Dilemma on Metro Train Project:अफसरों की मनमानी,जन प्रतिनिधियों की बेबसी,जनता की मजबूरी

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Dilemma on Metro Train Project:अफसरों की मनमानी,जन प्रतिनिधियों की बेबसी,जनता की मजबूरी

 

रमण रावल की खास रिपोर्ट 

मध्यप्रदेश के सबसे बड़े व तेज गति से विकसित शहर इंदौर में मेट्रो परियोजना को जमीन पर उतारने का मसला उलझता जा रहा है। इस बारे में मुख्यमंत्री मोहन यादव ने 22 जून को भोपाल में बैठक आयोजित कर चिंतन-मनन भी किया, लेकिन कोई पक्का हल सामने नहीं आया। वैसे इस बैठक में इंदौर मेट्रो को उज्जैन तक ले लाने की सैद्धांतिक स्वीकृति अवश्य दे दी गई है।

इस बारे में क्या शासन-प्रशासन हठधर्मी रवैया अपनायेगा या जन प्रतिनिधियों,विशेषज्ञों व जनता की राय का सम्मान करते हुए इसे क्रियान्वित किया जायेगा? नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय का गृह नगर होने व विभागीय मंत्री भी होने से उनकी दोहरी जिम्मेदारी व दोहरी दुविधा आन पड़ी है। वे अब जो भी फैसला लेंगे, वह व्यापक जनहित में ही लेंगे, जिसमें लागत मायने नहीं रखेगी, बल्कि शहर का सुकून और मेट्रो की उपयोगिता ही प्रमुख रहेगी-ऐसा भरोसा शहरवासी कर रहे हैं।

इंदौर के लिये अब एक बात तो तय हो चली है कि शासकीय मशीनरी यहां जब-तब प्रयोग करती रहती है। बीआरटीएस ऐसा ही ममला है,जो करीब दस साल से इंदौर में वाहन परिचालन को बाधित किये हुए हैं, लेकिन स्थानीय प्रशासन,शासन,जन प्रतिनिधि इसका निदान नहीं निकाल पा रहे। न्यायालय में भी यह प्रकरण विचाराधीन होने से दुविधा बरकरार है। इस वजह से वाहनों के बढ़ते दबाव से लगातार संकरे होते जा रहे मार्ग के बड़े हिस्से में केवल सिटी बस चलती हैं और शेष जगह में सारे वाहन। जबकि जनता ,जन प्रतिनिधि और विशेषज्ञ लगातार कहते रहे कि बीआरटीएस की रैलिंग हटाकर समूचे वाहन मिक्स लेन में चलाये जाने चाहिये। इसी बीआरटीएस पर करीब डेढ़ किलोमीटर हिस्से में एलिवेटेड ब्रिज बनना था, जो स्वीकृति के बाद भी नहीं बन पाया। इन पेचीदा मामलों का हल निकला नहीं था और मेट्रो परियोजना का पेंच आ खड़ा हुआ।

अब इतना तो तय है कि इसका मार्ग परिवर्तित किया जा सकता है। इसे एलिवेटेड ब्रिज की बजाय अंडर ग्राउंड किया जा सकता है, किंतु निरस्त नहीं किया जा सकता। इसकी कोई तुक भी नहीं । आज नहीं तो 50 साल बाद इसकी उपयोगिता सामने आयेगी, तब तो निर्माण भी दुष्कर होगा। वैसे कोलकाता,दिल्ली,मुंबई जैसे शहरों में यह तमाम बाधाओं के बीच बनी और उपयोगी भी साबत हुई। फिर भी इंदौर बेहद अलग परिस्थितियों,भोगोलिक स्थिति वाला शहर है। यहां शहर का विस्तार देश के अन्य शहरों की तुलना में काफी कम है। यदि अधिकतम दूरी की बात करें तो बायपास से विमानतल या गांधी नगर की दूरी और राजेंद्र नगर से लसूड़िया नाके की दूरी करीब 12 किलोमीटर है। ऐसे में विमान तल से गोलाकार में चलकर विमान तल पर खत्म होने वाले मेट्रो के मार्ग की दूरी 31.46 किलोमीटर हो रही है, जो अपेक्षाकृत कम ही है। फिर भी किसी के सपनों के शहर को संवारने की अभिलाषा ने इसे मेट्रो की सौगात तो फटाफट दे दी, लेकिन उसके समग्र स्वरूप पर व्यावहारिक मंथन नहीं हो पाया। जिसका नतीजा है,शहरवासियों की असहमति के चलते पुनर्विचार की प्रक्रिया।

