ण विश्व में शांति कायम करना आज संयुक्त राष्ट्र का मुख्य लक्ष्य है। संयुक्त राष्ट्र चार्टर में भी इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि अंतरराष्ट्रीय संघर्ष को रोकने और शांति की संस्कृति विकसित करने के लिए ही यूएन का जन्म हुआ है। संघर्ष, आतंक और अशांति के इस विकट दौर में अब संयुक्त राष्ट्र और उसके चार्टर निराशा के काले सागर में डूबकर मातम मना रहे हैं।

‘विश्व शांति दिवस’ के उपलक्ष्य में हर देश में जगह-जगह सफेद रंग के कबूतरों को उड़ाया जाता है, पर इन कबूतरों को उड़ाने के पीछे शांति की मंशा अब दम तोड़ चुकी है। विश्व शांति को सबसे बड़ा खतरा साम्राज्यवादी, आर्थिक और राजनीतिक सोच से है। विकसित देश युद्ध की स्थिति उत्पन्न कर रहे हैं, ताकि उनके सैन्य साजो-समान बिक सकें और उनके सभी आर्थिक हित सध सकें। अमेरिका का टैरिफ युद्ध भी केवल आर्थिक हितों के लिए पूरी दुनिया में अशांति फैलाने का जरिया बन चुका है।

21वीं सदी में विश्व में फैली अशांति और हिंसा को देखते हुए शांति की कल्पना बेमानी है। पर आओ उम्मीद का मखौल उड़ाएं कि जल्द ही वह दिन आएगा, जब हर तरफ शांति ही शांति होगी। अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस भी ऐसे मखौल के लिए हमें कभी माफ नहीं करेगा। अब तो यही देखना बाकी है कि अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस पर युद्धों की आग में जल रहे देशों में कितनी मौतें हुई हैं और शांति की चिता विश्व में कहां-कहां जली है। ‘शांति दिवस’ तुम खुद ही देखो पूरी दुनिया कितनी ‘अशांत’ है…और विकसित देश नगाड़े बजाकर तुम्हारी अंतिम यात्रा निकाल रहे हैं।

 

लेखक के बारे में –

कौशल किशोर चतुर्वेदी मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पिछले ढ़ाई दशक से सक्रिय हैं। पांच पुस्तकों व्यंग्य संग्रह “मोटे पतरे सबई तो बिकाऊ हैं”, पुस्तक “द बिगेस्ट अचीवर शिवराज”, ” सबका कमल” और काव्य संग्रह “जीवन राग” के लेखक हैं। वहीं काव्य संग्रह “अष्टछाप के अर्वाचीन कवि” में एक कवि के रूप में शामिल हैं। इन्होंने स्तंभकार के बतौर अपनी विशेष पहचान बनाई है।

वर्तमान में भोपाल और इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र “एलएन स्टार” में कार्यकारी संपादक हैं। इससे पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एसीएन भारत न्यूज चैनल में स्टेट हेड, स्वराज एक्सप्रेस नेशनल न्यूज चैनल में मध्यप्रदेश‌ संवाददाता, ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ में संवाददाता रह चुके हैं। प्रिंट मीडिया में दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में राजनैतिक एवं प्रशासनिक संवाददाता, भास्कर में प्रशासनिक संवाददाता, दैनिक जागरण में संवाददाता, लोकमत समाचार में इंदौर ब्यूरो चीफ दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं। नई दुनिया, नवभारत, चौथा संसार सहित अन्य अखबारों के लिए स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर कार्य कर चुके हैं।