तानाशाही, विवाह और मोहब्बत के 7 स्टेज.

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तानाशाही, विवाह और मोहब्बत के 7 स्टेज.

डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी.
सूफी परंपराओं के मुताबिक इश्क की सात स्टेज होती है.
मोहब्बत की उन 7 स्टेजों (मंजिलों) में पहली है दिलकशी यानी आकर्षण या अट्रैक्शन!
दूसरी सीढ़ी या स्टेज है उन्स यानी लगाव या इन्फेचुशन या अटैचमेंट है. जब दो लोग एक दूसरे के बारे में सोचने ही रहते हैं, सोचते ही रहते हैं ससुरे!
और तीसरी स्टेज में हो जाती है मोहब्बत. भावनाएं गहरी हो जाती हैं. अब वह केवल आकर्षण नहीं रहता, बल्कि दोनों आपस में एक दूसरे को दिल से चाहने लगते हैं.
मोहब्बत के बाद की चौथी स्टेज या सीढ़ी या सोपान है विश्वास! दोनों की राय एक हो जाती है. अकीदत, विश्वास और श्रद्धा. दो जिस्म, मगर एक जान!
मोहब्बत की पाँचवी सीढ़ी है इबादत यानी पूजा, वरशिप! जब प्यार इतना परवान चढ़ जाए कि साथी खुदा के समान लगने लगे। यहाँ प्रेम पूजा बन जाता है। पति परमेश्वर हो जाए और पत्नी प्राणेश्वरी!
…और मोहब्बत की छठी सीढ़ी है दीवानगी! हर चीज के लिए! दीवानगी घर के लिए, बच्चों के लिए, एक दूसरे के लिए! मैडनेस और जूनून की इन्तेहां! प्यार में पागलपन की हद तक चले जाना।
मोहब्बत की अंतिम सीढ़ी है फ़ना हो जाना! मौत!!
सूफी मत के अनुसार, इसका मतलब शारीरिक मृत्यु नहीं, बल्कि खुद को मिटाकर प्रेमी में विलीन हो जाना है, ‘फ़ना’ होना!
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हिन्दू समाज में विवाह संस्कार की 7 सीढ़ियां होती हैं. अग्नि के समक्ष फेरे लेते हुए सप्तपदी में हर सोपान पर एक शपथ होती है. एक पदी, एक स्टेज, एक शपथ! ये सात स्टेज आजीवन पोषण, स्वास्थ्य, कर्तव्य, धर्म निष्ठा, सुख, ज्ञान, संतान आदि की गारंटी के लिए होते हैं. इन सात कदमों पर सात वचन दिए जाते हैं इसके बिना हिंदुओं का विवाह संस्कार पूर्ण नहीं माना जाता!
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मोहब्बत में 7 स्टेज कब आती है, कब जाती है, कंबख्त, पता ही नहीं चलता! यह चीज़ ही ऐसी है!!!
तानाशाही में भी ऐसा ही होता है! पता ही नहीं चलता कि कब आकर्षक हुआ और कब मोहब्बत! जुनून कहां तक पहुंचा और कब फना हो गए!!
तुर्की की एक चर्चित पत्रकार और लेखिका हैं – ईसे तेमेलकुरान! उनकी किताब है ‘How to Lose a Country: The Seven Steps from Democracy to Dictatorship’. 6 साल पहले छपी थी. एक गैर-कथा पुस्तक है, जिसमें लेखिका लोकतंत्र के धीरे-धीरे तानाशाही में बदलने की 7 स्टेज का वर्णन किया है. तुर्की का अनुभव उन्होंने लिखा है. लेखिका ने तुर्की राष्ट्रपति रेजेप तइप एर्दोआन के उदय और उनकी पार्टी के माध्यम से लोकतंत्र के क्षरण का उदाहरण दिया है।
चेतावनी दी है कि यह प्रक्रिया अचानक नहीं होती, बल्कि धीरे-धीरे, चुपके से होती है – जैसे पॉपुलिज्म और राष्ट्रवाद सरकार में पूरी तरह तैयार होकर नहीं आते, बल्कि रेंगते हुए आते हैं. किताब का सार यह है कि दक्षिणपंथी पॉपुलिज्म (राइट-विंग पॉपुलिज्म) एक तरह की राजनीतिक पागलपन है, जो तर्कसंगतता को बाधित करता है और संस्थाओं को लकवाग्रस्त कर अधिकाधिक सत्ता हासिल करता है.
