विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर भाजपा की शनिवार को हुई एक बड़ी बैठक कई सवाल खड़े कर गई। मोर्चा-प्रकोष्ठों की इस बैठक में पार्टी के प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव को एक मोर्चा के प्रमुख से कहना पड़ गया कि आपका कार्यकाल खत्म होने वाला है और आप अब तक अपनी कार्यकारिणी नहीं बना सके। आखिर, आपने अब तक किया क्या? यह स्थिति किसी एक मोर्चा अथवा प्रकोष्ठ की नहीं, अधिकांश की थी।
मोर्चा प्रमुख ने जवाब में कहा कि कार्यकारिणी के लिए नाम ही नहीं आए। उन्होंने यह भी कहा कि मैं ज्यादा कुछ कहूंगा तो अनुशासनहीनता के दायरे में आ जाएगा। भाजपा के अंदर यह पीड़ा अन्य कई की भी है। दरअसल, भाजपा नेतृत्व ने पीढ़ी परिवर्तन योजना के तहत युवाओं को पद तो दे दिए लेकिन इनको न बड़े नेताओं का सहयोग मिला, न इनकी कोई छवि बनी और न ही ये अपनी टीम बना पाए। सवाल यह है कि क्या भाजपा विधानसभा चुनाव की तैयारी इसी तरह कर रही है? बहरहाल चर्चा के बाद इन्हें कार्यकारिणी बनाने के लिए 10 दिन का समय दे दिया गया। भले आनन फानन अब टीमें गठित हो जाएं लेकिन भाजपा की तैयारी पर सवाल तो उठ चुके। कांग्रेस में यह होता, कोई बात नहीं क्योंकि वहां चुनाव आने पर ही सब होता है। पर भाजपा में यह कैसे संभव?
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कांग्रेस के और पदाधिकारियों की छुट्टी संभव….
नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ने के बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों की तैयारी तेज कर दी है। मंजुल त्रिपाठी की एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष पद से छुट्टी कर उन्होंने संकेत दिए हैं कि जो भी पदाधिकारी चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं, उन्हें संगठन के दायित्व से मुक्त हो जाना चाहिए। शुरूआत मंजुल के स्थान पर आशुतोष चौकसे को एनएसयूआई का प्रदेश प्रमुख बनाने के साथ हुई। मंजुल त्रिपाठी विधानसभा का चुनाव लड़ना चाहते हैं। कमलनाथ के इस एक निर्णय से उन पदाधिकारियों के हाथ-पांव फूल गए हैं जो चुनाव लड़ना चाहते हैं।
उन्हें लगने लगा है कि अब उनका पद भी खतरे में है। कमलनाथ की रणनीति चुनाव लड़ने के इच्छुक दावेदारों को पूरी तरह से फ्री करने की है ताकि वे अभी से पूरा समय अपने क्षेत्र में दे सकें। खबर है कि अब बारी कांग्रेस के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्षों एवं अन्य प्रमुख पदाधिकारियों की है। इन्हें कभी भी पदों से मुक्त किया जा सकता है। जीतू पटवारी जैसे नेता कई पद धारण किए हुए हैं। वे विधायक के साथ कार्यकारी अध्यक्ष और प्रदेश कांग्रेस मीडिया के प्रभारी भी हैं। कमलनाथ ऐसे सभी नेताओं को हटाकर संगठन में अन्य नेताओं को जवाबदारी सौंप सकते हैं। टिकट भी जीतने वालों को ही मिलेगा।
‘तू डाल-डाल, मैं पात-पात’ की तर्ज पर खेल….
भाजपा और कांग्रेस के बीच ओबीसी के वोट बैंक को लेकर ‘तू डाल-डाल, मैं पात-पात’ का खेल शुरू है। कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार आने से पहले सब ठहरा था। अचानक कमलनाथ ने ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने का ऐलान कर दिया। बस कांग्रेस और भाजपा के नेता आमने-सामने आ गए। दोनों खुद को ओबीसी का सबसे बड़ा हितैषी बताने की होड़ में जुट गए। पंचायत चुनावों में 27 फीसदी आरक्षण का मसला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया। कोर्ट की फटकार के बाद आनन-फानन सरकार के पिछड़ा वर्ग आयोग ने सर्वे रिपोर्ट जारी की।
इसमें कहा गया कि मप्र में पिछड़ा वर्ग की आबादी 48 फीसदी है। इस आधार पर प्रदेश सरकार के मंत्री भूपेंद्र सिंह ने ओबीसी को 27 की बजाय 35 फीसदी आरक्षण की मांग उठा दी। कांग्रेस भी कहां पीछे रहने वाली थी। पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव ने कहा कि जब आयोग के सर्वे में पिछड़ा वर्ग की आबादी 48 फीसदी है तो 35 क्यों, ओबीसी को 48 फीसदी आरक्षण मिलना चाहिए। नेता जानते हैं कि अभी 14 फीसदी आरक्षण मिल रहा है। 35 और 48 छोड़िए, सुप्रीम कोर्ट की ओर से 27 फीसदी आरक्षण भी मिलना मुश्किल है। पर क्या करें, राजनीति चमकानी है। इसलिए चौंसर पर पांसें फेंके जा रहे हैं।
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‘बड़े बे-आबरू होकर तेरे कूचे से निकले’….
