Different Arguments For The Scepter ‘Sengol’: राजदंड ‘सेंगोल’ को लेकर विवाद के बीच अलग अलग दलील

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Different Arguments For The Scepter 'Sengol

Different Arguments For The Scepter ‘Sengol’: राजदंड ‘सेंगोल’ को लेकर विवाद के बीच अलग अलग दलील

संसद के नए भवन के उद्घाटन पर विपक्ष की तरफ से तीखे और कड़वे बयान सामने आ रहे हैं। राष्ट्रीय जनता दल ने तो संसद के नए भवन को ताबूत करार दिया।

राजदंड ‘सेंगोल’ को लेकर विवाद के बीच कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने रविवार को इस मुद्दे पर सरकार और विपक्ष दोनों की दलीलों को अपनी- अपनी जगह सही बताया और अतीत के इस प्रतीक को अपनाकर वर्तमान मूल्यों को मजबूत करने का आह्वान किया।थरूर ने ट्वीट किया, ” ‘सेंगोल’ विवाद पर मेरा अपना विचार है कि दोनों पक्षों की दलीलें अपनी-अपनी जगह सही हैं। सरकार का तर्क सही है कि राजदंड पवित्र संप्रभुता तथा धर्म के शासन को मूर्त रूप देकर परंपरा की निरंतरता को दर्शाता है। विपक्ष का तर्क सही है कि संविधान को लोगों के नाम पर अपनाया गया था और यह संप्रभुता भारत के लोगों में, संसद में उनके प्रतिनिधित्व के रूप में मौजूद है और यह दैवीय अधिकार के तहत सौंपा गया किसी राजा का विशेषाधिकार नहीं है।”

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सेंगोल विवाद पर मेरे नज़रिये से दोनों पक्षों के पास अच्छे तर्क हैं। सरकार का यह तर्क उचित है कि राज-दंड पवित्र संप्रभुता और धर्म के शासन को मूर्त रूप देते हुए परंपरा का चलता रहना दिखाता है। विपक्ष का यह तर्क उचित है कि संविधान देशवासियों के नाम पर बना है और संप्रभुता देशवासियों की संसद में देशवासियों के प्रतिनिधित्व में मौजूद है, और संविधान किसी राजा को राजसी विशेषाधिकार से मिलने वाला कोई दैवीय अधिकार नहीं है। सत्ता और विपक्ष के इन तर्कों में सामंजस्य बैठ सकता है यदि माउंटबेटन द्वारा नेहरू को राज-दंड सत्ता के हस्तांतरण के रूप में दिए जाने वाली विवादास्पद और ध्यान भटकाने वाली कहानी, जिसका कोई प्रमाण नहीं है, को हटा दिया जाए। हमें सीधा कहना चाहिए कि राजदंड सेंगोल शक्ति और प्रभुत्व का पारंपरिक चिन्ह है, जिसे लोकसभा में स्थापित करते हुए, भारत यह निश्चित कर रहा है कि संप्रभुता वहां लोकसभा में रहती है, न कि किसी राजा के पास। वर्तमान के मूल्यों की पुष्टि के लिए बीते कल के इस प्रतीक को हमें सम्मान देना चाहिए। 

उन्होंने कहा, ” अगर सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में माउंटबेटन द्वारा जवाहरलाल नेहरू को दिए गए राजदंड के बारे में अप्रासंगिक जानकारियों को छोड़ दिया जाए तो दोनों पक्षों के रुख के बीच सामंजस्य बैठाया जा सकता है। (राजदंड संबंधी) यह एक ऐसी कहानी है जिसका कोई सबूत नहीं है।”
पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं तिरुवनंतपुरम से सांसद ने कहा, ”आइए हम अतीत के इस प्रतीक को अपनाकर अपने वर्तमान मूल्यों को मजबूत करें।”

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ने भी ट्वीट करते हुए कहा कि अच्छा हुआ वो संसद के उद्घाटन का हिस्सा नहीं बने।हवन, बहुधार्मिक प्रार्थना और ‘सेनगोल’ के साथ नई संसद के उद्घाटन पर राकांपा प्रमुख शरद पवार के कहा उन्होंने सुबह घटना देखी। मुझे खुशी है कि मैं वहां नहीं गया। वहां जो कुछ हुआ उसे देखकर मैं चिंतित हूं। क्या हम देश को पीछे ले जा रहे हैं? क्या यह आयोजन सीमित लोगों के लिए ही था?

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