कर्मचारियों को शिवराज की यह सौगात संभव….

 मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान विधानसभा चुनाव से पहले सरकारी कर्मचारियों को लुभाने के लिए एक बड़ी घोषणा की थी, सेवानविृत्ति आयु 60 से बढ़ाकर 62 कर दी गई थी। विधानसभा चुनाव से पहले एक बार फिर सरकारी कर्मचारियों की बारी है। मुख्यमंत्री फिर एक तोहफा देने की तैयारी में हैं। इसके लिए पड़ोस की राजस्थान सरकार के निर्णय से दबाव बन रहा है। वहां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कर्मचारियों के लिए पेंशन की पुरानी व्यवस्था लागू करने की घोषणा कर दी है। मप्र में भी यह मांग उठने लगी है।

पहले भाजपा के विधायक नारायण त्रिपाठी ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन बहाल करने की मांग की। इसके बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यख कमलनाथ ने एक ट्वीट कर आर्थिक स्थिति का हवाला देकर यह मांग की। कांग्रेस विधायक आलोक चतुर्वेदी ने मुख्यमंत्री को पत्र लिख दिया। अब कर्मचारी संगठनों ने इसे लेकर सड़क पर उतरने का एलान कर दिया है। सरकारी सूत्रों पर भरोसा करें तो मुख्यमंत्री चौहान ने यह मांग पूरी करने का मन बना लिया है। इसकी घोषणा कभी भी हो सकती है। चुनाव वाले उप्र में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यह हिम्मत नहीं जुटा पाए, लेकिन अखिलेश यादव यह वादा कर रहे हैं।

पिछड़ा वर्ग की लामबंदी से मुश्किल में भाजपा….

– प्रदेश के छतरपुर जिले की दो घटनाओं से पिछड़ा वर्ग भाजपा खासकर प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा से नाराज है। पहली घटना कुछ माह पहले की है, जब करणी सेना के एक प्रदर्शन में यादव समाज को गालियां देते हुए नारे लगाए गए थे। प्रदर्शन में भाजपा के जिलाध्यक्ष भी शामिल थे। इसके खिलाफ यादव समाज का गुस्सा फूटा। समाज के साथ अन्य पिछड़े वर्गों ने प्रदर्शन किया और गाली देने वालों के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर प्रदर्शन किया। दूसरा मामला पिछड़ा वर्ग का ब्राह्मणों के साथ विवाद का है।

खजुराहो में एक ब्राह्मण के खिलाफ एक ओबीसी महिला ने रेप का प्रकरण दर्ज कराया। जवाब में इस महिला के पति के खिलाफ छतरपुर में यही प्रकरण दर्ज हो गया। इससे नाराजगी बढ़ गई। ओबीसी महासभा ने बड़ा प्रदर्शन कर ज्ञापन दिया। वीडी के खिलाफ आपत्तिजनक भाषा का उपयोग कर उन्हें इसके लिए जवाबदार ठहराया गया। जवाब में भाजपा पिछड़ा वर्ग मोर्चा मैदान में कूदा और उसने भी प्रदर्शन कर ज्ञापन सौंपा। छतरपुर जिले में आमतौर पर पिछड़ा वर्ग भाजपा के साथ रहा है। लिहाजा इस वर्ग की नाराजगी भाजपा के सामने मुश्किल खड़ी कर सकती है। वीडी खजुराहो से सांसद भी हैं। इस नाराजगी का असर उन पर भी पड़ सकता है।

नेतृत्व को पसंद नहीं साध्वी उमा के ये बोल….

– कभी फायरब्रांड नेत्री के तौर पर चर्चित रहीं भाजपा की साध्वी उमा भारती इन दिनों राजनीति के नेपथ्य में हैं। उनके बयानों से जाहिर होता है कि वे सक्रिय राजनीति में वापसी को व्याकुल हैं लेकिन जो वे बोल रही हैं, भाजपा नेतृत्व को पसंद नहीं आ रहा। जैसे, छतरपुर जिले में उन्होंने कहा कि ‘सरकार वे बनाती हैं लेकिन चलाता कोई और है’। इसके साथ उन्होंने लोकसभा का अगला चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी।

