क्या एक रात में टैग बदलने से सफेद से काली हो गई कमीज …!

892

 

क्या एक रात में टैग बदलने से सफेद से काली हो गई कमीज …!

इन दिनों देश में बिहार राज्य के गुड गवर्नेंस की छत से कूदकर सीवरेज टैंक में कूद जाने जैसी तस्वीर सामने आ रही है। राष्ट्रीय चैनल्स पर डिबेट में यह तस्वीर पेश करने और इसे औंधें मुंह गिराने की झींगा-कुश्ती जारी है। बताया ऐसे जा रहा है कि जैसे किसी ब्रांड का टैग हटाने पर ही कोई वस्तु मानो सड़कछाप साबित होने को मजबूर हो। पूरा बिहार एक उस पल में ही गर्त में चला गया है, जिस पल नीतिश कुमार ने एनडीए का दामन छोड़कर यूपीए से गलबहियां करने की घोषणा कर दी। और नीतिश कुमार उस एक रात में ही भैंस के दूध से भी ज्यादा सफेद से परिवर्तित होकर कोयले से भी ज्यादा काले हो गए। हालिया घटनाओं का हवाला देकर पेश की जा रही तस्वीर बिहार के कल और आज को दो विपरीत ध्रुव के रूप में दर्शाने का दम भर रही हैं? एक आपराधिक घटना का जिक्र और नीतिश कुमार सरकार पर हमला। वही नीतिश कुमार, जो एनडीए का दामन थामकर पूरे बिहार को चकाचक कर दिए थे, मानो उन्हीं नीतिश ने राजद का दामन थामकर बिहार को गंडक नदी में डुबोने में कोई कसर नहीं छोड़ी। फिलहाल तो ऐसा लग रहा है कि यूपीए का दामन थाम मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने उसी पल बिहार का बंटाधार कर दिया था। वैसे हम आपको बता दें कि उत्तर बिहार के जिले मानसून के दौरान कम से कम पाँच प्रमुख बाढ़-पैदा करने वाली नदियों महानंदा नदी, कोसी नदी, बागमती नदी, बूढ़ी गण्डक नदी और गंडक जो नेपाल में उत्पन्न होती हैं, के लिए असुरक्षित हैं। कुछ दक्षिण बिहार के जिले भी सोन, पुनपुन और फल्गु नदियों से बाढ़ की चपेट में आते हैं। और इस समय तो ऐसा लग रहा है कि कानून व्यवस्था के मद्देनजर तो बिहार के सभी जिले बाढ़ में बहे जा रहे हैं। लग ऐसा रहा है कि नीतिश कुमार के माथे से टैैग न हटता तो शायद आज भी बिहार स्वर्णिम नजर आ रहा होता।

 