जैसा कि कैलाश विजयवर्गीय ने कहा भी है कि कुछ धन की हानि हो तो चलेगा, लेकिन जनता को तकलीफ में नहीं डाला जा सकता। इसलिये यह चर्चा अब चौराहों का मसला बन गया है कि इंदौर में मेट्रो किस तरह से चले? कुछ सुझाव 17 जून की बैठक में भी आये हैं। एक माह बाद इस पर फैसला होगा कि कहां से और कैसे यह चले।

इस दरम्यान शहर के नियोजक,विषय विशेषज्ञ,मेट्रो के जिम्मेदार अधिकारी,जन प्रतिनिधि,प्रबुद्ध नागरिक, शासन और प्रशासन निम्न लिखित मुद्दों पर भी गौर कर सकता है-

मेट्रो को रोबोट चौराहे से आगे बढ़ाकर रिंग रोड पर ही राऊ होते हुए महू ले जाया जाये। वहां से पीथमपुर से विमानतल लाकर जोड़ दिया जाये।

दूसरे चरण में इसे उज्जैन ले जाया जाये, जहां अप्रैल-मई 2028 में सिंहस्थ भी है, जब देश भर से करोड़ों लोग उज्जैन पहुंचते हैं। वहां से देवास ले जाकर इंदौर के विजय नगर से जोड़़ दिया जाये। सीएम डॉ मोहन यादव द्वारा ली बैठक में इंदौर मेट्रो को उज्जैन तक ले लाने की सैद्धांतिक स्वीकृति अवश्य दे दी गई है।

चूंकि बरसोबरस से इंदौर,उज्जैन,देवास,महू के बीच हजारों लोग प्रतिदिन यात्रा करते हैं और उनके लिये अभी निजी वाहन के अलावा बसें ही प्रमुख साधन हैं। नाममात्र का यातायात रेल सेवा पर भी निर्भर करता है। ऐसे में यदि दो-तीन साल या 2028 तक भी उसे मेट्रो की सुविधा मिल जाती है तो यातायात का दबाव पूरी तरह से खत्म तो होगा ही, मेट्रो का परिचालन भी लाभकारी बन सकता है।

अब रही शहर के बीच के यातायात को व्यवस्थित करने की और परिवहन के पर्याप्त साधन मुहैया कराने की तो योजनाबद्ध तरीके से काम कर इसका निदान किया जा सकता है। जैसे-

सबसे पहले तो शहर के भीतरी हिस्से से ई रिक्शा को बाहर करना । उसे रिंग रोड,बायपास और पुराने ए.बी.रोड के बीच तक सीमित किया जा सकता है।साथ ही ये माल परिवहन भी करने लगे हैं, जिस पर रोक जरूरी है।

शहर के बीच बड़ी सिटी बस की बजाय 30-40 यात्री क्षमता वाली बसों का परिचालन किया जाये। साथ ही विभिन्न ट्रेवल्स की प्रांतीय व अंतर प्रांतीय बसें बीच शहर से संचालित हो रही हैं, वे भी अक्सर यातायात अवरोध का कारण बनती हैं। इन्हें सख्ती से रिंग रोड से बायपास के बीच में व शहर के अन्य कोनों में चार-छह स्थान निर्धारित कर देने होंगे। शहर कार्यालय ये अपने यात्रियों को ले जाने के लिये वैन जैसे छोटे वाहन चला सकते हैं,ऐसा कुछ किया जाना चाहिये।

शहर के सभी प्रमुख मार्गों पर बहुमंजिला पार्किंग की जगह उपलब्ध कराई जाये। यदि नगर निगम या स्थानीय प्रशासन को कुछ बड़ी निजी जगह खरीदकर इसकी व्यवस्था करना पड़े तो करना चाहिये।

गैर जरूरी बड़े फुटपाथ तत्काल प्रभाव से छोटे किये जाये। जैसे ग्रेटर कैलाश रोड पर 10 फीट तक चौड़ा फुटपाथ है,उसे 3 फीट तक किया जा सकता है।

