‘मोहन’ से अलग ‘मंदिर-मस्जिद’ मुद्दे पर ‘इंद्रेश’ का साफ संदेश…
कौशल किशोर चतुर्वेदी
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के मार्गदर्शक एवं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के केंद्रीय पदाधिकारी डॉ. इंद्रेश कुमार ने काशी, मथुरा और संभल जैसे विवादित धार्मिक स्थलों को हिंदुओं को सौंपने की अपील की है। उन्होंने कहा कि मुस्लिम समाज को पहल दिखाकर कुरान और हदीस की रोशनी में बड़े फैसले करने होंगे। उन्होंने विवादित स्थलों का बातचीत के जरिए हल निकालने की वकालत भी की। डॉ. मोहन भागवत की राय से अलग इंद्रेश कुमार ने मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के कार्यकर्ता सम्मेलन के बाद मंदिर-मस्जिद मुद्दे पर यह साफ संदेश दिया। दरअसल संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत के मंदिर-मस्जिद के नाम पर नेतागिरी न करने की नसीहत के बाद अब इंद्रेश कुमार का बयान इतिहास के उस घृणित दौर की भरपाई करने की वकालत कर रहा है, जिस दौर में बाबर-औरंगजेब जैसे घृणित शासकों ने भारत के भाईचारे की भावना को कट्टरता के साथ दफन करने का दुस्साहस किया था।
दरअसल जब भी मंदिर-मस्जिद की बात आती है, तब ही बाबर और औरंगजेब का घृणित चेहरा सामने आ जाता है। घृणित मुगल शासक औरंगजेब का क्रूर चेहरा सामने लाता है। मुहीउद्दीन मोहम्मद (3 नवम्बर 1618-3 मार्च 1707), जिसे आम तौर पर औरंगजेब या आलमगीर के नाम से जाना जाता था। वह भारत पर राज करने वाला छठा मुग़ल शासक था। उसका शासन 1658 से लेकर 1707 में उनकी मृत्यु तक चला। औरंगजेब ने भारतीय उपमहाद्वीप पर लगभग आधी सदी राज किया। वह अकबर के बाद सबसे अधिक समय तक शासन करने वाला मुग़ल शासक था। औरंगजेब के शासन में मुग़ल साम्राज्य अपने विस्तार के शिखर पर पहुँचा। उसने अपने जीवनकाल में दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में प्राप्त विजयों के माध्यम से मुगल साम्राज्य को साढ़े बारह लाख वर्ग मील में फैलाया। अपने जीवनकाल में, उसने पूरे दक्षिणी भारत में मुगल साम्राज्य का विस्तार करने का भरपूर प्रयास किया, पर मराठों के चलते पूरे भारत पर राज करने का उसका सपना चकनाचूर हो गया। और इस कुत्सित प्रयास में दक्षिण भारत ही उसकी कब्र बन गया था। और उसके शासन के बाद मुगल साम्राज्य का पतन प्रारंभ हो गया था।
औरंगजेब घृणित और क्रूरतम शासक क्यों था, इसकी चर्चा करते हैं। पिता, भाईयों से लेकर उसने हिन्दू-सिखों किसी को नहीं छोड़ा। भारतीय राजनीति में आज जो बार-बार मोहब्बत और नफरत की बात करते हैं, उन्हें औरंगजेब के शासनकाल में झांककर उसके द्वारा की गई गलतियों की भरपाई करते वक्त को देखने का साहस जुटाना ही पड़ेगा। यह औरंगजेब ही था, जिसने शासक बनने के लिए पिता को बंदी बनाकर मरने तक अमानुषिक व्यवहार शाहजहां के साथ किया था।शाहजहां 1657 में ऐसा बीमार हुआ कि लोगों को उसका अन्त निकट लग रहा था। ऐसे में दारा शिकोह, शाह शुजा और औरंगजेब के बीच में सत्ता को पाने का संघर्ष आरम्भ हुआ। औरंगजेब के चलते शाह शुजा जिसने स्वयं को बंगाल का राज्यपाल घोषित कर दिया था, अपने बचाव के लिए बर्मा के अरकन क्षेत्र में शरण लेने पर विवश हुआ और अंत में मारा गया। 1658 में औरंगजेब ने शाहजहाँ को आगरा किले में बन्दी बना लिया और स्वयं को शासक घोषित किया। दारा शिकोह को विश्वासघात के आरोप में फांसी दे दी गयी। तब उसे 1659 में दिल्ली में राजा का ताज पहनाया गया था। वास्तविक तौर पर शाहजहां बड़े बेटे दारा शिकोह को गद्दी सौंपना चाहता था और औरंगजेब को नापसंद करता था।औरंगजेब ने गैर मुस्लिमों पर जज़िया कर पुनः आरम्भ करवाया, जिसे अकबर ने समाप्त कर दिया था। औरंगजेब तथाकथित हिन्दू और सिख विरोधी काम करता था। खाने-पीने, वेश-भूषा और जीवन की अन्य सभी सुविधाओं में वह संयम बरतता था। अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए क़ुरआन की नकल बना कर के और टोपियाँ सीकर कुछ पैसा कमाने का समय निकाल लेता था। पर गैर मुस्लिमों के लिए वह अमानवीयता की हद पार करने पर उतारू रहता था। औरंगजेब ने इस्लाम धर्म के महत्व को स्वीकारते हुए ‘क़ुरआन’ को अपने शासन का आधार बनाया। सिक्कों पर कलमा खुदवाना, नौ-रोज का त्यौहार मनाना, भांग की खेती करना, गाना-बजाना आदि पर रोक लगा दी। 