दूसरा पक्ष देखें तो शायद अब नीतिश कुमार और पूरे विपक्ष को 2024 में पूरा देश अपनी मुट्ठी में कैद नजर आ रहा होगा। और चरणबद्घ तरीके से जनता की आंखों से मोतियाबिंद का परदा हटाकर देश की गर्दिश में जाती स्थिति दिखाने की पूरी रणनीति तैयार हो चुकी है। कोई महंगाई पर प्रदर्शन का ऐसा खाका तैयार कर रहा है, मानो मतदाता को 2024 में मतदान करने से पहले हकीकत समझाने की जिम्मेदारी निभाने में कोई चूक न हो जाए। वरना महापाप हो जाएगा और जीवन निरर्थक हो जाएगा। दुनिया के नक्शे पर भारत कहीं नजर ही नहीं आएगा। कोशिश यही है कि देश बचाने के लिए मतदाता यह जान जाए कि फिलहाल देश कितने गहरे गड्ढे में डूब चुका है और फिर आंखों में पानी के छींटे डालकर अगली बार पहली फुरसत में यूपीए को ताज सौंप दे। और नीतिश कुमार के मन में लड्डू फूट ही रहे होंगे कि अगला प्राइम मिनिस्टर कौन…कानों में आवाज गूंज रही होगी नीतिश कुमार, नीतिश कुमार और कौन? आठ बार का सीएम नीतिश बाबू ही तो है देश में समाजवाद का सबसे फक्क चेहरा। दायां करवट बदले तो एनडीए सीएम बनाने पर उतारू रहता है और बायां करवट बदले तो राजद पैरों के पास सीएम की कुर्सी लिए बैठा नजर आता है। और लग तो ऐसा रहा है कि जब से नीतिश सीएम बने हैं, तब से करवट लेकर ही सो पाते हैं। सीधे लेटने में उन्हें यह खतरा हमेशा बना रहता है कि सीएम की कुर्सी हमेशा-हमेशा के लिए न छिन जाए। और ऐसा न हो कि बिना सीएम के पद के उनकी सांसें जवाब दे जाएं और घुटन संग पारी का ही अंत न हो जाए। अब चूंकि मिस्टर प्राइम मिनिस्टर बनने का ख्वाब एनडीए में तो नहीं देख सकते। मोदी का चेहरा सामने आते ही ख्वाब टुकड़े-टुकड़े होकर चकनाचूर हो जाता होगा। और लाइन में इतने खाटी भाजपाई चेहरे नजर आते होंगे कि अपना चेहरा अपनी नजर में ही धुंधला नजर आने लगता होगा। तो लोकतांत्रिक कैरियर का सर्वोच्च पद पाने के लिए चौड़ा रास्ता फिलहाल यूपीए गठबंधन ही है। जहां राहुल-सोनिया को छोड़ बाकी कोई भी मिस्टर या मिस प्राइम मिनिस्टर बनने का ख्वाब खुली आंखों से देख सकता है। और इसीलिए अब सबकी आंखें खुल गई हैं। मुफतखोरी के विषय पर विपक्ष के कद्दावर नेता ने आंकड़ों सहित आइना दिखा दिया है कि अडानी-अंबानियों को मुफतखोरी कराने में मिस्टर प्राइम मिनिस्टर कितने आगे हैं।

 

खैर वक्त बीतते देर नहीं लगती। और अभी तो मोदी ने दस साल ही पूरे नहीं किए हैं। अटल के छह साल और विपक्ष के और छिटपुट काल को छोड़ दें, तो बाकी कांग्रेस-यूपीए के करीब साठ साल में से करीब बयालीस-तैतालीस साल का हिसाब तो बाकी है। लोकतंत्र के गलियारे में कांग्रेस-यूपीए ने जितना राज भोगा है और जितना सत्ता के आइने से देश के साथ प्रयोग और नवाचार किए हैं। अब बाकी के साल उतने ही प्रयोग और नवाचार का हक तो भाजपा-एनडीए का भी बनता है, भाजपा के लोग ऐसा मन बनाकर निश्चिंत हैं। कांग्रेस-यूपीए काल को कोस-कोसकर कम से कम सत्ता में बने रहने का दावा तो भाजपा-एनडीए कुछ इसी तरह पेश करेंगे। और एओ ह्यूम की कांग्रेस ने यदि महात्मा गांधी के नेतृत्व में देश को आजादी दिलाई और आजादी की बाद की कांग्रेस ने सत्ता का स्वाद चखा। तो अब देश में सोई हुई देशभक्ति जगाने की जिम्मेदारी का निर्वहन करने का हक तो फिलहाल भाजपा ने अपने खाते में दर्ज करा ही लिया है। सो सफेद-काले और टैग-बैग का खेल चलता रहेगा और मतदाता इसी बीच में अपना फैसला सुना देगा। यह सामने आ जाएगा कि किसके सपने सपने ही रहेंगे और किसके हिस्से में हुकूमत आएगी। वक्त जाते देर नहीं लगती। देश की आजादी के 75 साल पूरे होने से मई 2024 तक का वक्त यूं ही रंगमंच पर हर किरदार का अभिनय देखते निकल जाएगा। और फिर वह सुबह भी सब देखेंगे, जब सारी तस्वीर साफ हो चुकी होगी। मतदाता बता देगा कि कौन सी फिल्म हिट रही और कौन सी फ्लॉप। फिर एक बार समीक्षा का दौर शुरू हो जाएगा…। यह बात तब ही समझ में आ पाएगी कि एक रात में टैग बदलने से क्या वास्तव में सफेद कमीज का रंग काला हो जाता है या फिर यह साबित करने की कोशिश मतदाता की आंखों में धूल नहीं झौंक सकती…।