वे यहीं नहीं रुकीं उन्होंने कहा कि ‘न उन्हें ललितपुर-खजुराहो रेल लाइन के उद्घाटन के अवसर पर बुलाया गया था और न ही केन-बेतवा लिंक योजना के कार्यक्रम में बुलाया जाएगा।’ जबकि इन दोनों परियोजनाओं के लिए उन्होंने ही प्रयास किए थे। खबर है कि उमा के इस तरह के बोल भाजपा नेतृत्व को पसंद नहीं आ रहे हैं। हालांकि उमा के बयानों से उनकी पीड़ा झलकती है। कई बार उन्होंने मप्र में शराबबंदी को लेकर अभियान चलाने की घोषणा की, लेकिन बाद में किसी न किसी कारण पलट गईं। इससे उमा की राजनीतिक साख को बट्टा लगा है। उमा यदि फिर चुनाव लड़कर सक्रिय राजनीति में वापसी चाहती हैं तो पहले उन्हें भाजपा नेतृत्व का भरोसा जीतना होगा। नरेंद्र मोदी, शिवराज सिंह चौहान की तारीफ कर देने मात्र से काम चलने वाला नहीं है।

 क्या ‘डैमेज कंट्रोल’ में जुट गए कमलनाथ….

– कांग्रेस के बड़े नेताओं में तनातनी की खबरों के बीच कमलनाथ ने ‘डैमेज कंट्रोल’ के प्रयास शुरू कर दिए हैं। पहले उन्होंने वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह के साथ अपने गिले-शिकवे दूर किए, इसके बाद अजय सिंह एवं अरुण यादव की ओर रुख किया। अजय सिंह से मतभेद दूर करने की कोशिश उन्होंने रीवा के दौरे के दौरान की। वहां पार्टी कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह उनके राजनीतिक गुरू थे और अजय सिंह उनके परिवार के सदस्य हैं। उन्होंने कहा कि वे पहली बार अर्जुन सिंह की मदद से ही केंद्र में मंत्री बने थे।

अरुण तो कमलनाथ से और ज्यादा नाराज चल रहे हैं। लिहाजा, उन्हें संतुष्ट करने के लिए कमलनाथ ने दिग्विजय की मदद ली। दिग्विजय खरगोन जिले में अरुण के घर गए और अरुण के साथ भोजन किया। वे अरुण के साथ एक पार्टी नेता के घर शोक संवेदना व्यक्त करने भी गए। यहां दिग्विजय ने अरुण और उनके पिता सुभाष यादव की तारीफ की। बता दें, सुभाष यादव से मतभेद के बावजूद दिग्विजय पहले भी अरुण को पसंद करते थे। सबसे पहले खरगोन से अरुण के टिकट की सिफारिश दिग्विजय ने ही की थी। साफ है कि विधानसभा चुनाव से पहले कमलनाथ की कोशिश असंतोष को खत्म कर नेताओं को एकजुट करने की है।

इसे कहते हैं ‘अपने पैर में कुल्हाड़ी पटकना’….

– राजनीति में मुख्यमंत्री और मंत्रियों को छोड़ दें तो ऐसा अपवाद के तौर पर होता है जब किसी नेता को दूसरी बार संगठन का मुखिया बना दिया जाता है। कुछ खास नेताओं के साथ इनमें अर्चना जायसवाल का नाम भी जुड़ा। पहले वे प्रदेश महिला कांग्रेस की अध्यक्ष रह चुकी थीं, उन्हें दोबारा यह अवसर मिल गया। सात माह पहले वे पुन: संगठन की मुखिया बना दी गर्इं। उम्मीद की गई थी कि वे पिछले अनुभव का इस्तेमाल कर और अच्छा काम करेंगी। उन्होंने ऐसा तो नहीं किया अलबत्ता उनमें घमंड आ गया। वे किसी को कुछ नहीं समझने लगीं।

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कार्यकारिणी के गठन एवं नियुक्तियों में उन्होंने मनमानी की। कांग्रेस की नूरी खान जैसी एक्टिव महिला नेत्री उनके व्यवहार से इस कदर नाराज हुर्इं कि पार्टी छोड़ने का निर्णय ले लिया। कमलनाथ सहित कुछ नेताओं ने उन्हें किसी तरह मनाया। लिहाजा, अर्चना जायसवाल की इस अकड़ का जो नतीजा होना था वही हुआ। नियुक्ति के 7 माह बार ही उन्हें पद से हटा दिया गया। अहंकार देखिए, इसके बाद भी वे पद से हटने के लिए तैयार नहीं। उन्होंने कहा कि हाईकमान से उनके पास अब तक कोई पत्र नहीं आया। इसलिए अब भी वे ही महिला कांग्रेस की अध्यक्ष हैं। इसे ही कहते हैं ‘अपने पैर में कुल्हाड़ी पटकना।’