1663 ई. में सती प्रथा पर प्रतिबन्ध लगाया। तीर्थ कर पुनः लगाया। अपने शासन काल के 11 वर्ष में ‘झरोखा दर्शन’, 12वें वर्ष में ‘तुलादान प्रथा’ पर प्रतिबन्ध लगा दिया, 1668 ई. में हिन्दू त्यौहारों पर प्रतिबन्ध लगा दिया। 1699 ई. में उन्होंने हिन्दू मंदिरों को तोड़ने का आदेश दिया। बड़े-बड़े नगरों में औरंगजेब द्वारा ‘मुहतसिब’ (सार्वजनिक सदाचारा निरीक्षक) को नियुक्त किया गया। 1669 ई. में औरंगज़ेब ने बनारस के ‘विश्वनाथ मंदिर’ एवं मथुरा के ‘केशव राय मदिंर’ को तुड़वा दिया। उन्होंने शरीयत के विरुद्ध लिए जाने वाले लगभग 80 करों को समाप्त करवा दिया। इन्हीं में ‘आबवाब’ नाम से जाना जाने वाला ‘रायदारी’ परिवहन कर और ‘पानडारी’ चुंगी कर नामक स्थानीय कर भी शामिल थे।औरंगजेब के समय में ब्रज में आने वाले तीर्थ−यात्रियों पर भारी कर लगाया गया जजिया कर फिर से लगाया गया और हिन्दुओं को मुसलमान बनाया गया। उस समय के कवियों की रचनाओं में औरंगजेब के अत्याचारों का उल्लेख है। आज जिन मस्जिदों के भीतर मंदिर निकल रहे हैं। उनके पीछे औरंगजेब नामक वही क्रूर और घृणित मुगल शासक की निंदनीय सोच है। जिसको सुधारकर उस घृणा और क्रूरता को दफन कर इतिहास के उस काले अध्याय को खत्म किया जा सकता है। इसीलिए औरंगजेब को सबसे विवादास्पद मुगल शासक माना जाता है क्योंकि उसने गैर-मुसलमानों पर भेदभावपूर्ण नीतियां लागू कीं और उनके शासन में बड़ी संख्या में हिंदू मंदिरों को नष्ट कर दिया गया। औरंगजेब ने पूरे साम्राज्य पर शरियत आधारित फतवा-ए-आलमगीरी लागू किया और सिखों के गुरु तेग बहादुर को भी उसके आदेश के तहत मार दिया गया था, क्योंकि उन्होंने धर्म-परिवर्तन नहीं करने का अपना फैसला सुनाकर औरंगजेब को आइना दिखाया था।
इसीलिए इंद्रेश कुमार ने कहा है कि अब वक्त आ गया है कि मुस्लिम समाज अपनी जिम्मेदारी समझे और संवाद से काशी, मथुरा और सम्भल जैसे स्थलों पर विवाद खत्म करे। उन्होंने कहा कि धर्म के नाम पर कब्जा और हिंसा इस्लामिक उसूलों के खिलाफ है। उन्होंने मुस्लिम समुदाय से इन स्थलों को हिंदू समाज को सौंपने की अपील की, ताकि भारत सांप्रदायिक सौहार्द्र का वैश्विक उदाहरण बने। इंद्रेश कुमार ने कहा कि इस्लाम अमन और इंसाफ का मजहब है। विवादों का हल संवाद और सहमति से निकाला जाना चाहिए। तो वक्फ संशोधन विधेयक 2024 का समर्थन करते हुए इंद्रेश कुमार ने कहा कि यह कानून मुस्लिम समाज की भलाई और पारदर्शिता के लिए है। वक्फ संपत्तियों को समाज सेवा, शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए उपयोग में लाना चाहिए। इस कार्यक्रम का आगाज मुफ्ती नोमान ने कुरान की तिलावत से किया था। और कार्यक्रम का संचालन कर रहे मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के राष्ट्रीय संयोजक रजा हुसैन रिजवी ने कहा था कि अगर किसी मस्जिद में बुत है तो वहां नमाज नहीं होगी। हमें आगे आकर विवादित स्थलों को वापस कर उसका हल निकालना चाहिए।
तो संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत कोई बात बिना सोचे-समझे नहीं करते हैं। भागवत के बयान पर मंथन जारी है और अमृत निकलने की बारी है। आगे चलकर यह बात साफ हो जाएगी कि राजतंत्र में मुस्लिम शासकों की गलतियों की भरपाई अब लोकतांत्रिक भारत के जिम्मेदार मुसलमान करेंगे। और सरकारें भी उन्हें वोट बैंक की तरह इस्तेमाल नहीं कर पाएंगीं। और तब कोई भारतीय मुस्लिम परिवार अपने बच्चों का नाम बाबर, औरंगजेब, तैमूर और चंगेज खां रखने की मानसिकता नहीं रखेगा। और तब मंदिर-मस्जिद विवाद का विषय नहीं रहेंगे। और तब हिंदुस्तान विश्व में अमन और भाईचारे की मिसाल बनेगा। और तब हिंदू-मुस्लिम, सिख-ईसाई के अमन-चैन और भाईचारे वाला भारत लोकतंत्र की मिसाल पेश कर विश्व गुरु बनकर पूरी दुनिया में अपना परचम फहराएगा.
..।