भाजपा में यह काम्पटीशन कितना शुभ-अशुभ….

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा के धुंआधार दौरों को राजनीतिक पंडित अपने-अपने नजरिए से परिभाषित कर रहे हैं। मुख्यमंत्री चौहान कितने दौरे करते हैं, कितनी बैठकें लेते हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। वे दिन-रात लगातार मेहनत के लिए जाने जाते हैं। उनसे काम्पटीशन करते नजर आ रहे हैं प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा। वीडी ने जबसे दायित्व संभाला तब से ही लगातार सक्रिय हैं।

दौरे कर बैठकें, सभाएं ले रहे हैं, कार्यकर्ताओं के सतत संपर्क में हैं और लगभग हर मसले पर प्रतिक्रिया दे रहे हैं। दौरों और सक्रियता के मामले में उन्होंने प्रभात झा की याद ताजा कर दी है। झा इसी तरह दौरों और कार्यकर्ताओं से सतत संवाद के लिए जाने जाते थे। प्रभात झा का नाम मुख्यमंत्री के दावेदार के तौर पर उभरने लगा था, वीडी शर्मा को लेकर भी ऐसे ही कयास लग रहे हैं। चर्चा चल पड़ी है कि शिवराज-वीडी के बीच यह काम्पटीशन भाजपा के लिए शुभ है या अशुभ। एक तर्क है कि पार्टी के दो शीर्ष नेताओं की सक्रियता भाजपा के लिए कभी अशुभ नहीं हो सकती, पार्टी को लाभ ही होगा। दूसरा तर्क व्यक्तिगत नफा-नुकसान को लेकर है, इससे किसी का फायदा और किसी का नुकसान हो सकता है। जैसा प्रभात झा के साथ हुआ।

 शराबबंदी को लेकर आंदोलन कर पाएंगी उमा?….
– प्रदेश सरकार के रुख और खुद के बदलते बयानों से शराबबंदी के मसले पर भाजपा की फायरब्रांड नेत्री उमा भारती की किरकिरी हो रही है। सवाल उठ रहा है कि क्या उमा भाजपा सरकार के रहते शराबबंदी को लेकर आंदोलन कर पाएंगी? भाजपा की दो साध्वियों के अलग-अलग सुरों से शराबबंदी विपक्ष का मुद्दा बन गया है। उमा प्रारंभ से शराबबंदी की बात कर रही हैं। दूसरी तरफ भाजपा सांसद और दूसरी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने कह दिया कि शराब कम मात्रा मे लेने पर औषधि का काम करती है, लेकिन ज्यादा लेने पर जहर हो जाती है।

बस क्या था, कांग्रेस को बैठे ठाले मुद्दा मिल गया। पहले कांग्रेस उमा पर शराबबंदी को लेकर अभियान चलाने और निर्धारित तारीख देकर गायब हो जाने के कारण हमलावर थी। इंदौर में युकां ने इसे लेकर पोस्टर तक लगा डाले। उमा ने अभियान के लिए फिर नई तारीख 14 फरवरी घोषित की है। कांग्रेस का कहना है कि उमा शराबबंदी की बात करती हैं दूसरी तरफ भाजपा की ही सरकार शराब सस्ती कर नई दुकानें खोल रही है। साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के बयान पर भी कांग्रेस ने चुटकी ली। कहा कि प्रज्ञा कह रही हैं कि ‘थोड़ी थोड़ी पिया करो’। बहरहाल, इस मसले पर उमा बैकफुट पर है और कांग्रेस हमलावर।

राव फिर छेड़ बैठे मुरली की बेसुरी तान….
– भाजपा के प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव की मुरली की तान एक बार फिर सुर्खियों में है। यह बजी और कई बार की तरह बेसुरी भी लगी। इस बार उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की तुलना क्रिकेट खिलाड़ी विराट कोहली से कर डाली। हालांकि राव का तात्पर्य विराट की सफलता से शिवराज की सफलता को जोड़ना था लेकिन इसके लिए समय का चयन ठीक नहीं था। इधर विराट कोहली ने टेस्ट क्रिकेट की कप्तानी छोड़ने का एलान किया, उधर मुरलीधर ने तुलना कर डाली।

