कोर ग्रुप की बैठक के बाद उड़ी कई की नींद….
दिल्ली में हुई भाजपा कोर ग्रुप की बैठक ने सरकार में शामिल कई मंत्रियों की नींद उड़ा रखी है। कई तरह की अटकलें राजनीतिक फिजा में तैर रही हैं। एक, परफारमेंस और पसंद-नापसंद की वजह से कम से कम पांच मौजूदा मंत्रियों पर गाज गिरने वाली है। इनमें दो मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे से, दो नए और एक मुख्यमंत्री का समर्थक बताया जा रहा है। दो, उप्र की तर्ज पर मप्र में भी दो उप मुख्यमंत्री बनाए जाने वाले हैं।
इनमें पहला आदिवासी वर्ग से और दूसरा सवर्ण होगा। तीन, मंत्रिमंडल में खाली चार पदों को भरा जाएगा। जो मंत्री बनेंगे, उनमें महाकौशल, मालवा, निमाड़ और मध्यभारत अंचल से एक-एक विधायक को मौका मिलेगा। हैं न सभी की नींद उड़ाने वाली अटकलें। अब नींद उड़े या आए, लेकिन भाजपा के अंदर चुनावों को ध्यान में रखकर कोई न कोई खिचड़ी तो पक रही है। इसीलिए कुछ नेता और मंत्री देवी-देवताओं के दरों पर माथा टेकने लगे हैं। कुछ तांत्रिक क्रियाओं में लग गए हैं और कुछ ने अपने आकाओं के यहां दस्तक तेज कर दी है। कोई मंत्री पद बचाने और मंत्री बनने की जोड़तोड़ में लगा है तो कोई उप मुख्यमंत्री का पद चाहता है। भाजपा नेतृत्व किस योजना को अमलीजामा पहनाता है, इस पर सभी की नजर है।
कांग्रेस में फिर दबे पांव ‘दिग्विजय रिटर्न’….
कांग्रेस के बड़े नेताओं में कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, सुरेश पचौरी, ज्योतिरादित्य सिंधिया के बाद अजय सिंह राहुल और अरुण यादव की गिनती होती थी। इनमें ज्योतिरादित्य कांग्रेस से बाहर हैं। लगातार चुनाव हारने के कारण सुरेश पचौरी और अजय सिंह बैकफुट पर हैं। लगभग यही स्थिति अरुण यादव की है। दिग्विजय सिंह ही ऐसे हैं जो भोपाल से चुनाव हारने के बावजूद अपनी धमक बनाए हुए हैं। इसकी वजह इस उम्र में भी उनका सबसे ज्यादा सक्रिय रहना है। कमलनाथ सरकार गिरने के बाद कुछ समय के लिए उनकी पूछपरख कम होती दिखी थी।
कमलनाथ से उनकी दूरी बढ़ने की भी खबरें थी लेकिन अब फिर दबे पांव दिग्विजय रिटर्न की चर्चा जोरों पर है। कांग्रेस आलाकमान उन्हें तरजीह देने लगा है। उन्हें कई जवाबदारियों मिली हैं। उनकी धमक की ही बदौलत एनएयूआई के बाद महिला कांग्रेस की प्रमुख उनकी पसंद की विभा पटेल बनीं और अब नेता प्रतिपक्ष का पद भी उनके समर्थक डॉ गोविंद सिंह के पास चला गया। कांग्रेस कार्यकर्ताओं की प्रताड़ना का मुद्दा उठाकर वे पार्टी में सबकी पसंद बन रहे हैं। साफ है कि अगले चुनाव में भी दिग्विजय सिंह मुख्य रणनीतिकार के तौर पर सामने होंगे। दिलचस्प बात यह है कि भाजपा भी यही चाहती है।
भाजपा के लिए जयस-सपाक्स अब भी खतरा….
