धर्म-कर्म: एक दस्तखत, एक करोड़ ‘राम नाम’ से बढ़कर: मालवा के संत पं. कमल किशोर नागर का भ्रष्टाचार पर सीधा प्रहार

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धर्म-कर्म: एक दस्तखत, एक करोड़ ‘राम नाम’ से बढ़कर: मालवा के संत पं. कमल किशोर नागर का भ्रष्टाचार पर सीधा प्रहार

 

– राजेश जयंत

 

मालवा की माटी के प्रसिद्ध संत और कथावाचक, पंडित कमल किशोर जी नागर ने अपने एक प्रवचन में सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को संबोधित करते हुए एक ऐसा संदेश दिया है, जो आज के समय में सोने से भी कीमती है। उन्होंने भ्रष्टाचार और सच्ची सेवा के बीच का अंतर समझाते हुए कहा कि एक गरीब और असहाय व्यक्ति की मदद में किया गया एक हस्ताक्षर, करोड़ों बार लिखे गए ‘राम नाम’ से भी अधिक पुण्यदायी है।

*क्या है संत नागर जी का संदेश..?*

पंडित नागर जी ने उन लोगों पर कटाक्ष किया जो भक्ति के नाम पर केवल कर्मकांड करते हैं, लेकिन असल जीवन में सेवा और कर्तव्य से चूक जाते हैं। उन्होंने ऊंचे पदों पर बैठे अधिकारियों से कहा- “आप व्यस्ततम समय में भगवान का नाम तो नहीं लिख सकोगे, पर जब कोई गरीब कागज़ लेकर आए, उस पर आप अपना ही नाम लिख देना, उसका काम हो जाएगा। वो एक करोड़ नाम के बराबरी हो जाएगी… राम का नाम नहीं, आपका नाम लिखना है।”

उन्होंने उस दर्द को उजागर किया जब एक आम आदमी, जो शायद अपने घर के जेवर गिरवी रखकर रिश्वत देने की मज़बूरी में आता है, उसे केवल एक हस्ताक्षर के लिए दर-दर भटकाया जाता है। उन्होंने समझाया कि इस तरह के व्यक्ति की निस्वार्थ मदद करना ही सबसे बड़ी पूजा है।

*कर्मकांड नहीं, कर्म की महत्ता*

यह संदेश उस गहरी सच्चाई को सामने लाता है कि सच्ची आध्यात्मिकता दिखावे की भक्ति में नहीं, बल्कि अपने कर्मों में ईमानदारी और दूसरों की सेवा में बसती है। एक ऐसे समय में जब देश में भ्रष्टाचार को लेकर संसद से सड़क तक बहस होती है, पंडित नागर जी का यह विचार एक नई दिशा दिखाता है। यह बताता है कि कानून से ज्यादा ज़रूरी व्यक्ति की अंतरात्मा और उसका धर्म है।

यह केवल एक आध्यात्मिक सीख नहीं, बल्कि एक सामाजिक क्रांति का आह्वान है। उनका यह संदेश हमें याद दिलाता है कि असली धर्म, मानवता की सेवा ही है।