कांग्रेस ने इसे लपका और कह दिया कि अब तो भाजपा के प्रदेश प्रभारी ही संकेत दे रहे हैं कि शिवराज सिंह की कप्तानी जाने वाली है। हालांकि भाजपा में वही समझा जा रहा है जो मुरलीधर कहना चाह रहे थे लेकिन कई मुरली की इस तान के मजे भी ले रहे हैं। इससे पहले भी उनकी मुरली ऐसे बेसुरे सुर निकाल चुकी है। जैसे, मुख्यमंत्री और मंत्री बनने की इच्छा रखने और असंतुष्ट होने वाले सांसदों, विधायकों को वे नालायक कह बैठे थे। एक बार कह दिया था कि भाजपा की एक जेब में ब्राह्मण रहते हैं और दूसरी में बनिया। उनके इस बयान की भी खासी आलोचना हुई थी। मुरलीधर के पास राजनीतिक अनुभव की कमी है, इसलिए उन्हें बोलने में अतिरिक्त सतर्कता व सावधानी बरतना चाहिए।

कमलनाथ जी, आपको आत्ममंथन की जरूरत….
– प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष एवं नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ इन दिनों खासे चर्चा में हैं। ज्यादा चर्चा उनके द्वारा पार्टी के जिलाध्यक्षों-प्रभारियों की बैठक में कही बात को लेकर है। उन्होंने कहा कि यह अग्निपरीक्षा का समय है, यदि अब भी कड़ी मेहनत न की गई तो मप्र में भी कांग्रेस उप्र की राह पर चली जाएगी। कांग्रेस के ही एक नेता का सवाल था, इसके लिए बड़ा दोषी कौन? क्या कमलनाथ को खुद आत्ममंथन नहीं करना चाहिए? जिनसे वे कड़ी मेहनत की बात कर रहे हैं, उनकी बदौलत तो कांग्रेस सत्ता में आ गई थी लेकिन 15 माह में ही बाहर हो गई, इसके लिए दोषी कौन है? जवाब ढूंढ़ेंगे, नाम कमलनाथ ही आएगा। वे ही मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष दोनों थे। न वे पार्टी संभाल पाए, न नेता-विधायक, न ही सरकार। कांग्रेस कार्यकर्ता हमेशा की तरह अब भी मैदान में भाजपा का मुकाबला कर रहा है लेकिन कमलनाथ खुद कहां हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पीड़ित किसानों के घर और खेत लगातार जा रहे हैं। कमलनाथ कहां गए, सिर्फ छिंदवाड़ा, वह भी प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा के व्यंग के बाद। कांग्रेस का मुखिया होने के नाते क्या उन्हें छिंदवाड़ा की बजाय प्रदेश के अन्य हिस्सों में नहीं जाना चाहिए था? इसलिए कमलनाथ जी, आपको अपने अंदर झांकने की जरूरत है।

कमलनाथ-दिग्विजय के बीच सब बेहतर नहीं….
– यह सवाल दिग्विजय सिंह द्वारा मुख्यमंत्री निवास के सामने धरना देने और इसकी जानकारी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ को न होने से पैदा हुआ है। राजनीतिक शिष्टाचार कहता है कि यदि दिग्विजय जैसे वरिष्ठ नेता किसी मसले को लेकर मुख्यमंत्री निवास के सामने धरना देने वाले हैं तो कम से कम इसकी जानकारी पहले से पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष को दी जाना चाहिए। कमलनाथ के बयान को आधार माने तो उन्हें इस धरने की जानकारी ही नहीं थी। उन्होंने मीडिया को बताया कि उन्हें स्टेट हैंगर में मुख्यमंत्री चौहान ने बताया कि दिग्विजय सिंह सीएम हाउस के सामने धरना देने वाले हैं। जवाब में कमलनाथ ने कहा कि मैं जाकर उनसे बात करता हूं। साफ है कि मप्र में होने के बावजूद कमलनाथ को इस बारे में कुछ पता नहीं था। आखिर क्यों? विंडबना देखिए जब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी, तब कहा जाता था कि सरकार मुख्यमंत्री कमलनाथ नहीं, दिग्विजय चला रहे हैं। वे जो चाहते हैं, वही होता है। यह आरोप भी लगे कि उनके कारण ही कांग्रेस सरकार गिरी। अब दिग्विजय धरना दे रहे हैं और इसकी जानकारी कमलनाथ को मुख्यमंत्री से मिल रही है। तालमेल में इतना फासला, इसीलिए कमलनाथ और दिग्विजय के बीच दूरी की खबर आग की तरह फैली है।