भाजपा में दूसरे नंबर के नेता केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के दौरे के साथ साफ होने लगा है कि भाजपा को जयस और सपाक्स का विकल्प ढूंढ़ने की जरूरत महसूस होने लगी है। भाजपा नेतृत्व को इसका अंदाजा हालांकि विधानसभा चुनाव के बाद तत्काल लग गया था, इसलिए तभी से इस दिशा में काम शुरू हो गया था। सपाक्स की काट के लिए वीडी शर्मा को भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था और जयस को कमजोर करने आदिवासी नेता फग्गन सिंह कुलस्ते को फिर केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह दी गई थी।
आदिवासियों पर फोकस के तहत ही आदिवासियों के एक बड़े कार्यक्रम में अमित शाह पहले जबलपुर आए थे और अब भोपाल का दौरा भी इसी योजना का हिस्सा था। उनके दौरे के बाद दिल्ली में भाजपा कोर ग्रुप की बैठक के एजेंडे में भी यह मुद्दा था। विधानसभा चुनाव में आदिवासियों और ब्राह्मणों की बेरुखी की वजह से भाजपा को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा था। जयस के कारण आदिवासी वोट फिर कांग्रेस की झोली में चला गया था। नतीजा, भाजपा को सत्ता गंवानी पड़ गई थी। खबर यहां तक है कि भाजपा के आदिवासी सांसद सुमेर सिंह सोलंकी को पार्टी नेतृत्व कोई बड़ी जवाबदारी दे सकता है। वीडी शर्मा के दायित्व को लेकर भी अटकलों का बाजार गर्म है।
ज्योतिरादित्य पर फोकस रख कांग्रेस की रणनीति….
कांग्रेस का फोकस विंध्य के बाद चंबल-ग्वालियर अंचल पर ज्यादा है। विधानसभा के पिछले चुनाव में विंध्य में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हुआ था तो चंबल-ग्वालियर में पार्टी बम बम थी। ज्योतिरादित्य के कांग्रेस छोड़ने के बाद क्षेत्र में पार्टी को खड़ा रखना प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है। इसलिए पूरी योजना ज्योतिरादित्य को केंद्र में रखकर बन रही है। कमलनाथ ने नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ा तो अंचल के अजेय कद्दावर नेता डॉ गोविंद सिंह को जवाबदारी सौंपी गई। नतीजा यह हुआ कि चौधरी राकेश सिंह पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह से मिलने उनके घर पहुंच गए।
इनके बीच छत्तीस का आंकड़ा माना जाता है। अजय के विरोध की वजह से चौधरी कांग्रेस में आने के बावजूद मुख्य धारा में नहीं आ पा रहे थे। दिग्विजय सिंह कांग्रेस कार्यकर्ताओं की प्रताड़ना के खिलाफ आभियान की शुरूआत इसी अंचल के दतिया से करने वाले हैं। दतिया प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा का विधानसभा क्षेत्र भी है। दलित नेता फूल सिंह बरैया ने अजीब घोषणा की है। उन्होंने कहा है कि भाजपा को अगले चुनाव में 50 से ज्यादा सीटें नहीं मिलेंगी और यदि ऐसा न हुआ तो वे खुद अपने मुंह में कालिख पोत लेंगे। बरैया भी चंबल-ग्वालियर अचंल के ही चर्चित दलित नेता है।
ताकत दिखाने एकजुट होने लगा ब्रह्म समाज….
सपाक्स की सक्रियता और सरकार के कुछ निर्णयों की वजह से विधानसभा के पिछले चुनाव में ब्राह्मणों का भाजपा से मोहभंग था। पार्टी को इसका सबसे ज्यादा नुकसान चंबल-ग्वालियर अंचल में उठाना पड़ा था। लिहाजा, आदिवासियों, दलितों आदि की तर्ज पर ब्रह्म समाज फिर अपनी ताकत दिखाने की तैयारी में है। परशुराम जयंती के अवसर पर ब्राह्मणों के बड़े आयोजन हो रहे हैं। भोपाल के गुफा मंदिर में बड़ा कार्यक्रम है ही, प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में भी इस जयंती के जरिए ब्राह्मण समाज एकजुटता का संदेश देने जा रहा है। इसके लिए अलग – अलग तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। बुंदेलखंड अंचल के कुछ हिस्से में भी ब्राह्मण समाज भाजपा से नाराज हुआ था। प्रथ्वीपुर विधानसभा सीट के उप चुनाव के समय ऐसे संकेत मिले थे। तब अंचल के कद्दावर नेता पंडित गोपाल भार्गव को ब्राह्मणों को साधने की जवाबदारी सौंपी गई थी। भार्गव अभियान में सफल रहे थे और नतीजा भाजपा के पक्ष में आया था। भाजपा इस बार हालांकि सतर्क है, फिर भी ब्राह्मणों का वोट अगले चुनाव में किस ओर झुकता है, कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी लेकिन इतना तय है कि यह समाज पूरी ताकत से लामबंद हो रहा है। कांग्रेस की भी इस पर नजर है।