लेखिका तुर्की के अनुभव से सीखते हुए पश्चिमी देशों (जैसे अमेरिका में ट्रंप का उदय, ब्रिटेन में ब्रेक्सिट, हंगरी में विक्टर ऑर्बान आदि) को चेताती हैं कि ‘यह हमारे यहां नहीं हो सकता’ जैसा सोचना खतरनाक है.
वे कहती हैं कि पॉपुलिस्ट नेता “असली लोग” (real people) की बात करते हैं, और खुद को उनका प्रतिनिधि बताते हैं, जबकि विपक्ष को एलीट, गद्दार या आतंकवादी करार देते हैं।
किताब व्यक्तिगत संस्मरणों, इतिहास और स्पष्ट तर्कों पर आधारित है. लेखिका इन 7 स्टेप्स के माध्यम से बताती हैं कि कैसे लोकतंत्र खो जाता है. ये चरण तुर्की के अनुभव से निकले हैं, लेकिन वैश्विक पैटर्न दिखाते हैं.
ये हैं वे 7 स्टेप :
1. एक आंदोलन बनाएं और एक मिथक गढ़ें.
पॉपुलिस्ट नेता एक आंदोलन शुरू करते हैं, जहां वे दावा करते हैं कि वे इ हैं जो असली लोगों यानी साधारण, उपेक्षित जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं. विपक्षी या बुद्धिजीवी तो एलीट हैं. इससे समाज विभाजित होता है – हम बनाम वे। तुर्की में नेताजी ने यही किया, खुद को पीड़ित जनता का उद्धारक बताया.
2. तर्क और कारण को त्यागें, डर और क्रोध फैलाएं.
राजनीति में तर्क की जगह भावनाओं, खासकर डर, क्रोध और अपमान की भावना को प्रमुख बनाया जाता है. नेता कहते हैं कि पुरानी व्यवस्था भ्रष्ट है और वे इसे ठीक करेंगे. लोग “यह हमारे यहां नहीं हो सकता” जैसी बात कहकर शुरुआती संकेतों को नजरअंदाज़ करते हैं.
3. भाषा को खराब करें और नैतिकता को उलट दें.
भाषा को असभ्य बनाया जाता है, आलोचना को दबाया जाता है. सत्य और असत्य का भेद मिटाया जाता है. नेता झूठ बोलते हैं, लेकिन उनके समर्थक इसे अंतिम सत्य मानते हैं.
4. संस्थाओं को नष्ट /भ्रष्ट करें.
मीडिया, न्यायपालिका, विश्वविद्यालय, सिविल सर्विस और राजनीतिक दल जैसी संस्थाओं पर कब्जा किया जाता है या भ्रष्ट किया जाता है. ये संस्थाएं लोकतंत्र की रक्षक मानी जाती हैं, लेकिन ये अपेक्षा से ज्यादा कमजोर होती हैं. तुर्की में मीडिया को नियंत्रित किया गया, पत्रकारों को जेल भेजा गया.
5. राजनीतिक विरोधियों को डेमोनाइज करें और हाशिए पर धकेलें.
विपक्ष को गद्दार, आतंकवादी या विदेशी एजेंट बताया जाता है. आलोचना करने वालों पर व्यक्तिगत हमले होते हैं, न कि तर्कपूर्ण जवाब. इससे विपक्ष कमजोर पड़ता है और लोग चुप हो जाते हैं.
6. सत्ता को मजबूत करें और नियमों व कानूनों को अपने पक्ष में बदलें.
चुनावों में धांधली, अर्थव्यवस्था को क्रोनीवाद (दोस्तों को फायदा) पर आधारित बनाना. नेता खुद को अजेय दिखाते हैं, और निर्लज्जता को ताकत मानते हैं – वे कुछ भी कह या कर सकते हैं, क्योंकि समर्थक उन्हें माफ कर देते हैं.
7. देश को बपौती बना लें, क्रूरता को सामान्य करें.
अंत में, देश जनता का नहीं नेता का हो जाता है.
क्रूरता जैसे विरोधियों की गिरफ्तारी, अल्पसंख्यकों पर हमले सामान्य बात हो जाती है.
लोग पूछते हैं ये कैसे हो गया? होना तो नहीं था. लेकिन वास्तव में यह समाज की सहमति से ही होता है.
लोग चुप रहकर या ग़लत को समर्थन देकर देश खो देते हैं.
मित्रो, मेरे कम लिखे को ज़्यादा समझना, इस पोस्ट पर ध्यान से मनन करना, तुर्की को उदाहरण समझना!!!