पुरानी कहावत है, ‘चौबे, छब्बे बनने निकले और दुबे बनकर लौटे।’ खरगोन दंगों के बाद पहुंचे कांग्रेस नेताओं के प्रतिनिधि मंडल का हाल इसी तर्ज पर ‘बड़े बे-आबरू होकर तेरे कूचे से निकले’ जैसा हुआ। एक ही दिन कमलनाथ द्वारा बनाए गए कांग्रेस के दो प्रतिनिधि मंडल अलग-अलग घटनाओं का जायजा लेने निकले। नेता प्रतिपक्ष डॉ गोविंद सिंह के नेतृत्व में पहला जत्था दो आदिवासियों की पीट-पीट कर की गई हत्या की जांच करने सिवनी गया और दूसरा पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा के नेतृत्व में खरगोन दंगा प्रभावितों से बात कर रिपोर्ट तैयार करने।
सिवनी के प्रतिनिधि मंडल का काम शांति से निबटा लेकिन खरगोन में कांग्रेस की छीछालेदर हो गई। सज्जन वर्मा के साथ टीम में शामिल पूर्व मंत्री विजयलक्ष्मी सार्धा एवं मुकेश नायक आदि को खरगोन के लोगों ने खदेड़ दिया। खरगोन में एक वर्ग ने कांग्रेस नेताओं को घेर लिया और दंगों के लिए कांग्रेस को ही दोषी ठहरा हंगामा करने लगे। सज्जन एवं विजयलक्ष्मी की वहां के लोगों से तीखी बहस हुई। तगड़े विरोध के बीच नेताओं को बिना किसी से बात किए वापस आना पड़ा। बाद में मुकेश नायक ने इसके लिए कांग्रेस के ही एक वरिष्ठ नेता को दोषी ठहरा दिया। इसे लेकर कांग्रेस, भाजपा नेताओं के निशाने पर है। 0
आप की नाव पर सवार होंगे भाजपा के ये विधायक!….
पंजाब में जीत से उत्साहित आम आदमी पार्टी (आप) की नजर अब मध्य प्रदेश पर है। यहां अगले साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। अन्य प्रदेशों की तरह यहां भी ‘आप’ को एक अदद चेहरे की तलाश है। उसे मालूम है कि पिछला चुनाव वह नर्मदा बचाओ आंदोलन के एक नेता आलोक अग्रवाल की अगुवाई में लड़ी थी और लगभग हर सीट पर उसकी जमानत जब्त हो गई थी। मप्र का राजनीतिक मिजाज दो दलीय है। यहां तीसरा दल बनाने वाले अर्जुन सिंह और उमा भारती जैसे जमीनी आधार वाले दिग्गज नहीं सफल हुए, ऐसे में ‘आप’ की दाल कितनी गलेगी, कहना कठिन है।
बहरहाल, ‘आप’ की नजर विंध्य अंचल के एक भाजपा विधायक पर है जो पार्टी से असंतुष्ट चल रहे हैं। उनकी कांग्रेस के साथ नजदीकियां बढ़ रही थीं, अचानक उनके आप के संपर्क में आने की खबर है। ये विधायक पहले भी कई पार्टियों में रह चुके हैं। इनका अपने क्षेत्र में तो असर है लेकिन प्रदेश स्तर पर ये अब तक कोई करिश्मा नहीं दिखा सके हैं। ‘आप’ की नाव पर सवार होकर वे कुछ कर पाते हैं या नहीं, इस पर सबकी नजर होगी। इससे पहले यह देखना होगा कि ‘आप’ के साथ उनकी पटरी बैठ पाती है या नहीं और उनके साथ कुछ अन्य नेता भी आते हैं या नहीं?