सुबह 11 बजे से रात 10 बजे तक सभी प्रमुख मार्गों पर यातायात व क्षेत्रीय पुलिस की गश्त चले,जो सड़क पर निर्धारित एक लेन से अधिक वाहन खड़े हों तो उन्हे हटाया जाये,बजाय चालानी कार्रवाई करने के।

सभी प्रमुख चौराहों पर सुबह 11 से रात 10 बजे तक लेफ्ट टर्न को रिक्त रखा जाये, ताकि जाम न लगे।

बीआरटीएस से रैलिंग हटाकर मिक्स लेन किया जाये।

फुटपाथ पर लगने वाली दुकानों को सख्ती से हटाया जाये। साथ ही प्रत्येक प्रमुख बाजारों व अन्य स्थानों पर हॉकर्स जोन बनाये जाये। शहर में जितने भी फ्लाय ओवर व ओवर ब्रिज बन रहे हैं, उनके नीचे कहीं पार्किंग तो कहीं हॉकर्स जोन बनाये जायें।

रहवासी बस्तियों में जिन घरों के बाहर निजी चार पहिया वाहन खड़े रहते हैं,उन्हें मुहिम चलाकर घर के अंदर पार्किंग के लिये बताया जाये।

अगले 10 साल तक चार पहिया वाहन के खरीदार के लिये पार्किंग की जगह अनिवार्य की जाये, जो कि नगर निवेश नियम में उल्लेखित भी है। इसके बिना खरीदी पर रोक रहे।

जिन प्रमुख सड़कों पर आधे किलोमीटर से अधिक पर मार्ग के बीच डिवाइडर बने हों, वहां आवश्यकतानुसार बीच में सड़क पार करने का स्थान रहे या पैदल पुल बनाया जाये।

कुछ बड़े चौराहों पर दिल्ली की तर्ज पर गोलाकार टापू बनाकर यातायात को संचालित किया जाये, ताकि गैर जरूरी रूप से सिग्नल पर वाहन रोकना न पड़े। इससे समय भी बचेगा और प्रदूषण भी कम होगा।

यातायात नियंत्रण के लिये शहर के सभी महाविद्यालयों के लिये कैलेंडर बनाकर निश्चित संख्या में विद्यार्थियोँ को सात-सात दिन के लिये चौराहों पर तैनात किया जाये। इससे वे स्वयं भी नियमों का पालन करने लगेंगे और यातायात कर्मचारियों पर अतिरिक्त बोझ भी नही बढ़ेगा।

शहर के मध्य से प्रमुख बाजारों को बाहरी हिस्से में बेहतर सुविधायें देकर नये बाजार विकसित किये जायें। जैसे महारानी रोड से पहले आर.एन.टी मार्ग पर निजी भवन में दवा बाजार ले जाया गया, फिर पत्थर गोदाम रोड पर सियागंज का बड़ा हिस्सा ले जाया गया। लोहा मंडी जो आधी-अधूरी हटी है,उसे पूरी तरह से हटाया जाये।साथ ही शहर में रनगाड़े चलने को रोका जाये।

नये कपड़ा बाजार में जाने के लिये व्यापारियो को प्रोत्साहित किया जाये। नया हार्डवेयर बाजार बनाया जाये। शहर के बीच जो विद्यालय और महाविद्यालय संचालित हो रहे हैं,उन्हें चरणबद्ध रूप से बाहर रियायती दरों पर जमीन उपलब्ध कराकर ले जाया जाये।

शहर में कुछ मार्ग ऐसे चिन्हित किये जाये, जहां पर केवल दो पहिया या चार पहिया वाहन ही चलें। पुणे में ऐसा ही एक प्रयोग दशकों से चल रहा है,जहां दो पहिया वाहन नहीं निकल सकते।

इस तरह के अनेक व्यावहारिक बिंदुओं पर शहर हित को सर्वोपरि मानने वालों के साथ चर्चा कर तैयार किया जा सकता है। यह सही समय है जब शहर नियोजन की पचास वर्षीय योजना बनाकर क्रियान्वयन किया जा सकता है। यदि इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो इस शहर को भी कोलकाता,दिल्ली,मुंबई की दुर्गति को प्राप्त होने से रोका नहीं जा सकेगा।