विकास को राजनीति से परे रखना चाहिए…

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विकास को राजनीति से परे रखना चाहिए…

वर्तमान चुनावी माहौल में यह बात बेमानी लगती है, पर अगर ऐसा हो जाए तो शायद किसी भी दल की सरकार के अच्छे कामों को सराहना खुलकर नसीब हो सकती है। और तब मतदाताओं के मन में भी दलगत निष्ठा से ऊपर उठकर राष्ट्रहित को प्राथमिकता मिलने की उम्मीद की जा सकती है। तब यह समझा जा सकता है कि सरकारों के काम का आकलन विकास के आधार पर होने की परंपरा की शुरुआत हो सके। ऐसा नहीं है कि राजनेता कभी भी खुलकर दूसरे दलों की सरकार के अच्छे कामों की सराहना नहीं करते। पर बात जब दलों के स्तर पर और चुनावी मैदान में होती है,‌तब विरोधी दलों पर इसी तरह हमले किए जाते हैं जैसे “नायक हूं मैं, खलनायक है तू”। अभी तक तो बात दलों और सरकारों के कामों तक सीमित थी, पर इसे लोकतंत्र की बिडंबना ही कहा जाएगा कि अब तो हमलों का स्तर व्यक्तिगत तक पहुंच गया है। ऐसे में मोदी सरकार के काम की कांग्रेस नेता शशि थरूर द्वारा खुलकर तारीफ करना आदर्श राजनैतिक भावना का दीदार कराती है। ऐसे नेताओं की जरूरत केरल ही नहीं, बल्कि पूरे देश में है और हर राज्य में है। जहां अच्छे कामों की तारीफ हो और गलत कामों की खुलकर निंदा हो। अच्छी नीतियों को सराहा जाए और बुरी नीतियों का खुलकर बहिष्कार हो। ताकि मतदाता भी पूर्ण सत्य को सामने रखकर परिपक्वता भरा फैसला लेने की क्षमता खुद में पैदा कर सके। तब मतदाता भरोसेमंद होगा और सरकार को भी भरोसेमंद बनाए रखने की हिम्मत रखेगा।
शशि थरूर ने ट्वीट करते हुए लिखा, “केरल में वंदे भारत ट्रेन के लिए मैंने 14 महीने पहले एक ट्वीट किया था। मुझे खुशी है कि अश्विनी वैष्णव ने वैसा ही किया। 25 तारीख को तिरुवनंतपुरम से नरेंद्र मोदी के पहली ट्रेन को हरी झंडी दिखाने के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए उत्सुक हूं। विकास को राजनीति से परे रखना चाहिए।” दरअसल प्रधानमंत्री मोदी 25 अप्रैल को केरल में वंदे भारत ट्रेन को हरी झंडी दिखाएंगे। ये ट्रेन तिरुवनंतपुरम स्टेशन से चलकर कोझिकोड रेलवे स्टेशन पर रुकेगी। लगभग 500 किमी का सफर ये सिर्फ साढ़े सात घंटे में ही पूरा कर लेगी। यह वंदे भारत केरल के लिए पहली वंदे भारत ट्रेन होगी।
तो है न खास बात। आज के ऐसे समय में जब पद न मिलने पर सत्यपाल मलिक जैसे नेता अपने ही प्रधानमंत्री को‌ खुलकर कोसने और खलनायक साबित करने में डकार भी नहीं लेते। और फिर मलिक तो अपनी मर्जी के मालिक हैं कि आज कुछ भी बोल दो और कल बयान वापस भी ले लो। भरोसा करने वाले न इधर के रहें और न उधर के। और फिर बात वहां तक पहुंच जाती है कि सेवानिवृत्त अफसर खेमों में बंटे नजर आते हैं। फिर किसी को भी खलनायक साबित करने का मसाला तथ्यों सहित परोसने में कोई परहेज नहीं किया जाता। ऐसे में शशि थरूर का विपक्षी दल के विकास की तारीफ का बयान तेज गर्मी में ठंडक की फुहार जैसा सुकून देता है। मन की बात तो यही है कि विकास को वाकई राजनीति से परे रखना चाहिए।
पर यह इक्कीसवीं सदी है। जिस तरह से देश विकास के मामले में दुनिया में अपनी खास पहचान बना रहा है। उसी तरह लोकतंत्र में राजनैतिक स्थितियां भी नए आयामों को छू रही है। मध्यप्रदेश ने भी इक्कीसवीं सदी में बहुत कुछ पाया है। बीमारू राज्य की पहचान से खुद को उबारा है। पर मध्यप्रदेश की राजनीति में शशि थरूर जैसे नेता दूर-दूर तक नजर नहीं आते। बात अकेली मध्यप्रदेश की नहीं है बल्कि देश में भी स्थितियां अपवादों को छोड़कर लगभग यही हैं। पर यह उम्मीद की जा सकती है कि वह दिन भी आएगा जब अच्छे काम की तारीफ और गलत कामों की निंदा का काम दलगत भावना से ऊपर उठकर होगा और तब किसी भी दल की सरकार के विकास के कामों की तारीफ राजनीति से परे रखकर होने लगेगी। दलगत और मतगत की राजनीति से ऊपर उठकर फैसले होने लगेंगे और राष्ट्रहित में सभी दिशाओं से सम स्वर की गूंज सुनाई देने लगेगी…।