‘विकलांग आरक्षण प्रणाली’ ने यूपीएससी को साबित किया ‘धृतराष्ट्र’…

350

‘विकलांग आरक्षण प्रणाली’ ने यूपीएससी को साबित किया ‘धृतराष्ट्र’…

विकलांग व्यक्तियों को समाज की मुख्यधारा में लाने और समान अवसर सुनिश्चित करने के अपने प्रयासों के तहत, यूपीएससी विकलांग उम्मीदवारों के लिए आरक्षण प्रदान करता है। 2016 का “विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम” सरकारी नौकरियों में 4% रिक्त पदों को विकलांग (पीडब्ल्यूडी) उम्मीदवारों के लिए आरक्षित करने का आदेश देता है। यह अधिनियम स्पष्ट रूप से श्रेणियों को परिभाषित करता है। अधिनियम के अनुसार, विकलांगता की 21 श्रेणियां हैं, जिनमें अंधापन, बहरापन, लोकोमोटर विकलांगता, मानसिक बीमारी और बहुविकलांगता शामिल हैं। तो लोकोमीटर विकलांगता सर्टिफिकेट का उपयोग कर अफसर बनी महाराष्ट्र कैडर की आईएएस पूजा खेडकर ने यूपीएससी की विकलांग आरक्षण प्रणाली का दुरुपयोग कर यूपीएससी की पूरी जांच प्रक्रिया पर न केवल प्रश्नचिन्ह लगा दिया है, बल्कि विकलांग आरक्षण प्रणाली को ही विकलांग साबित कर दिया है।
विकलांग कोटे से पूजा खेडकर ने 2022 में सिविल सर्विस परीक्षा पास की थी। पूजा खेडकर का नाम हाल ही में अचानक सुर्खियों में आ गया। उन्होंने यूपीएससी परीक्षा में 821वीं रैंक हासिल की थी और वह प्रोबेशन पीरियड में थी। पूजा उस समय विवादों में घिर गईं जब उन्होंने अपनी निजी ऑडी कार का इस्तेमाल लाल-नीली बत्ती और वीआईपी नंबर प्लेट के साथ किया। तब चर्चा में आई पूजा संदेह के घेरे में आई। तब सामने आया कि सिविल सेवा परीक्षा पास करने के लिए पूजा ने फर्जी दिव्यांग सर्टिफिकेट और अन्य पिछड़ा वर्ग प्रमाण पत्र जमा करने समेत फर्जीवाड़े की नींव पर आईएएस रूपी मजबूत इमारत खड़ी करने की कुचेष्टा की थी। इन विवादों के बीच, महाराष्ट्र सरकार ने पूजा खेडकर का ट्रांसफर पुणे से वाशिम कर दिया था। तब जाकर, केंद्र सरकार ने सिविल सेवा में उम्मीदवारी हासिल करने के लिए पूजा खेडकर की ओर से जमा किए गए सभी दस्तावेजों की जांच के लिए एक समिति बनाई। अब यूपीएससी ने जांच के बाद पूजा मामले में और भी कई अनियमितता पाई। जिसके बाद उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई और कारण बताओ नोटिस भी दिया गया है।
खैर जब बात निकली तो अब दूर तलक जा रही है। जानकारी के मुताबिक 2015 से 2023 के बीच 44 उम्मीदवारों ने विकलांगता प्रमाणपत्र लगाकर सिविल सेवा में नौकरी हासिल की है। पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर उम्मीदवार इस तरह से प्रमाणपत्रों का उपयोग करके सिविल सेवा में नौकरी हासिल कर रहे हैं, तो ईमानदारी से पढ़ाई करने वाले उम्मीदवारों का क्या होगा? मांग उठ रही है कि केंद्र सरकार इन सभी संदिग्ध नामों की जांच कर फर्जीवाड़ा करने वालों को सबक सिखाए? संदिग्ध विकलांगता प्रमाण पत्र के आधार पर अधिकारी बनने वाले लोगों की सूची में कई पूर्व सरकारी अधिकारियों के बच्चे भी शामिल हैं।
कुल मिलाकर विकलांग व्यक्तियों को समाज की मुख्यधारा में लाने और समान अवसर सुनिश्चित करने के अपने प्रयासों के तहत, यूपीएससी विकलांग उम्मीदवारों के लिए आरक्षण प्रदान करता है। 2016 का “विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम” सरकारी नौकरियों में 4% रिक्त पदों को विकलांग (पीडब्ल्यूडी) उम्मीदवारों के लिए आरक्षित करने का आदेश देता है। पूजा मामले ने साफ कर दिया है कि बुद्धिमत्ता का उपयोग कर देश की सर्वाधिक बुद्धि वाली सिविल सर्विसेज परीक्षा आयोजित कराने वाले बुद्धिमानों को किस तरह बुद्धू बनाया जा सकता है। यह बात अलग है कि पूजा का उदाहरण भारत में सर्वाधिक चर्चा का विषय बना हुआ है। पर इससे जाहिर हो गया है कि नीट, नेट छोड़ो देश की हर परीक्षा संदेह के घेरे में है। नकली आईएएस या अन्य अफसर बनकर सैकड़ों लुटेरे तो एक न एक दिन पकड़े ही जाते हैं। पर असली आईएएस बनकर ही लुटेरे कुर्सी पर कब्जा जमाकर पदों को लूटने में कामयाब हो जाएं, तो इससे बड़ी दुर्दशा और क्या हो सकती है? इनकी लूट के नए-नए मामले अब यह साबित करने के लिए काफी हैं कि भारत की सर्वाधिक प्रतिष्ठित पदों वाली इस परीक्षा में ”विकलांग कोटा’ मजाक का विषय बन गया है। पूजा से शुरू होकर इस कोटा के साथ धोखा करने वाले नए-नए कथित चेहरे अब यही साबित कर रहे हैं कि अब तो यह ‘कोटा’ ही ‘विकलांग’ हो गया है, जिसे लूट के चलते मिली विकलांगता से निजात पाने के लिए सबसे ज्यादा मदद की दरकार है। पूजा जैसे और कितने मामले हैं, यह सघन जांच के बाद ही सामने आ सकता है। पर इस ‘विकलांग आरक्षण प्रणाली’ ने यूपीएससी को ही ‘धृतराष्ट्र’ साबित कर दिया है …।