Development or Discontent? Bihar Faces Key Test Ahead of 2025 Polls: बिहार के मतदाता किस ओर?

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Development or Discontent? Bihar Faces Key Test Ahead of 2025 Polls: बिहार के मतदाता किस ओर?

वरिष्ठ पत्रकार के के झा की विशेष रिपोर्ट

नवंबर में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले राज्य में विकास का मुद्दा एक बार फिर राजनीतिक विमर्श के केंद्र में है। आंकड़े बताते हैं कि बिहार ने गरीबी घटाने में ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है—फिर भी समग्र विकास के पैमाने पर वह देश में सबसे नीचे है।
नीति आयोग की हालिया रिपोर्टों — एसडीजी इंडिया इंडेक्स 2023-24, मल्टी-डायमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स (एमपीआई) 2023, और मैक्रो-राजकोषीय परिदृश्य (मार्च 2025) — से बिहार की विकास यात्रा का विरोधाभास झलकता है: तेज़ सुधार की रफ्तार, लेकिन निचले पायदान की स्थिति।

*गरीबी में ऐतिहासिक कमी, लेकिन असमानता बरकरार*

एमपीआई के अनुसार, 2015 से 2021 के बीच बिहार में गरीबी दर 18.13 प्रतिशत अंक घटी, जिससे करीब 3.77 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से मुक्त हुए। फिर भी, राज्य की गरीबी दर (2022-23 में अनुमानित 26.59%) देश में सबसे अधिक है, जो राष्ट्रीय औसत 11.28% से ढाई गुना ज्यादा है।
ग्रामीण सुधार और कल्याण योजनाओं के क्रियान्वयन ने असर दिखाया, पर असमानता (SDG 10) और भूखमरी (SDG 2) अब भी बड़ी बाधाएं हैं — कुपोषण की दर 42.9% है, जबकि देश में यह 35.5% है।

*शिक्षा और स्वास्थ्य में स्थिर प्रगति*
शिक्षा (SDG 4) में बिहार परफॉर्मर श्रेणी में है। प्राथमिक नामांकन दरें बढ़ी हैं, लेकिन साक्षरता अभी भी 61.8% है, जबकि राष्ट्रीय औसत 73% है।
स्वास्थ्य (SDG 3) में राज्य ने उल्लेखनीय सुधार किया है—शिशु मृत्यु दर 27 प्रति 1000 है, जो अब राष्ट्रीय स्तर के बराबर है।

*आर्थिक मोर्चे पर संभावनाएं*
आर्थिक विकास (SDG 8) में बिहार की वृद्धि दर 10% रही है — यह राष्ट्रीय औसत से अधिक है। रोचक रूप से, राज्य में विनिर्माण क्षेत्र का हिस्सा 17.4% तक पहुंच गया है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह 5.5% है। फिर भी, रोज़गार सृजन, निवेश आकर्षण और शहरी आधारभूत ढांचे की कमजोरियां विकास को सीमित कर रही हैं।

*एसडीजी स्कोर में सुधार, पर अंतिम पायदान पर*
बिहार का कुल एसडीजी स्कोर 57 है — जो देश में सबसे कम है, भले ही इसमें पिछले वर्ष की तुलना में 5 अंकों का सुधार हुआ हो। भारत का औसत स्कोर 71 है। राज्य ने शून्य गरीबी और स्वास्थ्य में अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन भुखमरी, असमानता और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा जैसे लक्ष्यों में अब भी पिछड़ा है।

*चुनावी परिप्रेक्ष्य: आंकड़ों बनाम अनुभव की जंग*
इन संकेतकों के बीच चुनावी मौसम में दो समानांतर कथाएँ चल रही हैं—
सरकार का दावा: गरीबी घटाने और विकास परियोजनाओं की तेज़ रफ्तार।
विपक्ष का सवाल: शिक्षा, रोजगार और असमानता के मोर्चे पर सुस्त प्रगति।
बिहार आज एक ऐसे मोड़ पर है जहां “विकास की दिशा” और “विकास की गहराई” दोनों पर बहस ज़रूरी है। चुनावी घोषणाओं में यह स्पष्ट होगा कि क्या राज्य अपने तेज़ सुधारों को स्थायी समावेशी विकास में बदलने में सक्षम हो पाएगा।