Dhar Loksabha Constituency: भोजशाला का सर्वे बन गया चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा,बीच चुनाव चल पड़ी टिकट बदलने की चर्चा

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Dhar Loksabha Constituency: भोजशाला का सर्वे बन गया चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा,बीच चुनाव चल पड़ी टिकट बदलने की चर्चा

 

दिनेश निगम ‘त्यागी’ की ग्राउंड रिपोर्ट 

विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार के गृह क्षेत्र धार में भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिल रहा है। भाजपा प्रत्याशी सावित्री ठाकुर पहले भी सांसद रह चुकी है। वे जिला पंचायत अध्यक्ष भी रही हैं जबकि कांग्रेस के राधेश्याम मुवेल पहली बार कोई बड़ा चुनाव लड़ रहे हैं। फिर भी उन्होंने सावित्री ठाकुर की राह में मुश्किल खड़ी कर रखी है। मुवेल आदिवासियों से जुड़े एक संगठन के अध्यक्ष हैं। इस नाते वे उनके बीच काम करते हैं और लोकप्रिय भी। देश की राजनीतिक आबोहवा का असर धार में भी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राम मंदिर की लहर के सहारे भाजपा को चुनावी वैतरणी पार करने की उम्मीद है। दूसरी तरफ कांग्रेस को आदिवासियों के पार्टी के प्रति झुकाव से उम्मीद है। इस झुकाव की बदौलत ही कांग्रेस ने क्षेत्र की 8 में से 5 विधानसभा सीटों में कब्जा कर रखा है। खास बात यह है कि धार के चुनाव में भोजशाला का सर्वे सबसे बड़ा मुद्दा बन गया है।

 *0 बीच चुनाव चल पड़ी टिकट बदलने की चर्चा* 

– आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित प्रदेश की धार लोकसभा क्षेत्र में भाजपा की सावित्री ठाकुर और कांग्रेस के राधेश्याम मुवेल के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिल रहा है। भाजपा ने सांसद छत्तरसिंह दरबार का टिकट काट कर पूर्व सांसद सावित्री को चुनाव लड़ाया है। सावित्री 2014 में सांसद थीं। तब पार्टी ने उनका टिकट काट कर छत्तरसिंह को टिकट दिया था। छत्तरसिंह पहले भी दो बार सांसद रह चुके हैं। टिकट काटे जाने से छत्तर सिंह नाराज बताए जाते हैं। वे प्रचार में हिस्सा लेते दिखाई नहीं पड़ रहे हैं। इसका कुछ नुकसान भाजपा को उठाना पड़ सकता है। दूसरी तरफ कांग्रेस की ओर से सबसे अच्छे दावेदार नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार और सुरेंद्र सिंह बघेल हनी थे लेकिन ये चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं हुए। कांग्रेस के राधेश्याम की स्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि चुनाव के बीच उनका टिकट बदले जाने की चर्चा चल पड़ी थी। शिकायत थी की भाजपा का प्रचार उफान पर है और कांग्रेस के कार्यालय तक नहीं खुले। इन अटकलों के बीच मुबेल उमंग सिंघार से मिले, इसके बाद टिकट बदलने की चर्चा पर विराम लगा।

 *0 दोनों तरफ एक जैसे हालात, मुकाबला कड़ा* 

– सावित्री ठाकुर सांसद रही हैं और जिला पंचायत अध्यक्ष भी, इसलिए उनके पास चुनाव लड़ने का अनुभव है। भाजपा जैसा मजबूत संगठन उनके साथ है ही। दूसरी तरफ कांग्रेस के मुबेल पहली बार कोई बड़ा चुनाव लड़ रहे हैं। विधानसभा में कांग्रेस ने 5 सीटें जीती हैं लेकिन कांग्रेस का संगठन मजबूत नहीं। कांग्रेस के विधायक भी उस तरह काम करते नजर नहीं आ रहे, जैसा उन्होंने खुद अपना चुनाव लड़ा। मुद्दों के धरातल पर भी भाजपा मजबूत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे के साथ राम लहर का लाभ पार्टी को मिल रहा है। इन कारणों से भाजपा की तुलना में कांग्रेस कमजोर नजर आ रही है। भाजपा के सांसद छत्तरसिंह नाराज हैं तो कांग्रेस के पूर्व सांसद गजेंद्र सिंह राजूखेड़ी भी पार्टी छोड़कर भाजपा में चले गए हैं। राजूखेड़ी भी धार से तीन बार सांसद रहे हैं और एक भी चुनाव नहीं हारे। फिर भी कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो उन्होंने पार्टी छोड़ दी। धार लोकसभा सीट की जवाबदारी उमंग सिंघार ने ले रखी है। यहां का चुनाव आखिरी चरण में हैं । पार्टी को भरोसा है कि तब तक उमंग सभी विधायकों को सक्रिय कर लेंगे। जहां तक धार के राजनीतिक मिजाज का सवाल है तो यहां कभी कांग्रेस जीती है तो कभी भाजपा। इस बार भी मुकाबला कड़ा है।

*0 भोजशाला को लेकर अपने-अपने दावे-तर्क* 

– मालवा अंचल में भोजशाला का मुद्दा हमेशा बडा रहा है। इसे लेकर कई बार सांप्रदायिक तनाव के हालात बनते हैं। कोर्ट के निर्देश पर इस समय भाेजशाला का सर्वे चल रहा है। इसलिए चुनाव में यह मुद्दा सबसे ऊपर आ गया है। इसे लेकर हिंदू और मुस्लिम समाज के अपने-अपने तर्क, दावे हैं। यह मुद्दा लोकसभा चुनाव पर प्रभाव डाल सकता है। इसे लेकर हिंदू- मुस्लिम के बीच ध्रुवीकरण होता है। इसका सीधा लाभ भाजपा को मिलता है। इसके अलावा भाजपा-कांग्रेस के अपने-अपने मुद्दे हैं। भाजपा प्रधानमंत्री नरेद्र माेदी की लोकप्रियता और राम लहर के सहारे चुनाव लड़ रही है। केंद्र एवं राज्य की भाजपा सरकारों द्वारा किए गए कामों का प्रचार किया जा रहा है। भाजपा के पक्ष में योजनाओं से लाभ लेने वाला बड़ा हितग्राही वर्ग है। दूसरी तरफ महंगाई, बेरोजगारी सहित कई मसलों पर कांग्रेस केंद्र की नाकामियां गिना रही है। केंद्रीय जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का मुद्दा उठाया जा रहा है। भाजपा पर समाज के अंदर वैमनस्यता फैलाने के आरोप लगाए जा रहे हैं। कांग्रेस के घोषणा पत्र में शामिल 5 न्याय और 24 गारंटियों का प्रचार किया जा रहा है। मुद्दों की कमी दोनों ओर नहीं है।

*0 विधानसभा चुनाव में भाजपा पर भारी पड़ गई कांग्रेस* 

– धार में भाजपा का कमजोर पहलू यह है कि 4 माह पहले हुए विधानसभा चुनाव में वह कांग्रेस से पिछड़ गई। लोकसभा क्षेत्र के तहत आने वाली 8 में से 5 विधानसभा सीटें कांग्रेस जीत गई जबकि भाजपा को सिर्फ 3 सीटों से संतोष करना पड़ा। कांग्रेस का पांच सीटों में जीत का अंतर 79 हजार 819 वोट रहा जबकि भाजपा तीन सीटें 44 हजार 442 वोट के अंतर से जीती। लोकसभा चुनाव की दृष्टि से लगभग 35 हजार वोटों का यह अंतर ज्यादा नहीं है। इससे भी पता चलता है कि धार में भाजपा- कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला होने वाला है। पिछले चुनाव पर नजर डालें तो 2018 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने 8 में से 5 सीटें जीती थीं और भाजपा के खाते में 3 सीटें गई थीं लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा लगभग डेढ़ लाख वोटों के अंतर से जीत गई थी। माहौल को देख कर लगता है कि यह इतिहास फिर दोहराया जा सकता है।

 *0 किसी के भी पक्ष में आ सकता है फैसला* 

– भौगोलिक दृष्टि से धार लोकसभा क्षेत्र में इंदौर का भी एक हिस्सा आता है। इसके तहत धार जिले की 7 और इंदौर जिले की एक विधानसभा सीट डॉ अंबेडकर नगर महू आती है। महू भाजपा का गढ़ है। भाजपा की ऊषा ठाकुर यहां से विधायक हैं। विधानसभा का चुनाव वे 34 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से जीती हैं। शेष 7 सीटों में से 5 सरदारपुर, गंधवानी, कुक्षी, मनावर, धरमपुरी धार जिले की आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित सीटें हैं जबकि धार और बदनावर सामान्य हैं। आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 5 में से 4 सीटें कांग्रेस के पास हैं। इससे इस वर्ग के कांग्रेस की ओर झुकाव का पता चलता है। इसके विपरीत सामान्य वर्ग की 3 सीटों से 2 भाजपा के पास हैं और कांग्रेस के पास सिर्फ एक सीट है। इससे पता चलता है कि सामान्य वर्ग भाजपा के साथ ज्यादा खड़ा है। अनारक्षित सीटों के क्षेत्र में आदिवासी वर्ग की तादाद बहुत कम है। यहां से भाजपा को ज्यादा उम्मीद है जबकि कांग्रेस आदिवासी और मुस्लिम वर्ग पर भरोसा कर चल रही है। जहां तक सीट के राजनीतिक मिजाज का सवाल है तो बीते 8 लोकसभा चुनाव में भाजपा-कांग्रेस ने 4-4 जीते हैं। इस बार भी निर्णय किसी के भी पक्ष में जा सकता है।

*0 काम नहीं करते जातीय, सामाजिक समीकरण* 

– धार लोकसभा क्षेत्र आदिवासी बहुल है। यहां भिलाला और भील आदिवासियों की तादाद सबसे ज्यादा है। भाजपा की सावित्री ठाकुर और कांग्रेस के राधेश्याम मुवेल दोनों भिलाला आदिवासी हैं। इसलिए इस समाज के वोटों का बंटवारा हो सकता है। भील समाज का झुकाव कांग्रेस की ओर बताया जाता है। कांग्रेस के आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया इसी समाज से हैं। इसके अलावा लोकसभा क्षेत्र में पाटीदार, सिरवी, जाट के साथ पिछड़ वर्ग के मतदाताओं की बड़ी तादाद है। इनमें अधिकांश का झुकाव भाजपा की आेर बताया जा रहा है। सामान्य वर्ग का मतदाता बदनावर, महू और धार में ज्यादा है। यहां भाजपा का असर ज्यादा है। समाजों को अपनी ओर आकर्षित करने के उद्देश्य से भाजपा- कांग्रेस संबंधित समाजों के नेताओं को प्रचार के लिए तैनात कर रही है। लोगों का कहना है कि भोजशाला और राम मंिदर मुद्दे के कारण धार में जातीय और सामाजिक समीकरण काम नहीं करते। यहां हिंदू और मुस्लिमों के बीच ध्रुवीकरण ज्यादा होता है। आदिवासी वर्ग जरूर इससे अछूता दिखाई पड़ता है।

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